जयपुरः गुलाबी नगरी के तौर पर मशहूर जयपुर गुरुवार को सियासी रंगत में रंगा दिखा. खासकर तब जब दो कद्दावर नेता एक महीने बाद आमने-सामने आए. दोनों ने एक-दूसरे को देखा तो आगे बढ़े. हाथ मिलाया. कैमरा का फ्लैश चमका और एक तस्वीर सामने आ गई जिसके जरिए यह स्थापित करने की कोशिश की गई, अब कांग्रेस में सब ठीक है. 


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सचिन-गहलोत ने मिला लिया हाथ
यह दोनों नेता थे राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट. दोनों के चेहरों पर मास्क चढ़ा रहा था तो इस मिलन-भेंट के असल भाव छिपे रहे. न मुस्कान दिखी न चिंता और न ही क्रोध. वह मान-अपमान भी छिप गया जिसका झंडा सचिन पायलट बुलंद कर रहे थे.



सीएम गहलोत ने भी आ बैल मुझे मार वाली टिप्पणी करते हुए जिन्हें पद से हटाया था. उनसे हाथ मिला लिया है. 


सीएम गहलोत की सरकार बची रही
शुक्रवार को गहलोत सरकार ने विश्वास प्रस्ताव जीत लिया है, सरकार बचा ले गए हैं. वह सीएम बने हुए हैं. और पायलट...पायलट का क्या. उनका विरोध की उड़ान भर रहा प्लेन क्रैश हो गया है. वह इस वक्त विधानसभा में बैठे हैं,



बिना पद बिना कुर्सी के. वह भी विपक्षी दलों के पास. अपनी बदली हुई सीट पर.


विडंबनाओं से भरी है कांग्रेस
इस वक्त में कांग्रेस विडंबनाओं से भरी पार्टी है. हम जब भी इस पार्टी की ओर देखें तो वहां हमेशा गांधी परिवार के चेहरे ही नजर आते हैं. अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी राजनीतिक तौर पर परिपक्व नहीं माना जाता है, तो राहुल गांधी को देखकर उनके लिए सुझाव ही आते हैं, उन्हें पीएम पद की ओर देखने से पहले जमीन पर काम करना चाहिए.



प्रियंका वाड्रा को अलग रखते हैं क्योंकि वक्त-वक्त पर वह अपनी ताकत दिखा जाती हैं. 


सचिन पायलटः वह कांग्रेसी जिसमें पोटाश बाकी है
इसके बाद नई पीढ़ी में आते हैं कांग्रेस से सचिन पायलट. उनमें राजनीति को लेकर हमेशा ही एक अलग पोटाश नजर आता रहा है. सबसे युवा के तौर पर राजनीति में एंट्री लेना, केंद्रीय राज्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना,



प्रबंधन ऐसा कि मोदी लहर के बीच से प्रदेश में जीत हासिल कर लेना. इतना सबकुछ होना वाकई उन्हें सीएम पद का पुरजोर दावेदार बना देता है. 


लेकिन, सचिन कांग्रेसी परिपाटी का शिकार बने
लेकिन वह शिकार हुए कांग्रेस की उसी पुरानी परिपाटी का, जिसका शिकार कई बार पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हो चुके हैं. पीएम इंदिरा की मौत के समय अगले पीएम पद के वे प्रबल दावेदार थे, लेकिन मुखर्जी न सिर्फ इस दावेदारी से दूर हुए बल्कि मुख्यधारा की राजनीति से भी दूर रखे गए.



राजीव गांधी के बाद भी उन्हें तुरंत मौका नहीं मिला, बल्कि योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनकर धीरे-धीरे वह 2004 की सीढ़ी तक पहुंचे थे.


ठीक वैसे ही जैसे तीन-तीन बार प्रणब मुखर्जी शिकार बने
एक बार फिर लग रहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के इन्कार करने के बाद पीएम वही बनेंगें, लेकिन इतने में अचानक ही मनमोहन सिंह पीएम पद पर आसीन किए गए. प्रणब मंजिल की ऊंची सीढ़ी से एक बार फिर कदम भर पीछे आ गए.



सचिन पायलट इसी स्थिति का शिकार हुए. कांग्रेस की परिपाटी वाले इतिहास ने खुद को पायलट के तौर पर दोहराया. 


