भारत के इस किले को मुगल और अंग्रेज भी भेदने में हुए फेल, अंदर बने हैं 360 मंदिर!

भारत में कई ऐसे किले हैं जिन्हें अजेय कहा जा सकता है. आज हम आपके लिए इसी सांस्कृतिक धरोहर से एक ऐसा किला निकालकर लाए हैं, जिस पर कई बार मुगलों, राजपूत राजाओं और मराठों ने आक्रामण तो किया, लेकिन इसकी मजबूत दीवारों को कभी नहीं हिला पाए. चलिए आज इसी किले के बारे में कुछ दिलचस्प बातें जानने की कोशिश करते हैं.

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कुम्भलगढ़ किले की दीवार 36 किलोमीटर लंबी है, जिसकी वजह से यह दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार कहलाई जाती है. इसकी चौड़ाई इतनी है कि इस पर एक साथ 8 घोड़े दौड़ सकते हैं. इस किले में 7 विशाल एंट्री गेट बनाए गए हैं. इसके अलावा यहां महल, बगीचे और जलाशय तैयार किए गए हैं.

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साथ ही इस किले में 360 मंदिर भी बनाए गए हैं, जो ज्यादातर जैन और हिन्दू धर्म को समर्पित किए गए हैं. बताया जाता है कि इस किले का सबसे ऊंचा स्थान बादल महल है. यहां से इस किले की भव्यता और खूबसूरती को साफतौर पर देखा जा सकता है.

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कुम्भलगढ़ किले के ऐतिहासिक महत्व को समझा जाए तो यह राणा कुंभा की दूरदर्शिता का प्रमाण है. इस किले पर कई अलग-अलग तरह से हमले किए जा चुके हैं. इस पर मुगलों से लेकर राजपूत राजाओं और मराठों ने कई बार आक्रमण किए, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति के कार और इसकी मजबूत दीवारों की वजह से इसे कोई नहीं जीत पाया.

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1576 में मुगल सम्राट अकबर ने कुम्भलगढ़ किले पर अधिकार पाने के लिए हमला कर दिया. इस लड़ाई में गुजरात के आसफ खान और जयपुर राजा मान सिंह ने भी अकबर का साथ दिया. हालांकि, इस किले में सीधे रास्ते से जीत पाना असंभव था. ऐसे में अकबर ने एक साजिश रची और किले के इर्द-गिर्द घेराबंदी कर दी. ऐसे में किले के भीतर लोगों को खाने और पानी जैसी चीजों की कमी होने लगीं और आखिरकार मेवाड़ की सेना को पीछे हटना पड़ गया.

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बता दें कि कुम्भलगढ़ किले को 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी. भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण (ASI) के मुताबिक यह किला आज भी राजस्था की समृद्ध विरासत और मेवाड़ की शक्ति का प्रतीक माना गया है. हालांकि, वक्त के थपेड़ों ने इसे किले की खूबसूरती को काफी नुकसान भी पहुंचा दिया है.

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