मर्यादा पुरुषोत्तम राम इस सृष्टि के सभी सद्गुणों के भंडार हैं. इस अयोध्या वासियों को राम राज्य के लिए काफी लंबा इंतजार करना पड़ा. लेकिन जब राम ने राजा के रुप में शासन करना शुरु किया, तब उसकी तुलना का कोई भी राज्य पूरी धरती पर नहीं था. 

राजा के रूप में राम के आदर्श 
भगवान राम के एक आदर्श राजा के स्वरुप की झलक तब दिखाई देती है. जब पिता से जंगल में जाने का आदेश प्राप्त होने के बाद भगवान राम भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता समेत वन के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. 
लेकिन जब ननिहाल से लौटे भाई भरत को बड़े भैया के वन गमन का पता चलता है तो वह भागते हुए उनके पीछे जाते हैं. तब जगत प्रसिद्ध भरत मिलाप होता है. उस समय भगवान राम ने भरत के राज्य व्यवस्था के संबंध में कुछ सवाल पूछे. जो आज भी आदर्श हैं 


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वाल्मीकि रामायण के मुताबिक भगवान ने कहा-  


कच्चिद्देवान् पितृन् भृत्यान गुरून् पितृसमानपि|
वृद्धाश्च तात वैघाश्चं ब्राह्नाणाश्चाभिमन्यसे|| (अयोध्या कांड)


कच्चित्सहस्न्नान् मूर्खणामेकमिच्छसि पण्डितम्|
पण्डितो हार्थकृच्छेषु कुयार्निन्न: श्रेयसं महत्|| (अयोध्या कांड)


बुजुर्गों का सम्मान
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवन राम अपने भाई भरत से कहते हैं कि - 


हे भरत, तुम अपने राज्य में विद्वानों रक्षकों नौकरों गुरुओं पिता के समान पूज्य बड़े बूढ़ों चिकित्सकों विद्वानों का सत्कार तो करते हो. 


हे !भाई तुम बाण और अस्त्र विद्या में निपुण तथा नीतिशास्त्र विशारद धनुर्वेद के आचार्यों का आदर सत्कार तो करते हो. 


इन दोनों उक्तियों में भगवान राम अपने भाई भरत को बुजुर्गों का सम्मान करने का निर्देश दे रहे हैं. क्योंकि उनके आशीर्वाद से ही राज्य का संचालन सुचारु रूप से संभव है. 


राज्य व्यवस्था के लिए निर्देश 


भगवान राम ने भरत क मंत्रियों और सेनापति के चुनाव के लिए कुछ इस प्रकार निर्देश दिए. जो कि आज भी उतने ही आवश्यक हैं-


भगवान ने पूछा हे तात, क्या तुमने अपने सामान विश्वसनीय वीर नीतिशास्त्र के जाने वाले लोभ में न फंसने वाले प्रमाणिक कुल उत्पन्न और संकेत को समझने वाले व्यक्तियों को मंत्री बनाया है.


क्योंकि,   हे राघव मंत्रणा को धारण करने वाले नीतिशास्त्र विशारद सचिवों के द्वारा गुप्त रखी हुई मंत्रणा हीं राजाओं की विजय का मूल होती है. तुम अकेले तो किसी बात का निर्णय नहीं कर लेते तुम्हारा विचार कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व दूसरे राजाओं को विदित तो नहीं हो जाता. 


इन पंक्तियों ने भगवान ने राजा के लिए एकाधिकार की व्यवस्था को त्याज्य बताया है. उनके मुताबिक मंत्रियों और दूसरे विद्वानों की सलाह से शासन चलाना ही सर्वोत्तम है.   



भगवान आगे कहते हैं. हे भरत, तुम हजार मूर्खों की अपेक्षा एक बुद्धिमान परामर्शदाता को रखना अच्छा समझते हो ना? क्योंकि संकट के समय बुद्धिमान व्यक्ति महान कल्याण करता है.  


