नई दिल्लीः चुनाव के मौसम (Election time) में जनता का सेवक बनने का दावा करने वाला नेता, हाथ जोड़ पैदल चलने वाले राजनीतिक लोग और किसी मातम पुर्सी में दहाड़ें मारकर रोने वाले आज के नेता. इन्हें जब भी आप सड़क पर देखें तो लाव लश्कर की शान, घर देखें तो आलीशान कोठियां और पहनने को महंगे कपड़े. इसके अलावा देश के धनी मानी लोगों की ओर से उपहार. 


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अनुकरणीय है शास्त्री जी की ईमानदारी
इन सबको देखते हुए हर आम आदमी तुरंत ही एक जुमला उछाल देता है, इस हिंदुस्तान का कुछ नहीं हो सकता, भ्रष्टाचार इसकी रग-रग में है और लालच यहां के नेताओं की दूसरी चमड़ी. इस गर्द भरी सच्चाई की धूल को जरा साफ करते हैं तो पीछे एक चेहरा सा उभरता है. सौम्य लेकिन दृढ़ चेहरा. वह जिसकी आवाज कुछ नाजुक लगे, लेकिन जब कोई फैसला करे तो सरहद पार तक उसकी बोली सुनाई दे. 




भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती यह देश आज ही मना रहा है. वह देश जहां महात्मा गांधी के ही सरलता के विचारों को आज ठोकर मारी जा जुकी है, वहां शास्त्री जी के विचार क्या ही ठहर पाते. फिर भी राजनीति से परे हटकर शास्त्री जी की ईमानदारी अनुकरणीय है, जिसके कई किस्से प्रेरक प्रसंग बनकर मशहूर हैं. 


उत्तर प्रदेश में हुआ जन्म
उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में कायस्थ हिंदू परिवार में 2 अक्टूबर 1904 को जन्म लिया लाल बहादुर शास्त्री ने. पुकारने का नाम रखा गया नन्हें. बचपन में नाम के आगे लगा था श्रीवास्तव, लेकिन जातिवाद में बंटा भारत खलता था, इसलिए जैसे ही काशी विद्यापीठ से नन्हें को शास्त्री की उपाधि मिली. उन्होंने अपने आधिकारिक नाम लाल बहादुर के आगे शास्त्री लगा लिया.



1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ. ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियां-कुसुम व सुमन और चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक. 


नहीं खरीदी महंगी साड़ी
दरअसल शास्त्री जी जिस मिजाज के थे या रहे, वैसा मिजाज कभी भारतीय राजनीति के खांचे में फिट नहीं हुआ. दरअसल, अनुशासन और सत्य को लेकर शास्त्री जी कड़क स्वभाव के थे. लेकिन जैसे ही कोई जरूरतमंद सामने पड़ता उनके लिए जल की तरह शीतल हो जाते थे. एक बार वह किसी दुकान पर साड़ी लेने गए.



प्रधानमंत्री को आया देख साडी़ वाले ने 500, 1000 (उस जमाने की महंगी) की साड़ियां दिखाईं. इस पर शास्त्री जी ने कहा, भाई मैं गरीब आदमी हूं मुझे सस्ती साड़ी दिखाइए. दुकानदार ने कहा-आप कैसी बात करते हैं आप हमारे प्रधानमंत्री हैं, मैं आपको भेंट कर रहा हूं. लेकिन इस पर शास्त्री जी कड़क स्वर में बोले, मैं भेंट नहीं लेता, साड़ी वाले से उन्होंने सस्ती वाली ही साड़ी को लिया. 


मेरा काम 40 रुपये में ही चल रहा है
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के तहत उनको 50 रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती थी. एक बार उन्‍होंने अपनी पत्‍नी से पूछा कि पैसे समय पर मिल जाते हैं न और घर का खर्च तो आराम से चल जाता है न. इस पर उनकी पत्नी ललिता ने बताया कि घर तो 40 रुपये में ही चल जाता है.



इसके बाद शास्त्री जी ने खुद आर्थिक सहायता को कम करने की मांग की थी. इस प्रसंग से वर्तमान राजनीति प्रेरणा ले सकती है जो कि आए दिन किसी न किसी घोटाले में फंसती दिखती है. 


जब देश से की एक वक्त भोजन छोड़ने की अपील
1965 की लड़ाई के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको पीएल 480 के तहत जो लाल गेहूँ भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे. उस समय भारत गेहूं के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था. शास्त्री जी को ये बात बहुत चुभी क्योंकि वो स्वाभिमानी व्यक्ति थे. उन्होंने देशवासियों से कहा कि हम हफ़्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे. उसकी वजह से अमरीका से आने वाले गेहूँ की आपूर्ति हो जाएगी.


लेकिन पहले पत्नी ललिता से किया विमर्श
बताया जाता है कि इस अपील से पहले उन्होंने पत्नी ललिता शास्त्री से कहा कि क्या आप ऐसा कर सकती हैं कि आज शाम हमारे यहां खाना न बने. मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना न खाने की अपील करने जा रहा हूं. मैं देखना चाहता हूँ कि मेरे बच्चे भूखे रह सकते हैं या नहीं. जब उन्होंने देख लिया कि हम लोग एक वक्त बिना खाने के रह सकते हैं तो उन्होंने देशवासियों से भी ऐसा करने के लिए कहा. 


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