हाथरस: 14 सितंबर की वो तारीख़ थी जिस दिन एक बेटी के साथ हुई वारदात ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. हाथरस से शुरू हुई इंसाफ़ की लड़ाई अब सारे देश की आवाज़ बन चुकी है. इस दौरान हाथरस की हवा में कई तरह के सवाल तैर रहे हैं. हर कोई जानना चाहता है कि हाथरस की बिटिया पर क़ातिलाना हमले का पूरा सच क्या है, एक बेटी के साथ अचानक वारदात हुई या फिर ये सोची समझी साज़िश थी? ऐसे ही कई सारे सवालों के जवाब हमारी इन्वेस्टिगेशन टीम ने हाथरस पहुंच कर जानने की कोशिश की.


कुछ सुलगते सवाल


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अधूरा सच झूठ से भी ज्यादा खतरनाक होता है. इसलिए आपके लिए हाथरस में बिटिया के साथ हुई दरिंदगी का हर सच जानना जरूरी है. जिससे आप फेक न्यूज़ के झांसे में ना आएं और समाज को बांटने वालों से सावधान रहें. जमीनी हकीकत की पड़ताल के लिए ज़ी हिन्दुस्तान ने हाथरस में बिटिया के गांव में डेरा डाला और यहां सबसे बड़ी तफ्तीश शुरू की. हमने उन सुलगते सवालों का सच जानने के लिए दिन-रात एक कर दिया..जो आपकी जेहन में भी कई दिन से कौंध रहे होंगे?


सवाल नंबर 1). हाथरस की बिटिया पर क़ातिलाना हमले का पूरा सच क्या है?


सवाल नंबर 2). वारदात अचानक हुई या फिर सोची समझी साज़िश के तहत अंजाम दिया गया?


सवाल नंबर 3). पीड़ित के बड़े भाई ने 14 सितंबर को थाने में दी गई पहली तहरीर में रेप का ज़िक्र क्यों नहीं किया?


सवाल नंबर 4). 14 सितंबर को पीड़ित और उनकी मां ने सिर्फ एक आरोपी संदीप का नाम लिया, 22 सितंबर को बयान में पीड़ित ने 4 लोगों को आरोपी बताया, ऐसा विरोधाभास क्यों?


सवाल नंबर 5). पीड़ित और मुख्य आरोपी के परिवार के बीच पुरानी रंजिश का सच क्या है?


ज़ी हिन्दुस्तान के अंडर कवर रिपोर्टर ने जमीनी हकीकत की शुरूआत चंदपा थाने से करीब दो किलोमीटर दूरी पर बसे पीड़ित के गांव से की. स्थानीय लोगों ने खुफिया कैमरे पर कई बड़े खुलासे किए इनमें से ज्यादातर ने कहा कि सच सामने लाया जाए इस मामले पर राजनीति ना हो.


खुफिया क़ैमरे पर हाथरस के ग्रामीण- "किसी को पूछो, कायदा कहता है कि जो दोषी है उसको सज़ा जरूरी है और जो निर्दोष है उसे फंसाया ना जाए."


पीड़ित के गांव के कई लोगों ने दावा किया कि यहां जातीय तनाव जैसे हालात कभी नहीं रहे.  बहू बेटियों पर नजर डालने जैसी घटना कभी नहीं हुई. इनका आरोप है कि कुछ लोग जानबूझकर इलाके में अलग-अलग जातियों के बीच नफरत फैलाने में जुटे हैं. 


खुफिया क़ैमरे पर हाथरस के ग्रामीण


"दूसरे गांव के हैं, बहू आती हैं इनकी अकेली, कोई नहीं देख सकता बुरी नज़र से हमारे यहां. घर से नहीं निकलेगी, सभी आती हैं. घास काटने, काम करने के लिए."


पुरानी रंजिश, नई साज़िश


हमारी तफ्तीश जैसे-जैसे आगे बढ़ी ये बात साफ होती चली गई कि आरोपी संदीप के परिवार के साथ मृतका के परिवार की पुरानी रंजिश थी. खुद पीड़ित की मां ने घटना के दिन यानी 14 सितंबर को दिए बयान में ये बात खुद कही थी और गांव वालों ने भी यही बात दोहराई. 


14 सितंबर को पीड़िता की मां का बयान


रिपोर्टर- रंजिश चल रही है?


पीड़िता की मां- हां रंजिश चल रही है


पीड़िता की मां- पहले की हमारे ससुर की चांद फाड़ दी दरांती से


पीड़िता की मां- उन्हीं लोगों ने


रिपोर्टर- कितने साल पहले?


पीड़िता की मां- कम से कम हो गए 15-16 साल हो गए


रिपोर्टर - अच्छा


पीड़िता की मां- खत्म हो गए हमारे ससुर


पीड़िता की मां- तब से रंजिश चली आ रही है


रिपोर्टर - खत्म हो गए थे?


पीड़िता की मां- खत्म हो गए थे


पीड़िता की मां- कंप्लेन भी की थी पुलिस में


पीड़िता की मां- हां, 6 महीने बाद छूटकर आए थे


पीड़िता की मां - 6 महीने बाद


पीड़िता की मां- फिर आज हुआ


पीड़िता की मां- अकेला देख के लड़की को..


गुनाह एक 'थ्योरी' कई !


ऑपरेशन हाथरस की तहक़ीक़ात के दौरान जब हम हाथरस पहुंचें तो हमारे खुफिया कैमरे में ग्रामीणों ने चौंकाने वाला खुलासा किया. गांव वालों के मुताबिक संदीप ने पीड़िता का गला पकड़ा था. लेकिन बाक़ी के 3 आरोपी 14 सितंबर को वारदात वाली जगह पर नहीं थे.


