असम के चुनावी रण में इन 5 मुद्दों पर टिका है सत्ता का सिंहासन

Assam Assembly Election 2021: असम में सत्ता के सिंहासन के लिए चुनावी रिंग में जबरदस्त फाइट चल रही है. भाजपा के नेता यहां फ्रंटफुट पर निकल कर खेल रहे हैं और उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बार अपना विकेट बचाना है. आपको उन 5 मुद्दों के बारे बताते हैं, जिसके इर्द-गिर्द इस बार का पूरा चुनाव है.

ज़ी हिंदुस्तान वेब टीम Thu, 18 Mar 2021-4:21 pm,
1/7

सीएए का मुद्दा

इस बार का चुनाव भाजपा के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. असम के लोगों का मानना है कि इस कानून से उनके सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा. अब जब असम में चुनाव होना है तो लिहाजा यह मुद्दा उठेगा. असम में सीएए के खिलाफ लगातार आवाज उठ रही है. कांग्रेस लगातार चुनाव जीतने के लिए सीएए के मुद्दे को उठा रही है. कांग्रेस ने सीएए को अपना प्रमुख एजेंडा बना लिया है. कांग्रेस ने असम वासियों से वादा किया है कि अगर वो (कांग्रेस) सत्ता में आती हैं तो वह सीएए लागू नहीं होने देगी. वहीं अपनी चुनावी रैली में बीजेपी इस मुद्दे का जिक्र तक नहीं कर रही.

 

2/7

चुनाव में बीजेपी नहीं कर रही सीएए का जिक्र

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) मोदी सरकार ने साल 2019 में दिसंबर को संसद में पास किया था. इस कानून के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है. इन देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी धर्म के शरणार्थियों को ही नागरिकता देने का नियम है. इस कानून को लेकर देशभर में काफी विरोध हुआ था, लोगों का कहना है कि इस कानून में  मुस्लिमों को क्यों नहीं जोड़ा गया है.

 

3/7

चुनाव में उठेगा लव जिहाद का मुद्दा

इन दिनों यूपी सहित बीजेपी शासित राज्यों में लव जिहाद का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. यूपी और एमपी में धर्मांतरण विरोधी कानून बना दिया है. अब चुनाव में बीजेपी ने लव जिहाद को अपना प्रमुख एजेंडा बना लिया है. अगर अब चुनाव जीतने के बाद बीजेपी सत्ती में आती है तो असम में भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाया जाएगा. इतना ही नहीं, बीजेपी के नेता हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा दिया है कि हम ये सुनिश्चित करेंगे की शादी करने वाला लड़का अपनी पहचान जरूर बताए और इससे जुड़ा बिल भी विधानसभा में पास करेंगे.

4/7

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ विरोध

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) वो रजिस्टर है जिसमें जिसमें देश के वैध नागरिकों की जानकारी होती है. असम में हमेशा से ही अवैध शरणार्थियों की समस्या रही है. लिहाजा साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर वोटर लिस्ट से अवैध शरणार्थियों के नाम काटने की अपील की गई. भारत में अब तक NRC केवल असम में लागू की गई है. इस लिस्ट में केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया गया है जो कि 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं.

 

5/7

जोरो- शोरो से उठ रहा है NRC का मुद्दा

साल 2013 में इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ने 2014 में पूरे असम में NRC अपडेट करने का आदेश दिया. जब रजिस्टर अपडेट प्रक्रिया शुरू की गई तो लिस्ट से 19 लाख हिंदुओं के नाम भी गायब हो गए. इसके बाद असम में काफी विरोध हुआ था. आज भी असम विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा जोरो- शोरो से उठ रहा है. बता दें कि चुनाव आयोग ने कहा है कि  जिन लोगों के नाम NRC में नहीं हैं वो भी वोट दे सकतें है. चुनाव आयोग के इस फैसले से बीजेपी खुश नहीं है.

6/7

साल 1985 में हुआ था असम अकॉर्ड

साल 1985 में असम अकॉर्ड हुआ था. इसमें असम के अवैध शरणार्थियों की पहचान कर उन्हें बाहर करने की मांग थी. असम में काफी लंबे समय से अवैध शरणार्थियों का मुद्दा उठता रहा है. राज्य में आज भी यह समस्या बरकरार है. केंद्र में मोदी सरकार  जब सीएए कानून लेकर आई थी तो उन्होंने दावा किया था कि इस कानून से घसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा, लेकिन लेकिन असम वासियों ने इश कानून का जमकर विरोध किया और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

7/7

काफी लंबे समय से हो रही है एसटी स्टेटस की मांग

असम में एसटी स्टेटस की मांग भी काफी लंबे वक्त से हो रही है. असम में कुछ समुदायों लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांगने की मांग कर रहे हैं. असम में छह कम्युनिटी के एसटी स्टेटस को लेकर आज भी आवाज उठती रही है जिन छह कम्युनिटी को एसटी स्टेटस देने की मांग है उनमें अहोम, मोरान, मतक, कुश- राजवंशी, टी-ट्राइब और सूतिया शामिल हैं. लेकिन अभी तक बीजेपी सरकार इस समस्या का सामधान नहीं निकाल पाई. बीजेपी सरकार में इसके लिए मंत्रियों का समूह भी बनाया गया था लेकिन इसका हल नहीं निकल पाया है. 

 

ZEENEWS TRENDING STORIES

By continuing to use the site, you agree to the use of cookies. You can find out more by Tapping this link