West Bengal: राष्ट्रवाद की आंधी से क्यों थर्रा रही हैं ममता !
अमित शाह के राष्ट्रवादी शंखनाद को लेकर ममता और तृणमूल से सवाल हो रहे हैं. सवाल ये कि बंगाल की राजनीति को शहीद खुदीराम बोस की याद दिलाने की पहल बीजेपी को क्यों करनी पड़ी? क्यों टैगोर के राष्ट्रवाद को बंगाल की राजनीति में फिर से स्थापित करने का अभियान बीजेपी को छेड़ना पड़ा?
कोलकाता: अंग्रेजों के दौर को याद करेंगे, आजादी के आंदोलन को याद करेंगे, तो बंगाल का वो पुनर्जागरण आपके जेहन में कौंधने लगेगा, जिसने हिन्दुस्तान को झकझोर कर जगा दिया था. बंगाल के उस नवजागरण की जड़ राष्ट्रवादी थी. आजादी के बाद वो दौर भी आया, जब बंगाल ने साढ़े तीन दशकों तक लाल सलाम किया. उसी बंगाल ने बदलती सियासत (Bengal politics) से नई 'ममता' की उम्मीद भी जोड़ी और एक दशक तक मां-माटी-मानुष के नारे को सीने से लगाए रखा. अब उसी बंगाल की चुनावी राजनीति एकबार फिर राष्ट्रवाद की धुरी पर घूम रही है.
फिर बांग्ला राजनीति के केंद्र में पुनर्जागरण के नायक
अमित शाह (Amit Shah) के राष्ट्रवादी शंखनाद को लेकर ममता (Mamata Banerjee) और तृणमूल (TMC) से सवाल हो रहे हैं. सवाल ये कि बंगाल की राजनीति को शहीद खुदीराम बोस की याद दिलाने की पहल बीजेपी (BJP) को क्यों करनी पड़ी? क्यों टैगोर के राष्ट्रवाद को बंगाल की राजनीति में फिर से स्थापित करने का अभियान बीजेपी को छेड़ना पड़ा? विवेकानंद (Vivekanand) और रामकृष्ण परमहंस अगर बंगाल की विरासत हैं, तो बंगाल की सियासत में उन्हें स्थापित करने का बीड़ा बीजेपी को क्यों उठाना पड़ा? मिशन बंगाल में जुटे बीजेपी के चाणक्य अमित शाह (Amit Shah) के दो दिन के बंगाल दौरे से उठ रहे हैं ये महत्वपूर्ण सवाल. अमित शाह को बंगाल की जनता ने जिस तरह सिर-आंखों पर बिठाया, वही बात ममता बनर्जी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रही है.
बंगाल की राजनीति में मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने राष्ट्रवाद के तड़के से बदलाव की हुंकार भर दी है. इस ललकार में जिन्ना वाली सोच को 'बंगाल निकाला' देने का एलान है. यही वजह है कि इस हुंकार के पीछे बंगाल में जनसैलाब जुटने लगा है. अमित शाह के दौरे में ड्रोन से ली गई तस्वीरें इसकी गवाह हैं, जिसमें उमड़ती भीड़ हैरान करने वाली है. उनकी आंखों में उम्मीद यूं ही नहीं चमक उठी है. उनके जेहन में दरअसल बंगाल नवजागरण के राष्ट्रवादी चेहरे फिर जोर की दस्तक देते सुनाई पड़ रहे हैं. आजादी के आंदोलन के दौर के बंगाल के राष्ट्रवादी नायक सूबे की मौजूदा सियासत के केंद्र में आते दिखाई पड़ रहे हैं.
