बिहार में बढ़ रहे हैं प्रवासी, तेज हो रही है राजनीति
बिहार में जैसे जैसे दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी लोगों के आने का सिलसिला तेज हो रहा है वैसे वैसे राजनीति भी तीखी होती जा रही है. विपक्ष ने इसे राजनीति का जरिया बना लिया है.
पटना: अब प्रवासियों की संख्या को लेकर बिहार में राजनीति तेज हो गई है. जब प्रवासी घर पहुंचने लगे हैं तो विपक्ष ये कह रहा है कि जितने लोग घर वापस आना चाहते हैं उनको सरकार वापस नहीं ला पाएगी. कांग्रेस भी राजद के सुर में सुर मिला रही है. सभी मिलकर नीतीश कुमार पर कुव्यवस्था का आरोप लगा रहे हैं.
ये हैं बिहार में प्रवासियों के पहुंचने के आंकड़े
देश भर के अलग अलग राज्यों से बिहार लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को पहले 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन केंद्रों में रखा जाता है. जिसके बाद उन्हें घर पर आइसोलेशन में सात दिन अतिरिक्त बिताने पड़ते हैं. यानि बिहार में क्वारंटीन का कुल पीरियड 21 दिनों का है.
राज्य सरकार ने बुधवार को जो आंकड़ा जारी किया है उसके मुताबिक पूरे बिहार में 7,840 केंद्रों पर करीब 6.4 लाख प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन करके रखा गया है. गुरुवार को पटना में 50 ट्रेनें आईं, जिससे 60,000 से ज्यादा प्रवासी मजदूर आए हैं
राजद की प्रवासी राजनीति
बिहार में प्रवासी मजदूरों के असंतोष को साधकर सियासत की एक नया सिरा पकड़ने की कोशिश तेज़ हो चुकी है. राजद ने तो बाकायदा अपने कार्यकर्ताओं को टास्क दे दिया है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में सूबे के प्रवासी मजदूरों को पार्टी का मेंबर बनाया जाए. राजद प्रवासी मजदूरों के गुस्से और दर्द दोनों के रिएक्शन के भरोसे सियासी बाजी खेलने की फिराक में है.
सरकार को राज्य में संक्रमण फैलने का डर
देश के रेड ज़ोन वाले इलाकों से प्रवासी मजदूरों के घर वापसी राज्य सरकारों को थोड़ा डरा भी रही है. क्योंकि इससे राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा होने का खतरा है.
बिहार के अलग अलग हिस्सों में महाराष्ट्र, बंगाल, दिल्ली जैसे शहरों से आए प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन में रख रही है. लेकिन कई जगहों पर इंतजाम को लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
राजनीति की बिसात पर मजदूर बने मोहरे
सत्ता और विपक्ष में आरोप प्रत्यारोप के बीच सच्चाई ये है कि बिहार में प्रवासी श्रमिकों के वापस आने का सिलसिला जारी है, जिस तरह की भीड़ हाइवे पर तीन चार दिन पहले तक दिखती थी, अब उसमें कमी आयी है। इससे साफ है कि सरकार की ओर से की गयी तैयारियों का फायदा श्रमिकों को मिला है.
राजनीति भावनाओं के आधार पर की जाती है. महामारी से उपजी अस्थिरता और असंतोष के बीच हर दांव साधे जा रहे हैं. कोरोना का प्रकोप कब खत्म होगा कहना मुश्किल है. हो सकता है कि बिगड़ी अर्थव्यवस्था कई दूसरी चुनौतियां खड़ी कर दे. लेकिन तब भी राजनीति चलती रहेगी. क्योंकि राजनीति का मिजाज ही यही है.