मुंबई: राजनीति कभी भी कुछ करवा सकती है. कहा जाता है कि राजनीति में सबकुछ सम्भव है. किसी ने नहीं सोचा होगा कि जो बाल ठाकरे पूरा जीवन उग्र हिंदुत्व की राजनीति करते रहे उन्हीं के बेटे हिंदुत्व की विरोधी पार्टी से हाथ मिला लेंगे. वर्षों पुरानी दोस्त भाजपा को छोड़कर कांग्रेस और NCP के साथ मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने वाले उद्धव ठाकरे की कुर्सी पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.


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बिना विधायक नहीं रह सकते मुख्यमंत्री


कोई भी नेता अगर किसी भी सदन का सदस्य नहीं तो वो 6 महीने से अधिक मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह सकता. उद्धव ठाकरे फिलहाल न तो विधानसभा के सदस्य हैं और न ही विधानपरिषद के. ऐसे में उनके 6 महीने 27 मई को पूरे हो जाएंगे. तब तक किसी भी हालत में उन्हें चुनाव लड़कर विधानमंडल तक पहुंचना जरूरी है. कोरोना संक्रमण के कारण चुनाव करा पाना मुश्किल प्रतीत होता है.


राज्यपाल की भूमिका सबसे अहम


उद्धव सरकार के सूत्रों का कहना है कि कोश्यारी ने हमारी बात सुनी लेकिन उनका रवैया टाल-मटोल वाला रहा. इसलिए हमें नहीं पता कि वह हमारी याचिका को स्वीकार करेंगे या नहीं. उन्होंने कहा कि ठाकरे के नामांकन पर अनिश्चितता के मद्देनजर सरकार विधान परिषद चुनावों के लिए चुनाव आयोग से संपर्क करने पर विचार कर रही है.


कोरोना संक्रमण की वजह से टालने पड़े चुनाव


आपको बता दें कि पहले विधानपरिषद के सदस्यों के चुनाव 24 अप्रैल को प्रस्तावित थे लेकिन बाद में इन्हें कोरोना वायरस के कारण टाल देना पड़ा. पहले की योजना के अनुसार नौ सीटों के लिए 24 अप्रैल को चुनाव होने थे और ठाकरे को चुनाव लड़ना था.


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हालांकि कोरोना वायरस की वजह से आयोग ने चुनाव को स्थगित कर दिया. इसी वजह से मुख्यमंत्री चाहते हैं कि राज्यपाल अपने कोटे की खाली पड़ी दो सीटों में से एक पर उन्हें नामित कर दें. लेकिन ये केवल राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है.


6 माह की समय सीमा मई में खत्म


आपको बता दें कि उद्धव ठाकरे ने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर 27 नवंबर को शपथ ली थी. वह इस समय न तो राज्य से विधायक हैं और न ही विधान परिषद के सदस्य. संविधान के अनुसार उन्हें छह महीने के अंदर किसी सदन का सदस्य बनना जरूरी है. जिसके लिए समयसीमा 27 मई को खत्म हो रही है.