नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश के CM Yogi आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र के तौर पर शुमार रहे गोरखपुर में आज कल चहल-पहल है. यहां के धर्मशाला, गोलघर असुरन, बरगदवा आदि से गोरखनाथ थाना क्षेत्र की ओर चलने वाले सवारी वाहनों की संख्या में इजाफा हो गया है. एक तरह से गांवों-कस्बों और मुहल्लों से निकला रेला इस ओर हुजूम बनकर पहुंच रहा है और आवाजाही कर रहा है.


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इसकी कोई खास वजह? वजह है योगीराज बाबा गुरु गोरखनाथ की तपस्थली, विश्रामस्थली गोरखनाथ मंदिर. यहां वह योग मुद्रा में ध्यान में बैठे हैं. लोगों का हुजूम आता जा  रहा है और बाबा को खिचड़ी चढ़ाए जा रहा है. खिचड़ी मेला की प्रसिद्धि चारों ओर फैल रही है.


खिचड़ी मेले के पीछे का रहस्य
आखिर क्या है बाबा की कथा, क्यों चढ़ रही है लगातार खिचड़ी,  कब पूरी होगी बाबा की तपस्या? आध्यात्म की ओर उठते सवाल कई हैं, जवाब एक, केवल आस्था. आस्था भी ऐसी वैसी नहीं जो सिर्फ मान्यताओं पर बनती हो और पीढ़ी दर पीढ़ी सिर्फ मुंह जुबानी चलती हो, यह आस्था ठोस है. 



इसके सबूत अपनी पूरी सचाई के साथ सामने हैं. यह विधि का वह विधान है, जिसके आगे मनुष्य नतमस्तक तो होता ही है, और जो यहां भी अपने गुमान में रहा तो उसने सब कुछ खो दिया, इस लोक में पद और उस लोक का मान...


यह है कथा
इस कथा को विस्तार से जानने के लिए गोरखपुर को यहीं छोड़ें और हिमाचल की ओर चलें. जहां के कांगड़ा में एक मां अपने पुत्र के लिए प्रतीक्षा कर रही है. वैसे वह मां कोई साधारण मां नहीं है. वह आदिशक्ति का स्वरूप हैं.



हालांकि मां तो कोई भी साधारण नहीं होती, लेकिन इस मां ने अपने पुत्र को जो वचन दिया उसे निभा रही हैं. यह हैं देवी मां की शक्तियों में से एक मां ज्वाला देवी. गोरखपुर के गोरखनाथ की खिचड़ी की कथा मां से ही शुरू होती है.


बात है त्रेतायुग की
कहते हैं कि यह बात त्रेतायुग के बीत रहे समय की है. आदि शिव के अंशावतार के स्वरूप बाबा गोरखनाथ ने धरती पर अवतार लिया था. वह नाथ संप्रदाय के प्रतिष्ठित संत थे और भिक्षाटन करते हुए योग, सनातन परंपरा का ज्ञान भारतीय समाज को वरदान के तौर पर दे रहे थे.



भ्रमणशील जीवन में एक दिन वह हिमाचल स्थित कांगड़ा में देवी ज्वाला देवी के स्थान पर पहुंचे. रमणीक, आध्यात्मिक और सुरम्य स्थल पर पहुंचे तो दैवीय अनुभूति हुई.  इतने मां ज्वाला स्वयं प्रकट हुईं और गुरु गोरखनाथ को पुत्र कहकर संबोधित किया. बाबा को भी मां का सान्निध्य मिला तो वह धन्य हो गए.  माता ने कहा- आओ पुत्र, तुम स्नान आदि करके शुद्ध हो जाओ, मैं भोजन परोसती हूं.


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बाबा ऐसे पहुंचे गोरखपुर
अब यहां बाबा गोरखनाथ थोडे़ सकुचाए. उन्होंने कहा माता, मैं तो खिचड़ी का भोग लगाता हूं, वही खाता हूं. कांगड़ा में माता को बलि आदि का भोग लगता था और वामाचार से पूजा होती थी. तब देवी ने कहा-चिंता न करो, मैं भी खिचड़ी खाऊंगी. तब बाबा बोले, यहां खिचड़ी है कहां? अच्छा आप ठहरिए मैं खिचड़ी की भिक्षा लेकर आता हूं. माता ने कहा-ठीक है पुत्र, मैं अदहन गर्म कर रही हूं, तब तक तुम खिचड़ी ले आओ. गोऱखनाथ ने अपना चिमटा और खप्पर उठाया और भिक्षाटन के लिए निकले.



उन्होंने कई स्थानों पर चावल मांगे, लेकिन खप्पर भरा ही नही. फिर वह आगे बढ़ते गए, खप्पर नहीं भरा. इस तरह बाबा एक दिन पूर्वांचल पहुंचे. काफी थक जाने के कारण यहां जंगलों के बीच उन्होंने आसन जमाया और तपस्या में लीन हो गए. चावलों से भरा खप्पर सामने ही रखा था. लोग आते, खप्पर में चावल भरते, लेकिन वह खाली ही रहा. तब से बाबा यहीं विराजित हैं. उनका खप्पर भरा जा रहा है, खिचड़ी चढ़ाई जा रही है, लेकिन बाबा का खप्पर खाली ही रह जाता है. कालांतर में इसीलिए यह स्थल गोरखपुर कहलाया.


गोरखडिब्बी में आज भी उबल रहा है जल
बाबा तो खिचड़ी इकट्ठी करने निकल गए, लेकिन वहां ज्वाला देवी में आज भी खिचड़ी के लिए जल उबल रहा है. इस स्थान को गोरखडिब्बी कहते हैं, जहां मां ज्वाला अपने पुत्र गोरख की प्रतीक्षा आज भी कर रही हैं. आज श्रद्धालु कांगड़ा में खिचड़ी लेकर पहुंचते हैं.



 


गमछे में चावल-आलू आदि डालकर लटकाते हैं गोरखडिब्बी के जल के प्रभाव से वे उबल जाते हैं. यह एक दिव्य चमत्कार ही है कि डिब्बी का जल हाथ में लेकर बाहर निकालिए तो वह ठंडा लगता है, लेकिन डिब्बी में गर्म. खिचड़ी का मेला आस्था और आध्यात्म के चमत्कार का साक्षी भी है.


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