World Radio Day 2021 पर जानिए विविध भारती के शुरू होने की कहानी
13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाया जाता है. स्पेन रेडियो अकैडमी ने 2010 में पहली बार इसका प्रस्ताव रखा था. 2011 में यूनेस्को की महासभा के 36वें सत्र में 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस घोषित किया गया. इस मौके पर पढ़िए विविध भारती की कहानी
नई दिल्लीः जमाना बदल गया है और हर रोज बदल रहा है. इसीके साथ बदल जाती हैं कई चीजें. वे भी जो कभी खास थीं. किसी ने तोहफे में दी थी तो किसी के साथ किसी खास की यादें जुड़ी हैं. कभी तो चीजें सिर्फ इसलिए खास हो जाती हैं कि उनकी उम्र बदलते वक्त के साथ हमारे जितनी हो जाती हैं.
घर के किसी कोने में रखा या स्टोर रूम की धूल फांक रहा वो पुराने जमाने का रेडियो कुछ ऐसी ही चीज है. अच्छा है कि बदले वक्त के साथ रेडियो फॉर्मेट FM बन गया है और सफर में या कभी-कभार अकेले में हमारा साथी है.
फिर भी 90 के दशक तक जिसने भी रेडियो पर 'ये है विविध भारती' की धुन सुनी है उसके जेहन से रेडियो की यादें मिटाए नहीं मिटेंगीं. शनिवार 13 फरवरी को दुनिया भर में विश्व रेडियो दिवस मनाया जा रहा है. उस रेडियो का दिन जो आज के WWW वाले युग से पहले दुनिया को वैश्विक बनाने की कड़ी बन चुका था.
रेडियो सीलोन भारत में हुआ लोकप्रिय
दुनिया भर की बातों को छोड़ते हुए रेडियो के भारतीय स्वरूप पर ही बात करते हैं. भारत में रेडियो की शुरुआत रेडियो सीलोन से हो चुकी थी. आजादी के पहले से रेडियो प्रसारण सुने जा रहे थे, हालांकि तब के दौर में केवल देश-विदेश की महत्वपूर्ण खबरें ही रेडियो पर सुनाई देती रही थीं. किसी खास कार्यक्रम का जिक्र कम ही आ पाता है, लेकिन आजादी के बाद रेडियो सीलोन भारत में सुनी जाने वाली सबसे पसंदीदा फ्रीक्वेंसी बन रही थी.
इसकी वजह थी कि सीलोन रेडियो इंग्लिश पॉप म्यूजिक के बैक टू बैक गाने प्रसारित करता था. लोगों की मांग बढ़ने लगी कि हिंदी गाने भी सुनाए जाएं. All India Radio का मनोरंजक कार्यक्रम की ओर ध्यान नहीं था. आजादी के बाद भी इस ओर बहुत कोशिश नहीं हुई. दूसरी बड़ी बात थी कि भारतीय सत्ता में शीर्ष पर बैठा धड़ा उस समय तक फिल्म संगीत को अश्लील ही समझता था.
दूसरा यह भी कि मनोरंजक कार्यक्रम सरकारी रेडियो की स्थापना के उद्देश्य से भी मेल नहीं खाते थे. तब के सूचना प्रसारण मंत्री बीवी केसकर ने ऐसी किसी जरूरत की जरूरत तब नहीं समझी थी.
1951 में भारत आया रेडियो सीलोन
1951 में रेडियो सीलोन ने 1951 में बंबई (आज मुंबई) में रेडियो एडवर्टाइजिंग सर्विस शुरू की. इसका लक्ष्य था कि भारत में रेडियो विज्ञापन कार्यक्रम बनाए जाएं साथ ही इसके लिए प्रोग्राम भी तय किया जाए. 1950 में शुरू हुए बिनाका हिट परेड की तरह 1951 में शुरू हुआ बिनाका गीत माला. अमीन सयानी की जादुई और लज्जतभरी आवाज ने इसका आगाज किया और रेडियो पर फिल्मी गीत सुनाई देने लगे.
