नई दिल्लीः विश्व में कर्म की प्रधानता को सार्थक रूप से स्पष्ट करने वाले देव हैं देव शिल्पी विश्वकर्मा. संपूर्ण चराचर जगत में जो भी निर्माण, सृजन, विकास आदि होता दिख रहा है, प्रेरक रूप में इसके पीछे विश्वकर्मा की ही प्रेरणा है. गीता के सार में भगवान कृष्ण ने जो कर्म ही पूजा है कि सिद्धांत दिया है, विश्वकर्मा इसी सिद्धांत के आकार, सजीव और मूर्त स्वरूप हैं. इसीलिए विश्वकर्मा हर तरह के कारीगरों के आराध्य हैं और पूज्य भी हैं. 


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इस दिन मनाई जाती है विश्वकर्मा जयंती
विश्वकर्मा जयंती मनाने में एक आश्चर्य भी है. सनातन परंपरा के सभी त्योहार हिंदी मास और तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं. लेकिन विश्वकर्मा जयंती का आयोजन और पूजन 17 सितंबर को किया जाता है.



दरअसल, ऐसा नहीं है कि यह पूजा अंग्रेजी या रोमन तिथि के अनुसार हो रहा है. वास्तव में यह पूजन भी सनातन परंपरा के अनुसार होता है. 


इस बार 16 सितंबर को पूजा
दरअसल इसके पीछे रहस्य यह है कि विश्वकर्मा भगवान की उत्पत्ति कन्या संक्रांति के दिन हुई थी. इसे भाद्र संक्रांति भी कहते हैं.  सूर्य के पारगमन के आधार पर कन्या संक्रांति की तिथि निश्चित की जाती है.



लगातार कई सालों से यह संक्रांति 17 सितंबर को पड़ृ रही थी, लेकिन इस वर्ष 2020 में 16 सितंबर (यानी आज ही) कन्या संक्रांति पड़ रही है. इसलिए इस बार 16 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जा रहा है. 


ऐसे हुई देव शिल्पी की उत्पत्ति
एक मान्यता है कि विश्वकर्मा महाराज का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था. हालांकि ऐसा पौराणिक उल्लेख बहुत नहीं मिलता है. लेकिन सबसे अधिक प्रचलित मान्यता है कि सृष्टि के रचनाकार, विधाता और विधि कहे जाने वाले ब्रह्मदेव ने अपनी मानसिक शक्तियों को एकत्र कर विश्वकर्मा को प्रकट किया था.



ब्रह्मदेव से उत्पन्न होने के कारण विश्वकर्मा ब्रह्मपुत्र और ब्रह्मावतार भी कहे जाते हैं. 
ब्रह्मदेव को पूजन भाग न मिलने का श्राप है, लेकिन विश्वकर्मा के रूप में उत्पन्न होकर ब्रह्ंदेव कर्म के प्रधान देव बन गए. 


यह हैं देव शिल्पी विश्वकर्मा के सृजन


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पी कहा जाता है. वे निर्माण एवं सृजन के देवता हैं.  वे संसार के पहले इंजीनियर और वास्तुकार कहे जाते हैं. पौराणिक आख्यानों के आधार पर उन्होंने कई शिल्पों की रचना की है.



उन्होंने ही देवताओं की अमरावती बसाई. रावण की सोने की लंका का निर्माण किया. इंद्र का वज्र बनाया, देवी अदिति के कभी ने क्षीण होने वाले कुंडल बनाए. देवताओं के अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया. द्वापर में द्वारिका बनाया. यक्षों के लिए विमानों की रचना की. कुबेर को पुष्पक विमान उन्होंने् ही बनाकर भेंट किया था. 


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