Sunday Special में जानिए क्या है सूर्यदेव की व्रत की कथा और पूजा विधि
अगर आपने रविवार के व्रत का संकल्प लिया है तो यह व्रत पूरे एक साल या कम से कम 12 रविवार तक करना चाहिए. रविवार व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए
नई दिल्लीः सनातन परंपरा में प्रत्येक दिन किसी न किसी देवता की अर्चना के लिए समर्पित किया गया है. इस कड़ी में रविवार का दिन सूर्य देव की आराधना के लिए नियत है. रविवार को व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में आरोग्य, समृद्धि, संपदा और प्रसन्नता आती है. सूर्य उत्साह और ऊर्जा के देवता है. जीवन के लिए जरूरी ऊर्जा भी उनसे ही मिलती है.
शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है.का व्रत करने व कथा सुनने से भी सभी अभिलाषाएं पूरी होती हैं. मान व यश की में वृद्धि होती है.
ऐसे करें रविवार का व्रत
अगर आपने रविवार के व्रत का संकल्प लिया है तो यह व्रत पूरे एक साल या कम से कम 12 रविवार तक करना चाहिए. संकल्प के अनुसार रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर स्नान आदि के बाद साफ भगवा या लाल रंग के वस्त्र पहनें. यह उदित होते सूर्य का भी रंग है. इसके बाद घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
मूर्ति स्वर्ण की होगी तो बहुत अच्छी, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है. इसके बाद विधि-विधान से धूप-दीप आदि से भगवान की अर्चना करें. पूजन के बाद उनके व्रत की कथा सुनिए. इसके बाद आरती कर लीजिए.
आरती हो जाने के बाद, सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए 'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' इस मंत्र का 12 या 5 अथवा 3 माला जप करें. जप के बाद शुद्ध जल, रक्त चंदन, अक्षत, लाल पुष्प और दूब से सूर्य को अर्घ्य दें. सात्विक भोजन व फलाहार करें. भोजन में गेहूं की रोटी, दलिया, दूध, दही, घी और चीनी खाएं. रविवार का व्रत करते हुए इस दिन नमक नहीं खाएं.
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पढ़िए रविवार व्रत की कथा.
रविवार के व्रत की तरह ही इस व्रत की कथा भी रोचक है. प्राचीन काल में एक नगर में एक वृद्धा रहती थीं. उनका नियम था कि वह हर रविवार घर-आंगन लीप कर भोजन तैयार करतीं और सूर्यदेव को भोग लगाकर ही भोजन करती थीं. इस तरह एक नियम का अडिग पालन करने से सूर्य देव उन पर हमेशा कृपा बनाए रहते थे. वृद्धा होने के बाद भी उन्हें कोई रोग नहीं होता था. लेकिन हर काम में कभी-कभी बाधा आती ही है.
वृद्धा ने रख लिया उपवास
हुआ यूं कि वृद्धा माई जिस गोबर से आंगन लीपती थीं वह पड़ोसन की गाय का था. एक दिन पड़ोसन ईर्ष्या के कारण सोचने लगी कि यह मेरी ही गाय का गोबर रोज ले जाती है. ऐसा सोचकर उसने गाय घर के भीतर बांध ली. अब इस रविवार को वृद्धा को गोबर न मिला तो आंगन नहीं लीप सकीं. इसलिए उन्होंने भोजन भी नहीं बनाया और दिनभर उपवास रख लिया. रात में सपने में सूर्यदेव ने आकर पूछा माता, आज प्रसाद नहीं खिलाया. तब वृद्धा ने कहा कि आज गोबर से घर न लीप पाई तो भोजन नहीं बनाया. भगवान ने कहा- ठीक है मैं आपको सर्वकामना पूरक गाय देता हूं. इसके बाद स्वप्न में ही और कई वरदान देकर भगवान चले गए.
सुबह वृद्धा ने देखा कि द्वार पर गाय-बछड़े बंधे हैं. स्वप्न की बात याद आने पर बहुत प्रसन्न हुईं. इधर पड़ोसन और जल भुन गई. अगले दिन पड़ोसन ने देखा कि वृद्धा की गाय ने सोने का गोबर किया है तो उसने उससे अपनी गाय का गोबर बदल लिया. वृद्धा को सोने के गोबर की बात ही पता नहीं चली. भगवान यह देखकर क्रोधित हो गए. इसके बाद उन्होंने जोर की आंधी चला दी. इससे वृद्धा ने गाय को घर के अंदर बांध लिया. सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो वह आश्चर्य में पड़ गई. अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी.
पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है. राजा ने यह सुनकर अपने दूतों से गाय मंगवा ली. बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा. उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया. सूर्य भगवान ने रात को उसे सपने में गाय लौटाने को कहा. प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया. इसके बाद पड़ोसन को उचित दण्ड दिया. राजा ने वृद्धा से इसका उपाय पूछा और उसके बाद वह भी रविवार का व्रत रखने लगा. तबसे यह व्रत प्रचलित हो गया.
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