बीजेपी के मिशन बंगाल में 'गुरुदेव' का राष्ट्रवाद
गुरुदेव टैगोर का राष्ट्रवाद फिर से बंगाल की राजनीति में हलचल मचा रहा है, जिसने आजादी के आंदोलन के दौर में महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस को प्रेरित किया था. सवाल ये है कि बंगाल की जनता अपने राष्ट्रवादी नायकों की याद दिलाने भर से क्यों बीजेपी के पीछे जाती नजर आ रही है? क्यों सत्ताधारी टीएमसी के बड़े चेहरे बीजेपी की ओर खींचे चले आ रहे हैं? आखिर क्यों बंगाल की चुनावी राजनीति में बीजेपी का राष्ट्रवादी अभियान ममता बनर्जी की नींदें उड़ा रहा है?
जवाब एक ही है.आजादी की लड़ाई के दौर में बंगाल की सोच को नई दिशा देने वाले राष्ट्रवादी नायकों को बंगाल की जनता अपनी सियासत से गायब पा रही थी. बीजेपी ने बंगाल की चुनावी राजनीति में अपनी धमाकेदार एंट्री के लिये राष्ट्रवाद का शंखनाद किया, तो बंगाली मानुष की यादों में बंगाल के वही राष्ट्रनायक नई सोच के साथ चमक उठे. गुरुदेव की गीतांजलि, उनके रवींद्र संगीत और एकला चलो के गीत को बंगाली मानुष दोहराता रहा. जबकि बंगाल में सत्ता की सियासत एकला चलो की अलग लीक पर चल पड़ी, जहां एकमात्र लक्ष्य सत्ता पर कब्जा जमाना बन गया था. उस संकुचित सियासी सोच को अब राष्ट्रवादी चुनौती मिली है।
'मां-माटी-मानुष' की राजनीति का 'खेल' खुल गया!
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के सांस्कृतिक और वैचारिक राष्ट्रवाद को बीजेपी ने बंगाल की जनता से जुड़ने का जिस तरह जरिया बनाया, उसका असर हाथोहाथ दिखा रहा है. बीजेपी के चाणक्य अमित शाह शहीद खुदीराम बोस के परिवार से मिलने पहुंचे तो उनके दिल को टीस पहुंचा रहा दर्द जुबान पर उतर आया. उन्होंने दो टूक कह दिया कि - 'बंगाल की राजनीति ने खुदीराम बोस की शहादत को बिसरा दिया. ममता बनर्जी सरकार ने कभी पूछ परख की कोशिश तक न की.' ये दर्द इसलिये भी गहरा है क्योंकि मां-माटी-मानुष का नारा देकर सत्ता संभाल रही सरकार में खुदीराम बोस की अनदेखी हुई.
लेफ्ट को बंगाल की सत्ता से हटाने के लिये ममता बन्रर्जी ने मां-माटी-मानुष का नारा दिया था, तब बंगाल की जनता ने उसमें बंगाली अस्मिता और बंगाल की माटी से जुड़ाव के संकल्प को महसूस किया था. लेकिन ममता की राजनीति ने जिस तरह धीरे-धीरे मां-माटी-मानुष की सोच से अलग जाकर तुष्टिकरण की राजनीति का रास्ता पकड़ा, उसने बंगाल के बड़े तबके का मोहभंग हुआ और ममता के सहयोगी रहे बड़े चेहरे भी उनसे दूरी बनाने लगे. बंगाल की राजनीति को जिस रक्तचरित्र से छुटकारा दिलाने का सपना ममता ने दिखाया था. सत्ता के मोह में बंधकर वो उसी रक्तचरित की हिमायती बनीं नजर आईँ.
यही वजह है कि बंगाल की जनता अब राजनीति में बीजेपी से पुनर्जागरण की उम्मीद लगाती दिख रही है.कांग्रेस और लेफ्ट के बाद ममता की राजनीति ने भी बंगाल की जिस विरासत को बंगाल की सियासत में अछूत बनाकर छोड़ दिया था, उसे फिर से स्थापित करने का बीजेपी का राष्ट्रवादी अभियान बंगाल की जनता में नया जोश भरता दिख रहा है.
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