गया के इस मंदिर में होते हैं श्रीहरि के चरण चिह्न के दर्शन, अधिकमास में बढ़ जाता है महत्व
पुराणों में वर्णित गया तीर्थ की महत्ता का कारण है यहां स्थित श्रीविष्णु पद मंदिर. भगवान विष्णु के चरण कमल की छाप -पदचिह्न वाले इस मंदिर को विष्णुपद मंदिर कहा जाता है. इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है.
नई दिल्लीः अधिकमास में भगवान विष्णु की पूजा सर्वोत्तम है और सभी प्रकार के फलों को प्रदान करने वाली है. इस दौरान भगवत नाम जप, गीता का पाठ करना और सत्यनारायण की कथा श्रवण करना शुभफल प्रदान करने वाला है. विष्णु मंदिरों के दर्शन करना इस पुण्य को कई गुना बढ़ा देता है.
विष्णु मंदिरों के दर्शनों की इसी कड़ी में हम आज चलते हैं गया, जहां का विष्णुपद मंदिर मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है.
पुराणों में वर्णित है गया जी की महिमा
बिहार में स्थित गयातीर्थ सनतान परंपरा का महत्वपूर्ण और अद्भुत तीर्थ है. तीर्थराज प्रयाग और ऋषिकेश की ही तरह गया को स्थान महत्ता के आधार पर गयाजी कहते हैं. पितृपक्ष के अवसर पर यहां पितरों को तर्पण आदि दिया जाता है. मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या के दौरान गया जी में पितरों को पानी देने से वह तृप्त होते हैं और वैकुंठ गामी होते हैं.
यहां स्थित है मंदिर
गया तीर्थ की इस महत्ता का कारण है यहां स्थित श्रीविष्णु पद मंदिर. भगवान विष्णु के चरण कमल की छाप -पदचिह्न वाले इस मंदिर को विष्णुपद मंदिर कहा जाता है. इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है.
ऐसी भी मान्यता है कि पितरों के तर्पण के पश्चात इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरणों के दर्शन करने से समस्त दुखों का नाश होता है एवं पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं. फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है.
ऐसे छपे शिला पर श्रीहरि के चरण
श्रद्धालु इन पदचिह्नों का श्रृंगार रक्तवर्ण चंदन से करते हैं. इस पर गदा, चक्र, शंख आदि अंकित किए जाते हैं. यह परंपरा भी काफी प्राचीन काल चली आ रही है और अनेक वर्षों से निभाई जा रही है. इस मंदिर के साथ राक्षस गयासुर और भगवान विष्णु की पावन कथा जुड़ी हुई है.
कहते हैं कि राक्षस गयासुर को नियंत्रित करने के लिए भगवान विष्णु ने शिला रखकर उसे दबाया था. इसीसे शिला पर उनके चरण छप गए.
विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है. राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रख भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया. इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न है. विश्व में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरण का साक्षात दर्शन कर सकते हैं.
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कसौटी पत्थर से बना मंदिर
विष्णुपद मंदिर का निर्माण कसौटी पत्थर से हुआ है. इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है. सभा मंडप में 44 स्तंभ हैं. 54 वेदियों में से 19 वेदी विष्णपुद में ही हैं, जहां पर पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान होता है. यहां वर्ष भर पिंडदान होता है.
यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से ही मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं. मंदिर के पास ही सीता कुंड है. मान्यता है कि माता सीता ने सैकत (बालू) पिंड महाराज दशरथ का पिंडदान किया था.
अद्भुत है मंदिर की छटा
विष्णुपद मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और 50 किलो सोने की ध्वजा लगी है. गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है, जिसके अंदर भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान है. गर्भगृह का पूर्वी द्वार चांदी से बना है.
वहीं भगवान विष्णु के चरण की लंबाई 40 सेंटीमीटर है. 18 वीं शताब्दी में महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था, लेकिन यहां भगवान विष्णु का चरण सतयुग काल से ही है.
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