Gandhi Jayanti Special: बापू के राम को अपना लेती कांग्रेस तो आज ये दुर्दशा न होती

कांग्रेस ने गांधी का नाम अपनाया, गांधी का राम नहीं. बापू जीवन भर राम-राम करते रहे किन्तु कांग्रेस ने राम के प्रति प्रेम कदापि प्रदर्शित न किया, यदि भारत के इस आध्यात्मिक धरातल का यह महामंत्र कांग्रेस ने अपने बापू से ले लिया होता तो आज इस पार्टी का इतिहास दूसरा होता..  

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Oct 2, 2020, 04:13 PM IST
    • बापू ने अंत समय में भी श्री राम ही कहा
    • यह श्री कृष्ण का अर्जुन के लिये संदेश था
    • कांग्रेस का दुर्भाग्य देखिये - बापू से न राम लिया न रामराज्य !
Gandhi Jayanti Special: बापू के राम को अपना लेती कांग्रेस तो आज ये दुर्दशा न होती

नई दिल्ली. जीवन भर बापू ने राम नाम स्मरण किया और अपने अंतिम क्षण में उनकी जिव्हा पर प्रभु राम का ही नाम था. राम के नाम ने उनके अंतर में जो दिव्यता की सृष्टि की थी, वही उनके व्यक्तित्व में दर्शित होती थी. कांग्रेस बापू के राम नाम का जादू समझ नहीं पाई और बापू को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल करती रही. बापू से सिर्फ राम का नाम ले लेती यह ऐतिहासिक पार्टी तो तर जाती और इसके ऐतिहासिक पापों को क्षमा मिल जाती.

अंत समय में भी श्री राम

अपने दैनिक जीवन में बापू सदा ही राम नाम का स्मरण करते रहे और इस कारण ही उनको यह दैवीय विशेषाधिकार प्राप्त हुआ कि अंत समय में जब वे वैश्विक धरातल से आध्यात्मिक महाप्रस्थान कर रहे थे, उनके होठों पर श्री राम का नाम था. गांधी की प्रिय पुस्तक श्रीमद् भगवद्गीता के आठवें अध्याय को पढ़ कर गांधी के जीवन के इस अंतिम चमत्कार के महत्व एवं माहात्म्य को समझा जा सकता है.  

श्री कृष्ण ने कहा था अर्जुन से

श्रीमद् भगवद्गीता के आठवें अध्याय भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है - अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्..यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः!! अर्थ ये है कि मनुष्य जीवन के अंत समय में यदि मेरा ही स्मरण करता हुआ अपने शरीर से मुक्त होता है तब  वह मेरे ही भाव को ही प्राप्त होता है अर्थात मेरे धाम ही आता है, और इसमें किन्चित भी सन्देह नहीं है.

कांग्रेस ने न राम लिया न रामराज्य

बापू ने राम नाम अपनी माता जी से लिया और फिर उसे कभी नहीं छोड़ा. अपनी माता जी की प्रेरणा से ही उन्होंने श्री मद्भगवद्गीता और रामचरितमानस पढ़े और तब उनका अंतर्मन अहिंसक भी हुआ और मानवप्रेमी भी. इन दोनों धार्मिक पुस्तकों ने उनके जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था. राम नाम और राम के काम को आधार बना कर ही उन्होंने राम राज्य की संकल्पना की थी जिसको आज भी विश्व में आदर्श राजनीतिक संकल्पना माना जा सकता है. दुर्भाग्य से बापू की पार्टी कांग्रेस ने न राम का नाम बापू से लिये न ही रामराज्य की संकल्पना को.

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