Lohri: पंजाब में लोहड़ी, ईरान में चहार-शंबे सूरी, आदिम युग से आज तक है अग्नि की मान्यता

आग की बात करें तो हर परंपरा ने अग्नि की जरूरत को पहचाना है. सनातन परंपरा में कहती है, प्रकृतिः पंच भूतानि. यानी पांच भूतों (तत्वों) से बनी है यह प्रकृति, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु शामिल हैं. हमारे या किसी भी जीव के अंदर जो ऊर्जा तत्व है वह अग्नि ही है

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jan 13, 2021, 02:24 PM IST
  • विश्व के हर धर्म में है अग्नि पर आधारित पर्व की मान्यता
  • अग्नि को हिन्द-ईरानी और पारसी में भी पवित्र माना जाता है
Lohri: पंजाब में लोहड़ी, ईरान में चहार-शंबे सूरी, आदिम युग से आज तक है अग्नि की मान्यता

नई दिल्लीः अब से कुछ चार-पांच घंटे बाद जब शाम घिर आएगी और सूरज अपनी राह लेगा, उत्तर भारत के पंजाब प्रांत से ढोल-ताशे की थाप सुनाई देने लगेगी.  पिंड-परिवार के लोग आग को घेरे मिलेंगे और झूमते-नाचते मिलेंगे. इस दौरान वे आग में कच्चे अनाज डालेंगे. मूंगफलियां, मक्के के दाने और तिल-गुड़.

कहते हैं कि ऐसा करने से बीते साल की सारी बुराइयां आग में जलकर राख हो जाती हैं और फिर हम जिंदगी की राह में नईं उम्मीदों के साथ बढ़ते हैं. परंपराओं के बंधन में बंधा यह पर्व लोहड़ी कहलाता है. आज के दौर में जब बदली आर्थिक चाहत ने पूरे विश्व को ग्लोबल विलेज बना दिया है तो ऐसे में लोहड़ी सिर्फ पंजाब में ही नहीं रहकर देश के और भी कोने में फैली है, बल्कि लोहड़ी की आग की गर्माहट विदेशों में भी पाई जाती है. 

पंच तत्वों में प्रमुख है अग्नि
आग की बात करें तो हर परंपरा ने अग्नि की जरूरत को पहचाना है. सनातन परंपरा में कहती है, प्रकृतिः पंच भूतानि. यानी पांच भूतों (तत्वों) से बनी है यह प्रकृति, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु शामिल हैं. हमारे या किसी भी जीव के अंदर जो ऊर्जा तत्व है वह अग्नि ही है. इसी के कारण हम चलते हैं या जैविक क्रियाएं करते हैं.

ऋग्वेद की ऋचाओं में अग्नि ही प्रथम देव है और इसीलिए यज्ञ की परंपरा विकसित हुई. यह माना गया कि अग्नि को समर्पित प्रसाद ही अन्य देवताओं को भोग के रूप में मिलता है.  ऋग्वेद की ऋचा कहती है इदं, अग्न्याय इदं न मम्. 

हर धर्म में अग्नि है पवित्र
अग्नि के प्रकाश को देखते हुए आगे बढ़ें तो संसार के हर त्योहार में इसकी उपस्थिति मिलेगी. बल्कि कई त्योहारों की प्रतिकृति बिल्कुल भारतीय त्योहारों से मिलती है. विश्वास करने में मुश्किल हो सकता है, लेकिन भारत से 2826 किमी की दूरी पर स्थित एक इस्लामिक देश ईरान भी अग्नि को वैसा ही पवित्र मानता है,

जितना हम भारतीय.  चहार-शंबे सूरी. यही नाम है उनके त्योहार का,  जिसे साल खत्म होने के आखिरी मंगलवार को परिवार और समाज के लोगों के साथ सामूहिक रूप से मनाया जाता है. 

