नई दिल्लीः आध्यात्मिक और शारीरिक दृष्टिकोण से हर एकादशी का अपना महत्व है, लेकिन दशहरे के बाद अगले दिन पड़ने वाली आश्विन मास की एकादशी कई व्रतों का पुण्य देने वाली होती है. श्रीहरि के चतुर्भुज पद्मनाभ स्वरूप को समर्पित यह एकादशी पीढ़ियों का पापों का नाश करने वाली और कई ग्रहों को काटने वाली है.


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इस व्रत का फल अनुष्ठान करने वाले के साथ-साथ उसकी पीढ़ियों को भी मिल जाता है. 


महाभारत में श्रीकृष्ण ने दी थी इस व्रत की जानकारी
धर्मराज युधिष्ठिर जब वन में थे तो श्रीकृष्ण ने इस पूरे दौरान उनसे व्रत-साधना करने के लिए कहा था. प्रत्येक एकादशी को वासुदेव कृष्ण उन्हें एकादशी व पूर्णिमा के व्रत का महत्व बताते थे. इसी तरह जब आश्विन मास की एकादशी आने को थी तो धर्मराज ने विचार किया कि श्रीकृष्ण से इस व्रत के लिए भी पूछूं.



ऐसा विचार कर वह अपने भाई कृष्ण से कहने लगे, हे मधुसूदन. भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए. 


ऐसे पड़ा पापांकुशा एकादशी नाम
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, हे राजन! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है. इस दिन मनुष्य को विधिपूर्वक भगवान पद्‍मनाभ की पूजा करनी चाहिए. यह एकादशी मनुष्य को मनोवांछित फल देकर स्वर्ग को प्राप्त कराने वाली है.



इस एकादशी का ध्येय है कि मनुष्य अपने मूल को जाने. सर्वप्रथम ब्रह्मदेव ने इस व्रत को करके अपने मूल को जाना था. इसलिए इसे पद्मनाभा एकादशी भी कहते हैं. कर्म के अनुसार एक बहेलिये पापमुक्त करने के कारण यह पापांकुशा एकादशी भी कहलाती है. 


श्रीकृष्ण ने सुनाई कथा
इस व्रत की कथा के अनुसार प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था. उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता. जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिए को लेने आए और यमदूत ने बहेलिए से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे. 


बहेलिए ने किया व्रत
यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा, हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं. कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए. उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत रखने के लिए कहा.


महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संचित पाप नष्‍ट हो गए तथा उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई. 


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