ऐसे ही नहीं राजनीति के अजात शत्रु कहलाए अटल जी, जानिए किस्से
एक तरफ जहां तमाम नेता एक पंक्ति भी बोलने के लिए पर्ची का सहारा लेते हैं, वाजपेयी इससे बिल्कुल अलग थे. वह अपने भाषणों में सीधे जनभावनाओं को शब्द बनाकर परोस देते थे. यही उनके भाषण की अद्भुत कला थी. कहते हैं कि यह कला उन्हें अपने पिता से मिली थी.
नई दिल्लीः हिंदुस्तान की राजनीति का लब्बोलुआब कुछ ऐसा है कि कोई नेता भले ही किसी पार्टी से निकला हो और उसकी पहचान रहा हो, लेकिन उसकी असल पहचान तभी बनती है, जब वह जन नेता न बन गया हो. असल में नेता होने की मांग भी यही है कि आप लोगों के हों, जनता के हों. आधुनिक युग में यह पैमाना महात्मा गांधी की वजह से बना और फिर इसी पैमाने के फ्रेम में सेट हुए नेहरू, पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह और इसके बहुत बाद में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी.
जननेता की इस सूची में हम आखिरी नाम पर ही जोर देंगे. क्योंकि यह वक्त भी उनका चुनाव कर रहा है. भारत रत्न से सम्मानित, पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की आज शुक्रवार 25 दिसंबर को जयंती है. ऐसे में याद आ रही है उनकी राजनीतिक दौर की तमाम बातें, उनकी हाजिर जवाबी और इससे भी अलग एक सामान्य जीवन के तौर पर उनका व्यक्तित्व. व्यक्तित्व का अंदाजा तो इसी से लगाइये कि उन्हें राजनीति का अजात शत्रु कहा गया.
ऐसे आए राजनीति में
कई घटना क्रमों में उलझे जीवन के किस्सों की बात करें तो सबसे पहला सवाल राजनीति में कैसे आ गए जैसा निकलता है. इसका जवाब खुद बखुद एक इंटरव्यू में वाजपेयी ने दिया था. उन्होंने जो बताया, उसका मजमून कुछ ऐसा. वह 1953 का साल था. वाजपेयी पत्रकार हुआ करते थे. उसी समय भारतीय जनसंघ के नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर में लागू परमिट सिस्टम का विरोध कर रहे थे.
वे परमिट सिस्टम को खिलाफ श्रीनगर पहुंच गए थे, जिसे बतौर खबर कवर करने वाजपेयी भी उनके साथ गए. वाजपेयी इंटरव्यू में बताते हैं, पत्रकार के रूप में मैं उनके साथ था. वे गिरफ्तार कर लिए गए. इसके बाद डॉ. मुखर्जी ने उनसे कहा कि वाजपेयी जाओ और दुनिया को बता दो कि मैं कश्मीर में आ गया हूं,
बिना किसी परमिट के.’ इस घटना के कुछ दिनों बाद ही नजरबंदी में रहने वाले डॉ. मुखर्जी की बीमारी की वजह से मौत हो गई. जिससे वाजपेयी काफी आहत हुए. वह इंटरव्यू में कहते हैं, ‘मुझे लगा कि डॉ. मुखर्जी के काम को आगे बढ़ाना चाहिए.’ इसके बाद वाजपेयी राजनीति में आ गए.
हाजिर जवाबी से कर दिया था दंग
अटल बिहारी वाजपेयी आजीवन अविवाहित रहे. शादी न करने के सवाल पर वह मुस्कुरा दिया करते थे. लेकिन एक बार इसी से संबंधित एक वाकये पर उन्होंने ऐसा जवाब दिया जिसे आज तक याद किया जाता है.
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से एक बार सवाल पूछा गया कि आप अब तक कुंवारे क्यों हैं? अपनी हाजिर जवाबी के लिए मशहूर वाजपेयी ने पत्रकारों को लाजवाब करते हुए कहा था कि 'मैं अविवाहित हूं लेकिन कुंवारा नहीं हूं.
भाषण देने की अद्भुत कला
एक तरफ जहां तमाम नेता एक पंक्ति भी बोलने के लिए पर्ची का सहारा लेते हैं, वाजपेयी इससे बिल्कुल अलग थे. वह अपने भाषणों में सीधे जनभावनाओं को शब्द बनाकर परोस देते थे. यही उनके भाषण की अद्भुत कला थी. कहते हैं कि यह कला उन्हें अपने पिता से मिली थी.
इसके लिए उन्हें कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ी. वाजपेयी के भाषण में हास्य, विनोद और मुद्दे की बात हुआ करती थी. वह लोगों को अपनी सभा में हंसाते भी हैं और भावनाओं में भी बहा ले जाते थे.
संसद में पहला भाषण भी इसलिए ही यादगार है
यह था साल 1957, पहली बार अटल चुनाव जीत कर संसद आए थे. उस समय जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. वो नए सांसदों को बोलने का मौका देते थे और उन्हें गौर से सुनते भी थे. जब उन्होंने पहली बार वाजपेयी का भाषण सुना, वो काफ़ी प्रभावित हुए. पंडित नेहरू ने उन्हें देश का भावी प्रधानमंत्री बताया था.
बतौर सांसद उन्होंने संसदीय मर्यादाओं हमेशा पालन किया. यह उनके आचरण में था. यही कारण है कि उनके राजनीति काल में कभी कोई ऐसा मौका नहीं आया कि उनके बातों पर किसी ने आपत्ति जताई हो या हंगामा हुआ हो.
विरोधी नेताओं को ऐसे कराया चुप
ऐसा ही एक और किस्सा है. एक बार CPI के कुछ नेता लोकसभा में वाजपेयी का विरोध कर रहे थे. उन्हें बोलने नहीं दे रहे थे. तब वाजपेयी ने कहा कि जो मित्र हमारे भाषण के दौरान टोक रहे हैं, वे क्यों शाखामृगों की भूमिका अपना रहे हैं.
यह एक तरीके का नया शब्द था, जिसे सुनकर CPI नेता चुप हो गए. लेकिन शाखामृग का मतलब किसी को समझ नहीं आया. थोड़ी देर बाद प्रकाश वीर शास्त्री ने बताया कि शाखामृग का मतलब होता है बंदर. इसके बाद विपक्षी भड़क गए. लेकिन तबतक वाजपेयी अपनी बात रख चुके थे.
जन्म और राजनीतिक जीवन
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे. वह तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे. साल 1996 में वे पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे, हालांकि इस दौरान उनका कार्यकाल 13 दिनों का था.
इसके बाद उनका दूसरा कार्यकाल 13 महीने का था और फिर 1999 में जब वह पीएम बने तो उन्होंने 2004 तक पांच साल का अपना कार्यकाल किया. 2018 में 16 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद उनका निधन हो गया. भारतीय राजनीति में उनकी जयंती को सुशासन दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
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