नई दिल्लीः कोरोना का कहर अभी जारी है. इसके साथ ही सारा विश्व इससे जूझ ही रहा है. दुनिया भर में इस लड़ाई से लड़ते हुए घोर त निराशा का भी आलम है. इसके साथ ही लोग सोच रहे हैं कि कितने दिन और इस तरह घरों में बंद होना होगा. भारत में लॉकडाउन की तारीख भी बढ़ा दी गई है. घरों में रहना तो यहां भी मुश्किल हो रहा है, क्योंकि कामकाज ठप होने से लोग चिंता में हैं. लेकिन इस मुश्किल दौर में हम सभी को हिम्मत और संयम बनाए रखना है. वयं राष्ट्रे जागृयामः (हम राष्ट्र को जगाए रखेंगें, जागृत करेंगे)


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प्रधानमंत्री का आह्वान
कोरोना पर आज देशभर को संबोधित करते हुए एक सूक्ति से अपनी बात समाप्त की. उन्होंने कहा, वयं राष्ट्रे जागृयामः. यह एक ऋषि वाणी है. यह महज उद्बोधन नहीं बल्कि एक अलौकिक लड़ाई के लिए चेतना का टॉनिक है. यानी यह सीधी-सीधी मांग है कि इस वक्त राष्ट्र के संरक्षण में हर किसी का योगदान जरूरी है. योगदान यही है कि महामारी के इस काल में हम अपने घरों में रहें, लेकिन निराशा के भंवर में न धंस जाएं, बल्कि जीवंत रहें और जागृत रहें. इसके अलावा अन्य की भी चेतना जागृत करते रहे हैं. विश्व भर में कोरोना के खिलाफ हो रहे इस बचाव के महायज्ञ में सभी को साथ निभाना है. होम करते हुए हाथ थोड़े बहुत जलते ही हैं, लेकिन हवन करना तो नहीं छोड़ा जा सकता.



कहां से निकली है यह सूक्ति
यजुर्वेद से भोज पत्रों से निकली यह सूक्ति भारतीय मनीषा का वर्तमान के लिए आशीर्वाद है. प्राचीन काल में मानव समुदाय जब सभ्य हुआ और उसने दैव आशीर्वाद से संगठित होकर एक व्यवस्था का संचालन शुरू किया. यह दौर अधिनायक वाद का था और तब किसी समुदाय का नायक समुदाय के पालन-भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठाता था. उनकी रक्षा का वचन देता था और रंजन करने वाला यानी राजा कहलाता था. उसके लिए क्षत्रिय धर्म निश्चित किया गया.



राजा को दिशा देने का कार्य गुरु करते थे और पुरोहितों का एक समूह राजा के अनुष्ठानों का पालन करवाते हुए राज्य संचालन में सहायक होता था. यजुर्वेद का मूल आदर्श यज्ञ कर्म का है. इस आधार पर अग्नि में समिधा देना ही यज्ञ नहीं है, बल्कि जीवन में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भी यज्ञ है.


पुरोहित लेते थे वचन
इसी यज्ञ की महिमा को बनाए रखने के लिए पुरोहितों का सदस्य यह व्रत और संकल्प लेते हुए वचन लेता था. कहता था वमं राष्ट्रे जागृयामः पुरोहिताः हम सभी पुरोहित राष्ट्र को जागृत रखने का संकल्प लेते हैं. यह जागना कोई नींद से जागना नहीं है. यह जागना है कर्तव्य पालन के प्रति जागना, आध्यात्मिक उन्नति के लिए जागना. यह सूक्ति वाक्य राजा और पुरोहित को परस्पर उनके असल कर्तव्यों को याद दिलाता था. विधिता ब्रह्मा द्वारा लिखित वेद और वेदव्यास जी द्वारा चार भागों में विभाजित वेद मंत्र और सूक्तियां आज भी कल्याण कारी हैं.


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क्यों छोड़ा पीएम ने पुरोहित शब्द
यह पूरी सूक्ति वयं राष्ट्रे जागृताम् पुरोहिताः है. यानी कि पुरोहितों की ओर से लिया गया वचन. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन का अंत करते हुए सिर्फ वयं राष्ट्रे जागृताम् कहा. यानी कि वह सिर्फ किसी जमाने में पुरोहित रहे किसी व्यक्ति उसके कर्तव्य की याद नहीं दिला रहे हैं, बल्कि देश वासियों को संबोधित कर उनसे कोरोना से बचाव के लिए इस यज्ञ में शामिल होने के लिए कह रहे हैं.



हमें अपनी जिम्मेदारी समझते हुए कोरोना के प्रति राष्ट्र के लिए जागरूक और जागृत होना है. इसी में भलाई है. यही पीएम मोदी का संदेश है. 


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