नई दिल्लीः पांच जुलाई को हिंदी पंचाग के अनुसार पूर्णिमा तिथि है. यह पूर्णिमा गुर चरणों को समर्पित होती है. सनातन परंपरा गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्रदान करती है. महर्षि व्यास की जन्मतिथि होने के कारण आषाढ़ मास की यह पुर्णिमा व्यास पूर्णिंमा कहलाती है. उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए मानव जाति को कल्याण का मार्ग दिखाया, इसलिए भगवान विष्णु को विशेष प्रिय यह पूर्णिमा तिथि गुरु पूर्णिमा के तौर पर पूजन के साथ मनाई जाती है. 


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इसलिए गुरु हैं वेदव्यास
ऋषि पराशर और देवी सत्यवती के पुत्र के तौर पर महर्षि वेदव्यास एक निर्जन द्वीप पर जन्मे और अत्यंत काले होने के कारण कृष्ण द्वैपायन कहलाए थे. समय के चक्र के साथ तपस्या के कारण उन्होंने तीनों लोकों का सारा ज्ञान प्राप्त हो गया और वे लौकिक-पारलौकिक जगत की सूक्ष्मता और विराट स्वरूप को समझ गए.



इसके बाद उन्होंने वेदों को लिखित लिपि प्रदान की, अठारह पुराण लिखे. महाभारत का लेखन किया. इस तरह ज्ञान का सरलीकरण करते हुए उसे जन-जन तक पहुंचाया. इसलिए वेद व्यास आदि गुरु हैं. 


ऐसे करें गुरु पूजन
प्राचीन काल से गुरु पूर्णिमा गुरु पूजन दिवस के तौर पर मनाई जाती रही है. इस दिन गुरुकुलों में छात्रों का विद्यारंभ संस्कार भी होता था. अपने घर में पूजन के लिए गुरु को उच्च आसन पर बैठाएं. उनके चरण धुलाएं और पोंछे. फिर पीले या सफेद पुष्प अर्पित करें . इसके बाद उन्हें श्वेत या पीले वस्त्र दें. फल, मिष्ठान्न दक्षिणा अर्पित करें. गुरु से अपना दायित्व स्वीकार करने की प्रार्थना करें.


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