शुरू से रही पायलट-गहलोत में खेमेबाजी
चीजें जैसी नजर आती हैं, वैसी होती नहीं. सचिन पायलट सीएम नहीं डिप्टी सीएम बने. कांग्रेस को लगा रण जीता, भाजपा को कम से कम कहीं तो शिकस्त दी.



लेकिन राजनीति में सबसे बुरी हार होती है किसी की महत्वकांक्षा की हार. लिहाजा पायलट और गहलोत में  खेमेबाजी शपथ ग्रहण के अगले पल से शुरू हो चुकी थी. 


2019 में बढ़ी टीस
2019 लोकसभा चुनावों का समय था. राजस्थान का प्रभार पायलट के कंधों पर था और पायलट बिल्कुल नहीं चाहते थे कि इस कंधे पर गहलोत हाथ रखें. लिहाजा यह टीस बढ़ती गई. इतनी बढ़ी कि गहलोत के बेटे को भी मनमाफिक सीट नहीं मिली. 


जब पायलट ने बदला ट्विटर बायो
आपको याद होगा पायलट का वह ट्विटर बायो जब उन्होंने डिप्टी सीएम हटा लिया. उन्होंने इसके जरिए सीएम अशोक गहलोत की कार्रवाई का संज्ञान दिया था. इसके बाद एक और ट्वीट चमका, सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं.



बधाई हो आपको सचिन, आपने राजनीति की चौसर को एक और जुमले की सौगात दी है. 


सचिन का एक पुराना ट्वीट भी देख लीजिए
लेकिन इस ट्वीट से भी महीनों पहले किए गए एक ट्वीट पर नजर डाल लेनी चाहिए, जो सचिन पायलट ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो जाने को लेकर किया था. ट्वीट का राजनीतिक हल्कापन यह जताने के लिए काफी था कि कांग्रेस के सियासी पानी में पड़ा पेट्रोल राजस्थान तक तैर गया था. 


पार्टी को शुरू से दे रहे थे नसीहत
सचिन पायलट ने एक बेहद नपातुला, सधा हुआ ट्वीट किया था. उन्होंने लिखा था कि ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से अलग होते देखना दुखद है. काश! कुछ बातों को पार्टी में ही मिल-जुलकर सुलझा लिया गया होता.’



उनका यह लिखित कथन इस बात की मौन गवाही दे रहा था कि कांग्रेस में सब ठीक नहीं है. इसके साथ ही आलाकमान के लिए नसीहत भी थी कि वह पार्टी के नए नेताओं की शिकायतों को इतना अनसुना न करे. 


बदली गई है विधानसभा में पायलट की सीट
शुक्रवार को विधानसभा में सचिन पायलट निर्दलीय विधायकों के साथ बैठे. सीट नंबर 127 पर उनका स्थान काबिल हुआ. यहां बैठने के बाद पायलट ने अपने भाषण में कहा कि मुझे विपक्ष के पास इसलिए बिठाया गया, क्योंकि सीमा पर सबसे ताकतवर योद्धा को भेजा जाता है.



'इस सरहद पर कितनी भी गोलीबारी हो, मैं कवच और भाला लेकर सरकार को बचाने के लिए खड़ा हूं. मुझे सरहद पर बिठाया गया है, सरहद पर सबसे मजबूत योद्धा को भेजा जाता है.' 


आखिर पायलट ने क्या पाया
तो इतना सब होने के बाद सचिन पायलट लौट आए हैं. हालांकि वह कहीं जा भी नहीं रहे थे, जैसा कि उन्होंने कहा था, लेकिन फिर भी यह सवाल तो बनता है कि आखिर पायलट ने हासिल क्या किया. उन्होंने किस मान-सम्मान की बात की थी, जिसे पाने के लिए महामारी के काल में एक राज्य के विधायक बंधक रहे. और फिर ऐसा क्या मिल गया कि उन्होंने सब गंवाकर वापसी कर ली है. 



विधान सभा में गैलरी के पास आखिरी पंक्ति में बैठे सचिन पायलट शायद यह सवाल सोच रहे होंगें? और अगर नहीं सोच रहे हैं तो उन्होंने सोचना चाहिए. क्योंकि लगता है कि फिलहास कांग्रेस में वही थोड़ा ठीक-ठाक सोच सकते हैं. 


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