कैसे केदारनाथ में प्रगटे थे महादेव, जानिए पांडवों से जुड़ी यह प्राचीन कथा
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे
नई दिल्लीः बुधवार, 29 अप्रैल को बाबा केदारनाथ के पट खोल दिए गए. लॉकडाउन के आलम में केवल 16 पुजारियों को कपाटोद्घाटन पूजा के दौरान शामिल रहने की अनुमति मिली थी. कोरोना के कारण भी श्रद्धालुओं के दर्शन को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है, और भीड़ जुटना मना है, ऐसे में सिर्फ कपाट खोले गए हैं. भारतीय संस्कृति और सृष्टि का तत्व स्वरूप को अपने में समेटा हुआ यह स्थल अद्भुत है. यह महादेव शिव की ऊर्जा का क्षेत्र है.
नर-नारायण से जुड़ा है प्राकट्य
केदारनाथ का प्राकट्य श्रीहरि के अवतार से जुड़ा है. सृष्टि के आदिकाल में भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण हिमालय के श्रृंग यानी की चोटी पर तपस्या रत थे. उन्होंने भगवान शिव की घोर आरधना की. महातपस्वियों की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया. यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं.
पांडवों को किया भातृहत्या के दोष से मुक्त
पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे. भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले. वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे.
भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे. दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए.
बैल की पीठ के पिंड के तौर पर होती है पूजा
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले. पांडवों को संदेह हो गया था. अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया. अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए.
भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा. तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया. भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए. उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया. उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं.
खुल गए बाबा केदार के कपाट, पूजा में 16 लोग ही शामिल
महादेव ने ही पांडवों को बताया स्वर्ग का मार्ग
वासुदेव गोविंद के महाप्रयाण के बाद अब पांडवों को भी पृथ्वी पर रहना उचित नहीं लग रहा था. गुरु-पितामह और सखा सभी तो युद्धभूमि में ही पीछे छूट गए थे. माता-ज्येष्ठ पिता और काका विदुर भी वन गमन कर चुके थे. सदा के सहायक श्रीकृष्ण भी नहीं रहे थे.
ऐसे में पांडवों ने राज्य परीक्षित को सौंप दिया और द्रौपदी समेत वन को चले. हिमालय के इस केदार स्थल पर पहुंच कर उन्हें आगे का मार्ग नहीं मिल रहा था. तब उनकी प्रार्थना पर महादेव प्रकट हुए और अंतिम ज्ञान दिया.
उन्होंने स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त किया. इसलिए केदार स्थल मुक्ति का भी स्थल है. मान्यता है कि यदि कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता.
सिर्फ भक्ति कवि ही नहीं, इस गुप्त संदेश की खास पद्धति देने वाले भी सूरदास ही हैं