नई दिल्लीः भारत की सनातन परंपरा में जल स्त्रोतों को गंगा नदी का जल और गंगा नदी को देवी व अमृत तुल्य माना जाता है. उनका एक नाम अमृता भी है. इस मान्यता के पीछे का कारण है वह पौराणिक कथा जो बताती है कि गंगा जल में अमृत की बूंदे छलक कर गिरी थीं. इस लिहाज से गंगा स्नान पवित्र माना जाता है. भारतीय परंपरा मोक्ष की ओर ले जाने की बात करती है. यानी कि संपूर्ण मुक्ति, जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा. नदियों में स्नान इसी बात का प्रतीक है कि यह मोक्ष की ओर बढ़ने वाला एक पवित्र कदम है.


अमृत कलश से स्नान करने जैसा गंगा स्नान


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आध्यात्म के इसी उद्देश्य की पूर्ति का जरिया कुंभ स्नान है. यह मान लिया जाता है कि नदी में स्नान उसे दिव्य घड़े या कलश के जल से स्नान करने जैसा है समुद्र मंथन से निकला था. भारत में 12 वर्षों के अंतराल पर चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है. भारी जनसमुदाय के उमड़ने के कारण इसे कुंभ मेला कहा जाता है. आगामी कुंभ मेला 2021 में 14 जनवरी से शुरू होने वाला है.


ऐसे हुए हैं कुंभ के नामकरण


जिस तरह चार अलग-अलग स्थानों पर राशियों के अनुसार कुंभ आयोजित किया जाता है. ठीक उसी तरह अलग-अलग वर्षों में आयोजित होने वाले कुंभ के नाम भी अलग-अलग हैं. यह भी समय काल और राशियों की गति-स्थिति पर ही आधारित हैं. इन्हें क्रमशः महाकुंभ मेला, पूर्ण कुंभ मेला, अर्ध कुंभ मेला और कुंभ मेला कहा जाता है.


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कुंभ मेलों के प्रकार


महाकुंभ मेला: सभी कुंभ मेलों में सबसे सर्वश्रेष्ठ है महाकुंभ मेला. इसकी खासियत है कि यह दो शताब्दी के बीच यानी 144 साल में एक बार आता है. इसका आयोजन केवल प्रयाग राज में ही होता है. जब प्रयाग राज में 12 पूर्ण कुंभ पूरे हो जाते हैं तो उसके बाद महाकुंभ आयोजित होता है. त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वती) के संगम तट पर होने के कारण इसकी महानता और महत्ता अधिक है.


पूर्ण कुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानी प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है. यह राशि पर आधारित समय काल पर चलता है. एक स्थान पर उसी राशि का कुंभ होने में 12 साल लगते हैं.  


अर्ध कुंभ मेला: 12 वर्ष के अंतराल के बीच में हर साल 6 महीने में लगने वाले कुंभ को अर्ध कुंभ कहते हैं. केवल हरिद्वार और प्रयागराज में ही इनका आयोजन किया जाता है. इनकी महत्ता पूर्ण कुंभ जैसी ही होती है. दूर-दूर से श्रद्धालु जन पहुंचते हैं.


कुंभ मेला: एक स्थान के बाद राशि और ग्रहों का विचलन (अपने स्थान से हटना) अगले तीन साल में होता है. इस आधार पर हर तीन साल में राज्यों के जरिए कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है.


चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है. लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं.


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सिंहस्थ कुंभः सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से है. सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है. इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी के तट पर नासिक में होता है. सिंह राशि के विशेष नक्षत्र में होने के कारण इस कुंभ को सिंहस्थ कुंभ कहते हैं. यह कुंभ मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर भी है.


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