खुफिया कैमरे पर हाथरस के ग्रामीण- "राजनीतिक दलों ने बना दिया है ये मामला इतना बड़ा, अब पता नहीं इन दोनों का क्या हुआ है. बोल रहे हैं कि ये खेत में थी लड़की और ये (संदीप) खेत में गया था. अब इन दोनों में क्या बात हुई, क्या नहीं हुई, पता नहीं. इसने (संदीप) ने उसका गला पकड़ा है. और ये जो तीन लड़के हैं ये वहां थे ही नहीं. अच्छा ये जो तीन लड़के हैं इनका इस मामले में कोई लेना देना नहीं है, अब इनका नाम इसलिए शामिल किया गया है कि जैसे एक मोहल्ले में रह रहे हो. तो लड़ाई झगड़े तो आम बात है."


कौन हैं तीनों आरोपी?


ये तीनों आरोपी संदीप के चाचा रवि, दोस्त रामू और लव-कुश हैं


ऑपरेशन हाथरस में आरोपियों पर खुलासे से उठे सवाल


- 3 आरोपियों का नाम वारदात के साथ कैसे और कब जुड़ा?


- मामले को सियासी रंग देने के लिए बाकी 3 आरोपियों का नाम उछाला?


पीड़िता की मां के बयान में फर्क?


जब हमने इस सवाल का सच जानने की कोशिश की तो हमारे हाथ पीड़िता की मां के बयान से जुड़े दो टेप लगे. इसमें उन्होंने क्या कहा था, पहले ये पढ़िए.


14 सितंबर को पीड़िता की मां का बयान


मां- गांव में है कि तू-तू मैं-मैं होती रहती है, घास लाने गई थी, कि खींच लिया बाजरा में


रिपोर्टर- गला किसने दबाया?


मां- गुड्डू के छोरा ने... संदीप


मां से सवाल - किन किन लोगों ने मारा था?


मां का जवाब - खाली एक ही लड़का था


मां से सवाल - क्या नाम है उसका?


मां का जवाब - संदीप


इस पुरानी टेप में पीड़िता की मां के बयान में भी संदीप के अलावा दूसरे किसी आरोपी का नाम नहीं है. ऐसे में एक बार फिर हमारे सामने वही सवाल था कि बाक़ी आरोपियों का नाम इस मामले में अचानक सामने आने के पीछे क्या वजह हो सकती है. इसी सवाल का जवाब तलाशते हुए हमने अपनी पड़ताल को आगे बढ़ाया. अब हम ये जानना चाहते थे कि वारदात के दिन संदीप के अलावा दूसरे आरोपी कहां थे. इस दौरान तीनों आरोपियों में एक रामू से जुड़ा एक और खुलासा हमारी इन्वेस्टिगेशन के दौरान हुआ. ये खुलासा उस डेयरी के मालिक ने किया जिसमें आरोपी रामू काम करता था.


डेयरी मालिक से बातचीत का ऑडियो


जिस दिन ये कांड हुआ है 14 तारीख़ को उस दिन वो था.  कंपनी में ही था. सिस्टम है सीसीटीवी कैमरे का पर 7 दिन में डिलीट हो जाती है. इसका नाम आया है नौवे दिन तब तक 14 तारीख वाला सिस्टम डिलीट हो गया.


इस इन्वेस्टिगेटिंग ऑडियो टेप में आरोपी रामू के डेयरी मालिक ने भी गांव वालों की थ्योरी का समर्थन किया. ऐसे में सवाल है, बाक़ी के आरोपियों का नाम क्या किसी सुनियोजित साज़िश के तहत मामले को बड़ा बनाने के लिए घसीटा गया ? या फिर जो हमारे क़ैमरे में क़ैद हुआ वो भी उतना ही सच है जितना हाथरस हमें बताना चाहता है.


दंगा गैंग का 'खूनी' प्लान!


ज़ी हिन्दुस्तान के ऑपरेशन हाथरस में बेटी के नाम पर देश को सुलगाने की बड़ी साज़िश का पर्दाफाश हुआ. आमतौर पर गांव वाले क़ैमरे पर कुछ भी बोलने से बचने में ही भलाई समझ रहे हैं. लेकिन हमारे खुफिया क़ैमरे में ग्रामीणों ने बताया कि कैसे हाथरस में भड़की ग़ुस्से की चिंगारी इंटरनेट के ज़रिये आग का रुप लेने लगी.


दरअसल, गांव वाले जिस पंचायत का जिक्र कर रहे हैं वो हाथरस में आरोपियों के पक्ष में इकट्टी हुई थी. लेकिन गांव वालों के मुताबिक उस एकजुटता का मकसद किसी भी तरह की हिंसा को फैलाना नहीं था. लेकिन इंटरनेट पर एक जाति विशेष की पंचायत को जातीय रंग देने की कोशिश हुई.


खुफिया क़ैमरे पर हाथरस के ग्रामीण- "अच्छा जैसे हमारा हाथरस जिला है. यहां कभी कोई दंगा नहीं देखा होगा, सुना नहीं होगा. ये ऐसा पहला मामला है जो नेताओं ने हाईलाइट कर दिया. ये नेताओं ने किया है, लड़ाई तो होती है. आपस में सुलझा लेते हैं, थाने तक नहीं जाते हैं."


मतलब साफ है कि हाथरस मामले में जमकर सियासी रोटियां सेकने की कोशिश लगातार जारी है. खुद ग्रामीणों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. लेकिन, सियासी मु्द्दा बनाने वालों ने हाथरस को अपनी दुकान चमकाने का जरिया समझ लिया है.


असित दीक्षित और कुलदीप शुक्ला की रिपोर्ट


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