राज्य में शांति के लिए सेना संबंधित भगवान के निर्देश 
भगवान श्रीराम के आगे के वचन राज्य में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेहद जरुरी हैं. प्रभु राम अपने भाई भरत से कहते हैं कि 


हे केकईनंदन, तुम्हारे राज्य में उग्र दंड से उत्तेजित प्रजा तुम्हारा अथवा तुम्हारे मंत्रियों का अपमान तो नहीं करती? 


हे भरत. क्या तुमने व्यवहार कुशल सूर बुद्धिमान धीर पवित्र स्वामी भक्त और कर्म कुशल व्यक्ति को अपना सेना अध्यक्ष बनाया है?


तुम्हारी सेना में जो अत्यंत बलवान युद्ध विद्या में निपुण सुपरीक्षित और पराक्रमी सैनिक है उन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करते हो या नहीं उनका उत्साहवर्धन करते हो या नहीं? तुम सेना के लोगों को कार्य अनुरूप भोजन और वेतन जो उचित परिमाण में और उचित काल में देना चाहिए उसे यथा समय देने में विलंब तो नहीं करते. 


राज्यकर्मियों को समय पर वेतन देने का निर्देश 
भगवान राम ने राज्य की सुचारु व्यवस्था के लिए कर्मचारियों को समय पर वेतन देने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि 
हे भरत, राज कर्मचारियों का वेतन ठीक समय पर ना मिलने से राज्य कर्मचारी लोग विरुद्ध होते हैं और स्वामी की निंदा करते हैं.  राज्य कर्मचारियों का ऐसा करना भारी अनर्थ की बात समझी जाती है. 


 हे भरत! तुम्हारी गुप्तचर व्यवस्था तो अचूक है या नहीं ?


हे राघव! पापी लोगों से रहित मेरे पूर्वजों के द्वारा सुरक्षित तथा समृद्ध कौशल देश सुखी तो है या नहीं?


प्रजा हित के लिए निर्देश 
भगवान राम ने भाई भरत को प्रजा के हित को सर्वोपरि रखने का आदेश दिया. भगवान अपने श्रीमुख से कहते हैं कि 
हे भरत, पशुपालन कृषि आदि में लगे हुए तुम्हारी सब प्रजा सुखी तो है ना लेन-देन के कार्य में लिप्त रहकर ही वैश्य लोग धन-धान्य से युक्त होते हैं ना?


हे भरत, तुम प्रतिदिन प्रात: काल उठकर और सब प्रकार से सुभाषित होकर दोपहर से पहले ही सभा में जाकर प्रजा से मिलते हो या नहीं? 


हे भरत, तुम्हारी आय अधिक और खर्च न्यून है ना? तुम्हारे कोश का धन नाच-गाने वालों में तो नहीं ले लुटाया जाता? तुम्हारे राज्य में घूस लेकर अपराधियों को छोड़ तो नहीं दिया जाता? अमीर और गरीब का झगड़ा होने पर तुम्हारे मंत्री लोभ रहित होकर दोनों का मुकदमा न्याय पूर्वक निपट आते हैं या नहीं?


हे भरत, झूठे अपराधों के कारण दंडित लोगों को आंखों से गिरने वाले आंसू अपने भोग विलास के लिए शासन करने वाले राजा उसके पुत्र राज्य कर्मचारियों और उसके पशुओं का नाश कर डालते हैं.


अयोध्या कांड का यह प्रसंग भगवान राम के एक राजा के रूप में उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करता है. हालांकि इस प्रसंग के बाद उन्हें राजा के रुप में सत्ता संभालने में पूरे 14 वर्ष लग गए. लेकिन समय गवाह कि भगवान राम ने जब शासन संभाला तो वह उस समय सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ शासन था. जिसमें कोई दुखी नहीं था. यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम के उज्जवल चरित्र का प्रभाव था. 


श्री राम जय राम जय जय राम, जय सिया राम जय जय सियाराम...