Vijayadashmi Special: क्यों करते हैं दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा, यहां जानिए

महाभारत में श्रीकृष्ण ने शमी को सत्य और धर्म का प्रतीक बताया था और बुआ कुंती से उसकी पूजा कराई थी. श्रीराम ने शमी पूजन कर पूर्वजों का आशीर्वाद तो लिया ही, देवी दुर्गा की दो शक्तियों जया-विजया का वरद हस्त भी पाया

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Oct 26, 2020, 09:30 PM IST
    • शमी का महत्व रामायण और महाभारत से जुड़ा है
    • श्रीराम ने शमी पूजन कर पूर्वजों का आशीर्वाद लिया था
    • महाभारत में श्रीकृष्ण ने शमी को सत्य और धर्म का प्रतीक बताया था
Vijayadashmi Special: क्यों करते हैं दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा, यहां जानिए

नई दिल्लीः विजयदशमी के पर्व के दिन शमी वृक्ष के पूजन की परंपरा है. मान्यता है कि इस वृक्ष में जया और विजया देवी का निवास है जो कि युद्ध में जीत सुनिश्चित करती हैं. शस्त्र पूजा के साथ ही क्षत्रिय शमी पूजन भी करते हैं. दशहरा यानी विजयादशमी के दिन प्रदोषकाल में शमी वृक्ष का पूजन किये जाने का विधान है. विजयादशमी के मौके पर कार्य सिद्धि का पूजन विजय काल में फलदायी रहता है. 

ऐसे करते हैं शमी की पूजा 
पूजन के दौरान शमी के कुछ पत्ते तोड़कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें. इसके बाद एक लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपारी और शमी की कुछ पत्तियों को डालकर उसकी एक पोटली बना लें. इस पोटली को घर के किसी बड़े व्यक्ति से ग्रहण करके भगवान राम की परिक्रमा करने से लाभ मिलता है. 

रामायण और महाभारत से जुड़ा है महत्व
शमी का महत्व रामायण और महाभारत से जुड़ा है. शक्तिपूजा के बाद भगवान श्रीराम ने अपने पूर्वजों का स्मरण किया और विजय के लिए उनका आशीर्वाद मांगा. तब देवताओं ने उन्हें बताया कि आपके पूर्वज महान महाराज रघु ने शमी वृक्ष को एक बार अपना दान साक्षी बनाया था.

इसलिए आप उनके आशीर्वाद  के लिए शमीपूजन करें. तब श्रीराम ने शमी पूजन कर पूर्वजों का आशीर्वाद तो लिया ही, देवी दुर्गा की दो शक्तियों जया-विजया का वरद हस्त भी पाया. 

इसी तरह महाभारत में श्रीकृष्ण ने शमी को सत्य और धर्म का प्रतीक बताया था और बुआ कुंती से उसकी पूजा कराई थी. 

अज्ञातवास के दौरान शमी वृक्ष ने ही पांडवों की सहायता की थी और अपने ऊंचे झुरमुट में उनके सभी अस्त्रों को छिपा कर सुरक्षित रखा था. शमी वृक्ष ही पांडवों के वनवास और अज्ञात वास का साक्षी भी था. 

राजा रघु ने ऐसे बनाया था शमी को साक्षी
विजयादशमी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा भी है.  महर्षि वर्तन्तु का शिष्य कौत्स थे, महर्षि ने अपने शिष्य कौत्स से शिक्षा पूरी होने के बाद गुरू दक्षिणा के रूप में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा की मांग की थी. महर्षि को गुरु दक्षिणा देने के लिए कौत्स महाराज रघु के पास गए, महाराज रघु ने कुछ दिन पहले ही एक महायज्ञ करवाया था, जिसके कारण खजाना खाली हो चुका था, कौत्स ने राजा से स्वर्ण मुद्रा की मांग की तब उन्होंने तीन दिन का समय मांगा. 

विजयदशमी के दिन शमी ने की धनवर्षा
राजा धन जुटाने के लिए उपाय खोजने लग गए. उन्होंने जैसे ही स्वर्गलोक पर आक्रमण करने का विचार किया, देवराज का सिंहासन डोल गया. राजा इस विषय पर विचार कर ही रहे थे कि देवराज इंद्र घबरा गए और कोषाध्याक्ष कुबेर से रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करने का आदेश दिया, इंद्र के आदेश पर रघु के राज्य में कुबेर ने शमी वृक्ष के माध्यम से स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करा दी.

जिस दिन धनवर्षा हुई तब आश्विन दशमी ही तिथि थी. राजा ने शमी वृक्ष से प्राप्त स्वर्ण मुद्राएं कौत्स ऋषि को दे दीं. साथ ही इस दान के लिए शमी वृक्ष को ही साक्षी बनाया. इसके बाद ही शमी वृक्ष क्षत्रियों में पूजित हो गया. बाद में  श्रीराम ने विजयदशमी के दिन इस विधान प्रतिष्ठित कर मानव मात्र के लिए सहज बना दिया. 

शमी है एक दिव्य औषधि
आयुर्वेद की नजर से शमी एक दिव्य औषधि भी है. त्वचा पर होते वाले फोड़े-फुंसी आदि में शमी की लकड़ी को घिस कर लगाना फायदा पहुंचाता है और ये समस्याएं जल्दी खत्म हो जाती हैं.  पेशाब संबंधी समस्या होने पर शमी के फूलों को दूध में उबालकर, ठंडा होने पर पिसा हुआ जीरा मिलाकर रोगी को दिया जाता है.

खास तौर से पेशाब में धातु आने पर यह दिन में दो बार पीना लाभकारी होता है. शमी की छाल या पत्ते के काढ़ा का सेवन करने से पेचिश में लाभ होता है. 

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