नई दिल्लीः सनातन परंपरा में मौन को सबसे अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है. कहा भी गया है एक चुप सौ पर भारी. दरअसल, मौन महज चुप्पी साध लेना नहीं है, बल्कि यह शास्त्रों में वर्णित सबसे कठिन और महान तप है. इंद्रियों पर नियंत्रण का अभ्यास करने वाले सबसे पहले मौन साधना ही सीखते हैं. 


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इसलिए हुई मौनी अमावस्या की कल्पना
मौन के इसी महत्व को समाज में स्थापित करने के लिए सनातन परंपरा में मौनी अमावस्या की कल्पना की गई है. माघ मास की कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि मौनी अमावस्या के लिए निर्धारित है. इस मौके पर श्रद्धालु गंगा स्नान करके दान आदि की परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं. गुरुवार को देशभर में मौनी अमावस्या मनाई जाएगी. 


मौन के महत्व को स्थापित करने के लिए सबसे पहला नाम प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता गणेश का आता है. पुराणों की कथा के मुताबिक, जब महाभारत लिखी जानी थी तो वेदव्यास महर्षि को एक लेखक की जरूरत पड़ी. लेखक ऐसा जो कि बुद्धिशाली हो, श्लोक-सूक्ति का अर्थ भी समझता हो और लिखने में भी प्रखर हो. महामुनि व्यास ने कल्पना में तो महाभारत की रचना कर ली थी, लेकिन शब्द में नहीं उतार पा रहे थे. 



तब देवर्षि नारद ने उन्हें महादेव पुत्र गणेश का नाम सुझाया. श्रीगणेश ने भी शर्त रखी कि जब तक आप बोलेंगे तब तक ही मैं लिखूंगा, आप चुप हुए तो मेरी कलम रुक जाएगी और मैं फिर दोबारा नहीं शुरू करूंगा. व्यास जी ने कहा कि आपकी बात सिर आंखों पर, लेकिन मेरा भी निवेदन है कि आप जो भी श्लोक-सूक्ति सुनें उसका भावार्थ खुद लिखेंगे, मुझसे नहीं पूछेंगे. गणेश जी भी तैयार हो गए. 


ऐसे लिखी गई महाभारत
इसके बाद महाभारत का लेखन शुरू हुआ. महामुनि श्लोक बोलते जाते और श्रीगणेश लिखते जाते. इस दौरान व्यासमुनि कठिन शब्दों वाले श्लोक बोल देते. उनके अर्थ सोचने में गणेश जी समय लेते, इतने में व्यास मुनि दूसरा श्लोक बना लेते. इस तरह महाभारत का लेखन पूरा हुआ. तब महामुनि ने कहा कि वर्षों की साधना के बाद पूरे हुए इस ग्रंथ की रचना आपके बिना संभव नहीं थी. मैंने लाखों श्लोक बोल डाले लेकिन आपने एक ध्वनि भी नहीं की. यह कैसे श्रीगणेश.



तब श्रीगणेश ने अपना मौन तोड़ा और कहा, संसार में जितना महत्व ध्वनि का है उतना ही मौन का भी है. मौन ही व्यक्ति को ऊर्जा देता है साथ ही ऊर्जा को सही दिशा में प्रयोग करने की उचित दिशा देता है. साधक यदि वाचाल होंगे तो साधना नहीं हो पाएगी. इस तरह श्रीगणेश ने मौन के महत्व को बताते हुए एक और महाभाष्य की रचना की. महाभारत काल से मौनी अमावस्या परंपरा के तौर पर जारी है. 


मौनी अमावस्या पर ये करें उपाय
इसके अलावा यह दिन विशेष-पूजन आदि के लिए भी जाना जाता है. खास तौर पर ग्रह-नक्षत्र शांति और कई तरह के दोष निवारण के लिए मौनी अमावस्या को उपाय किए जा सकते हैं. अगर आप भी पितृ दोष से ग्रसित हैं और इससे जूझ रहे हैं तो मौनी अमावस्या को ये उपाय जरूर करें. 


  • घर की दक्षिण दीवार पर दिवंगत पूर्वज की तस्वीर लगाएं और पूरे सम्मान के साथ उनकी पूजा करें.

  • पितरों की पूजा के बाद उनके नाम से किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद व्यक्ति को दान आदि दें.

  • अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर दूध, गंगा जल, जल, काले तिल, चीनी, चावल, पुष्पादि चढ़ाते हुए “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का जाप करें.

  • महामृत्युंजय मंत्र या पितृ स्तोत्र, रूद्र सूक्त या, नव ग्रह स्तोत्र का पाठ करें, कुल देवता और इष्ट देव की सदैव पूजा करते रहें। पितृ दोष शांत होगा.

  • अमावस्या को पितृस्तोत्र या पितृसूक्त का पाठ करना चाहिए, विष्णुसहस्रनाम का पाठ भी करने से पितृ दोष दूर होता है.


ज्योतिष से समझिए मौनी अमावस्या का महत्व
सनातन परंपरा में माघ अमावस्या (Magh Amavasya) के दिन मौन रहने का विशेष महत्व बताया गया है. चंद्रमा मन का कारक माना जाता है और अमावस्या को चंद्रमा लुप्त रहता है. इस दिन मन की स्थिति कमजोर रहती है. ऐसे में मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत करने से मन को संयम रखने का विधान निर्धारित किया गया है. इस दिन लोग भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का भी विधान है. 


ऐसे लीजिए मौन का संकल्प
मौनी अमावस्या के दिन सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार मौन धारण किया जाता है. श्रद्धालु एक मौनी अमावस्या से दूसरी मौनी अमावस्या तक यानी एक वर्ष तक का मौन रखते हैं. हालांकि साधक लोग तो तीन-पांच साल तक का मौन रखते हैं. इच्छानुसार गृहस्थ भी संकल्प लेकर अमावस्या से माघ पूर्णिमा तिथि तक मौन रखते हैं. 



सामान्य व्यक्ति एक दिन का मौन व्रत, शाम तक का मौन व्रत रख सकते हैं. अगर यह भी संभव न हो तो सुबह उठें और स्नान करने तक मौन व्रत रहने का संकल्प लें. इसके बाद स्नान-ध्यान करके पूजन करें. 


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