रेडियो सीलोन भारत में हिट हो गया और खूब सुना जाने लगे. फिल्म संगीत को ओछा समझने की सोच का नतीजा हुआ कि देश का पैसा विदेश पहुंचने लगा.
ऐसे मिली भारत की मनोरंजन सेवा
अब जरूरत थी कि भारत को भारत की मनोरंजन सेवा मिले. अब बदले अंदाज में सूचना प्रसारण मंत्री बीवी केसकर सामने आए. कार्यक्रम की रूपरेखा बनी, प्रस्तावना तैयार की गई. कला जगत के प्रख्यात लोगों के संपर्क साधा गया. इसमें सबसे बड़ा नाम आता है पं. नरेंद्र शर्मा का. उन्हें यह चुनौती के तौर पर काम सौंपा गया कि देश के लिए मनोरंजन का इंतजाम करना है.
वह भी ऐसा-वैसा नहीं ऐतिहासिक. पं. शर्मा ने इसे वाकई चुनौती की तरह लिया. लंबे सोच-विचार और तिकड़-पेंच के बाद सामने आया कि कार्यक्रम ऐसा हो जो गीत-नाटक, फिल्म, चित्र और नृत्य को सिर्फ कानों से महसूस करा सके.
इस खूबसूरत परिकल्पना में उनका साथ दिया केशव पांडे, गोपालदास, गिरिजा कुमार माथुर ने. कड़ी मेहनत के बाद जिस फल का जन्म हुआ वह बना विविध भारती जो कि 3 अक्टूबर 1957 को सामने आया. हालांकि इससे पहले एक और परेशानी पेशानी पर बल डाल रही थी.
सामने आया 'ये है विविध भारती'
अब नई परेशानी थी कि विविध भारती का आगाज कैसे किया जाए. एक बार फिर मंडली बैठी. तय रहा कि इसकी शुरुआत एक गीत से की जाएगी. 3 अक्टूबर 1957 को जब उद्घोषक शील कुमार ने आगाज किया तो कहा यह विविध-भारती है, आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम’ पंचरंगी यानी पांच ललित कलाओं- गीत, संगीत, नृत्य, नाट्य और चित्र का समावेश. फिर बजा पहला गीत ' नाच रे मयूरा'
मन्ना डे ने गाया पहला गीत
नाच रे मयूरा गीत भी अपने आप में खास है. पं. नरेंद्र शर्मा ने इसे आगाज गीत के तौर पर लिखा, अनिल बिस्वास ने संगीत दिया और मन्ना डे ने बड़ी ही खूबसूरती से गाया. फिर तो सिलसिला चल निकला. कभी फुरसत में, कभी शाम के झोंके में, कभी रात के सन्नाटे में तो कभी सुबह-सुबह की अलसाए मौसम में 'ये है विविध भारती' की आवाज आती रही. यह वो आवाज थी जो मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह बन गई.
फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी ने भी एक बार कुछ ऐसी ही बात कही थी. विविध भारती प्रस्तोता युनूस खान इसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि ऋषिकेश मुखर्जी से मेरी बातचीत हो रही थी. बातों बातों में उन्होंने कहा था कि विविध-भारती भारतीय आम आदमी के जीवन का बैक-ग्राउंड म्यूजिक है. उनकी कई फिल्मों में भी विविध-भारती की आवाज सुनाई देती है.
यहां पढ़ लीजिए नाच रे मयूरा गीत
नाच रे मयूरा!
खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन
देख सरस स्वप्न, जो कि
आज हुआ पूरा !
नाच रे मयूरा !
गूँजे दिशि-दिशि मृदंग,
प्रतिपल नव राग-रंग,
रिमझिम के सरगम पर
छिड़े तानपूरा !
नाच रे मयूरा !
सम पर सम, सा पर सा,
उमड़-घुमड़ घन बरसा,
सागर का सजल गान
क्यों रहे अधूरा ?
नाच रे मयूरा !
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