कोलकाता: वो है आप मानो चाहे ना मानो ! हम किसी भूत-प्रेत या काले जादू की बात नहीं कर रहें. हम बात कर रहे हैं पौराणिक हिंदू मान्यताओं के आस्था के केंद्र में सदियों से रहे ऐसे चमत्कारों की जिसके आगे इंसान तो क्या विज्ञान भी सिर झुकाता है. आज दक्षिण भारत के एक ऐसे मंदिर का अलौकिक रहस्य आपको बताएंगे जहां सदियों से आदि शक्ति को शिव का इंतज़ार है.


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हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का त्रिवेणी संगम स्थल है, जहां तीन सागर अपने अलग-अलग रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं. उसी जगह पर माता कन्या कुमारी का एक प्राचीन मंदिर है. मान्यता है कि इस मंदिर को भगवान शिव के परमभक्त ने देवी कन्या कुमारी के देह त्याग करने के बाद बनवाया था. इस मंदिर को 3 हज़ार साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में देवी की प्रतिमा भक्तों के सारे इंतज़ार खत्म करती है लेकिन खुद वो शिव से मिलन का इंतज़ार कर रही है.



जब शिव का शक्ति से नहीं हुआ था मिलन 


मान्यता है कि कन्या कुमारी आदि शक्ति का अवतार थीं और उन्होंने महाराज भरत के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था. महाराज भरत ने अपने पुत्रों और पुत्रियों में अपना साम्राज्य बांटा. दक्षिण का साम्राज्य माता कन्या कुमारी के हिस्से आया. यहां राज-काज संभालते हुए उनके मन में शिव से विवाह की इच्छा उत्पन्न हुई. माता ने शिव की घोर तपस्या कर उन्हें विवाह के लिए मना लिया. भगवान शिवा अपने वरदान के मुताबिक माता से विवाह करने के लिए कैलाश से बारात लेकर निकले भी लेकिन देवताओं ने अपने स्वार्थ के लिए भगवान शिव और माता से ऐसा छल किया कि माता हमेशा के लिए कुंआरी रह गई. दरअसल भगवान शिव ने बानासुरन नामक असुर को वरदान दिया था कि उसका वध कोई कुंआरी लड़की करेगी वरना वो अमर हो जाएगा.


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बानासुरन से देवता त्रस्त थे और उनको पता था कि माता कन्या कुमारी के सिवा कोई बानासुरन का वध नहीं कर सकता. इसलिए उन्होंने छल किया और भगवान शिव जब रात में कैलाश से निकले तो देवताओं ने मुर्गा बनकर बांग देनी शुरू कर दी. विवाह का मुहूर्त सुबह का था भगवान शिव को लगा कि मुहूर्त पर वो देवी के पास नहीं पहुंच पाए इसलिए वो वापस लौट गए और पूरा श्रृंगार किए माता उनका इंतज़ार ही करती रह गईं. बारात के लिए लाया गया पूरा खाना समुद्र में फेंक दिया गया जो कंकड़ में बदल गया.


मान्यता है कि चावल दाल और खाने का सारा सामान जो समुद्र मं फेंका गया था वो आज भी रेत के बीच छोटे-छोटे पत्थरों पर नज़र आता है. बाद में माता ने बानासुरन का वध किया और हमेशा के लिए कुमारी ही रह गई. माता के इसी कुमारी स्वरूप की वजह से मंदिर के आस पास के शहर को कन्या कुमारी कहा जात है..


आदि शक्ति को कलियुग खत्म होने का इंतज़ार 


मान्यता है कि माता आदिशक्ति का इंतज़ार कलियुग खत्म होने के बाद खत्म होगा. माना जाता है कि कलियुग खत्म होने के बाद भगवान शिव माता कन्याकुमारी से विवाह करेंगे. हालांकि देवी मनुष्य का शरीर त्याग चुकी हैं तो इन मान्यताओं में कितनी सच्चाई ये तो भगवान शिव ही जाने लेकिन ऐसी अलौकिक शक्तियों और चमत्कारों के आगे भक्तों का सिर अपने आप झुक जाता है.


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