गुरु पूर्णिमा विशेषः ऋषि धौम्य और उनके दो गुरुभक्त शिष्यों की अनूठी कथा, यहां जानिए

ऋषि धौम्य और उनके दो शिष्यों की कथा गुरु-शिष्य परंपरा में विश्वास और श्रद्धा का अनुपम उदाहरण है.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jul 4, 2020, 09:55 PM IST
    • बार-बार टूट रही मेड़ के आगे लेट गया आरुणि
    • जब तक गुरु ने आदेश नहीं दिया तब तक उपमन्यु ने कुछ नहीं खाया
गुरु पूर्णिमा विशेषः ऋषि धौम्य और उनके दो गुरुभक्त शिष्यों की अनूठी कथा, यहां जानिए

नई दिल्लीः तस्मै श्री गुरुवै नमः. भारतीय वेद परंपरा ने गुरु को परब्रह्म की पदवी दी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि गुरु ऐसा रचनाकार होता है जो योग्य शिष्य देखकर उसका निर्माण करता है. यह कार्य ठीक वैसा ही है जैसा चतुर्मुखी ब्रह्म देव हर तरह से बराबर दृष्टि रखते हुए सृष्टि का निर्माण कार्य करते हैं. कार्य की इसी समानता के कारण गुरु की पदवी ब्रह्म के समान ही रखी गई है. इस पदवी के आगे स्वयं त्रिदेव भी नतमस्तक होते रहे हैं. 

गुरु ऋषि धौम्य और शिष्य आरुणि व उपमन्यु
 प्राचीन काल में ऋषि धौम्य के गुरुकुल में देश-दुनिया से छात्र वेद-वेदांग का अध्ययन करने आते थे. इन्हीं में थे आरुणि व उपमन्यु. दोनों ही महान गुरुभक्त. हालांकि यह सिद्ध न हो सका था कि उनकी गुरुभक्ति में कितनी श्रद्धा है.

एक दिन महर्षि धौम्य ने उपमन्यु को गौ चराने का आदेश दिया और यह उसके नित्य कर्म में शामिल हो गया. 

उपमन्यु की परीक्षा ली
कुछ समय बीतने पर गुरु ने उसे बुलाया और कहा, अरे उपमन्यु तुम तो काफी हट्टे-कट्टे हो. गऊ चराते हुए भोजन का प्रबंध कर लेते हुए? उपमन्यु ने कहा- जी गुरुदेव. गुरुकृपा से भिक्षा मिल जाती है. ऋषि धौम्य ने कहा- नहीं, तुम्हें बिना मुझे निवेदित किए भिक्षा नहीं खानी चाहिए. उपमन्यु ने बात मान ली. 

गुरु ने दिए आदेश
कुछ हफ्तों बाद गुरु ने फिर पूछा, उपमन्यु भोजन का प्रबंध कैसे करते हो? उपमन्यु ने कहा पहली भिक्षा आपको निवेदित कर दूसरी मैं खा लेता हूं. गुरु ने कहा-यह तो अन्याय है. तुम अन्य ब्राह्मणों के हिस्से पर लोभी बन रहे हो. उपमन्यु ने बात मान ली.

कुछ दिनों बाद गुरु ने फिर भोजन प्रबंध के बारे में पूछा तो उपमन्यु ने सिर्फ गऊ का दूध पीने की बात की, लेकिन गुरु ने उस दूध को बछड़े का हिस्सा बताते हुए उसके लिए भी मना कर दिया. उपमन्यु ने बात मान ली. 

आरुणि की चिंता
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. एक शाम आरुणि सोच रहा था कि गुरुदेव ने सारे आदेश उपमन्यु को ही दिए, मुझे सेवा का अवसर नहीं दिया. वर्षाकाल बीतने को था और शीत ऋतु के आने का संकेत था. शाम को मेघ घिर आए और कुछ ही देर में वर्षा होने लगी.

इतने में गुरु ने आदेश दिया जाओ आरुणि खेत की मेढ़ ठीक कर आओ. 

उपमन्यु के मिली डांट
इधर आरुणि खेतों को गया और उपमन्यु गौशाला में गायों को बांध रहा था. कुछ कृषकाय लग रहा था. गुरु धौम्य ने उसे देखा तो पूछ बैठे कि उपमन्यु भोजन का प्रबंध कैसे किया. उपमन्यु ने कहा- गायों का दूध पीने के बाद बछड़ों के मुंह में जो फेन लग जाता है, वही पी लेता हूं.

गुरु धौम्य ने डांटते हुए कहा-तुम बछड़े का हिस्सा कैसे पी सकते हो? यह निषेध है तुम्हारे लिए. 

भूख से हुआ व्याकुल
गुरु चले गए, लेकिन उपमन्यु दिनभर का भूखा रह गया. वह वन की ओर चल पड़ा. मार्ग में कुछ पौधों के पत्ते खाकर उसने भूख मिटाने की सोची, लेकिन अतृप्त रहा. इधर बारिश तेज होने लगी थी. आरुणि मेड़ पर जितनी मिट्टी डालता, पानी उसे बहा ले जाता. यह क्रम होते-होते रात गहरा गई. वर्षा थी कि रुकने का नाम ही न ले. 

इधर भूख से व्याकुल उपमन्यु वर्षा में भोजन के लिए भटक रहा था. मार्ग में आक के पौधे थे. चौड़े पत्तों का अनुभव कर उसने इन्हें खाने का यत्न किया, लेकिन अंधेरे में देख नहीं पाया कि ये आक के पौधें हैं. जैसे ही झटके से पत्ता तोड़ा उसका दूध छिटककर आंखों में चला गया और उपमन्यु अंधा हो गया. 

आरुणि का कठिन प्रण
इधर आरुणि लगातार मेड़ बांधते हुए थक गया था. उसने विचार किया कि वह खुद ही क्यों नहीं मेड़ पर लेट जाता. और इस तरह आरुणि खेत की मेड़ पर लेट गया. सर्द हवा में बारिश से भीगता हुआ पड़ा रहा. उधर उपमन्यु देख न पाने के कारण एक कुएं में गिर गया.

रात भर दोनों शिष्यों के लिए भारी संकट रहा. लेकिन वे अपनी गुरुआज्ञा से टस से मस न हुए. 

दोनों शिष्यों को मिली गुरुकृपा
अगले दिन दोनों ही शिष्यों को आश्रम ने पाकर धौम्य ऋषि ने दिव्य दृष्टि से उनकी स्थिति देखी और द्रवित हो उठे. अन्य शिष्यों की सहायता से उन्होंने दोनों ही कुमारों को उनके संकट से उबारा और अश्विनि कुमारों की स्तुति कर उन्हें पुनः निरोगी बना दिया. ऐसे गुरुभक्त शिष्य पाकर ऋषि धौम्य पुलकित हुए जा रहे थे. उन्होंने दोनों को वरदान में वेद-वेदांग का सारा पाठ स्मरण कर दिया. गुरु-शिष्य की यह कथा अमर हो गई. 

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