इरान का चहार-शंबे सूरी, पंजाब की लोहड़ी जैसा है
लोग अग्नि को पवित्र मानते हुए उसके ऊपर से कूदते हैं. ये माना जाता है कि अग्नि के पार कर लेना मतलब बीते समय को पार कर लेना. फिर इसके बाद ठीक लोहड़ी की ही तरह उसमें तिल, शक्कर, गुड़ की डली और कुछ सूखे मेवे भी डाले जाते हैं. ऐ आतिश-ए-मुक़द्दस! ज़रदी-ए-मन अज़ तू सुर्ख़ी-ए-तू अज़ मन.

अग्नि के सामने खड़े लोग इरानी भाषा में इस प्रार्थना को पढ़ते हैं और कामना करते हैं कि बीता साल जैसा भी हो, आने वाले दिन शुभ हों. इसका पंक्ति का अर्थ है - हे पवित्र अग्नि! हमारा निस्तेज पीलापन तू हर ले, अपनी जीवंत लालिमा से हमें भर दे. यह ईरानी भाषा में की गई कामना एक बार फिर भारतीयों को ऋग्वेद की ओर ले जाती है. जिसकी एक ऋचा का अर्थ ठीक ऐसा है. यो अग्निं देववीतये हविष्मां आविवासति, तस्मै पावक मृलय्.

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बाकू का आतिशदाह मंदिर
अग्नि देवता की बात चल रही है तो याद आ रहा है 2018 का साल, और याद आ रही हैं तबकी विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज.  सुषमा स्वराज उस वक्त अजरबैजान की राजधानी बाकू पहुंची थीं. यह आश्चर्य की बात लग सकती है कि अखबारों में जो तस्वीरें छपीं वह बाकू के एक मंदिर की थीं. मंदिर और बाकू में? मुस्लिम देश में?

हां, बिल्कुल. उस मुस्लिम देश में एक मंदिर है जिसे आतिशादाह मंदिर कहते हैं. हिंदी में कहें तो ज्वाला जी मंदिर. इस मंदिर में अग्रि के महत्व बताने वाले मंत्र लिखे हैं और श्रीगणेशाय नमः भी अंकित है. सत्रहवीं सदी तक का इतिहास समेटे इस मंदिर में लोग समूह के रूप में जुटते थे और अग्नि के प्रति आभार जताते थे. पूजा या किसी त्योहार के रूप में. यह कुछ भी रहा होगा. 

नफरतों को भी जला दे लोहड़ी की आग
अग्नि को हिन्द-ईरानी और पारसी में भी बहुत पवित्र माना जाता है. जिसे हम अग्नि कहते हैं वह पारसी में आतर है. ईरानी में आतिशे है. अनाहिता, मित्रा और अन्य शब्द ईरानी भाषा के उतने ही अपने हैं, जितने की संस्कृत में और ऋग्वेद की ऋचाओं में वे पवित्र.

इसी के साथ आदिम युग को याद करें तो इतिहास कहता है कि आदिमानव ने झुंड में रहना सीखा और उसने आग जलानी सीख ली थी. इसके बाद वह समूह में आयोजन करता था. वह आग जलाता था. उसके इर्द-गिर्द नाचता-गाता था. उसी अग्नि में मांस भूनता था और मिलकर खाता था.

आदिम युग का यह मानव ऐसा इसलिए करता था, ताकि वह रात में जंगली जानवरों से बचा रहे और कोई प्राकृतिक आपदा आए तो उसका सामना कर सके.

लोहड़ी का यह पर्व भले ही पंजाब में भांगड़ा-गिद्दा के साथ बांके दुल्ला-भाटी को याद करते मनाया जा रहा है. लेकिन अग्नि से जुड़े इस त्योहार की मान्यता सीमाओं में बंधी नहीं है.

गीता कहती है अग्नि सबकुछ जलाकर पवित्र कर देती है. कोशिश है कि अग्नि नफरतों की आग को भी अपने खुद में जलाकर भस्म कर दे. देश से लेकर विदेशों तक में लोगों के लिए ये कामना करना तो जरूरी है है. 

Happy Lohari

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