नई दिल्लीः शारदीय नवरात्र का समय देवी की आराधना के लिए उपयुक्त समय है. भगवती जगतमाता दरअसल त्रिभुवन सुंदरी हैं और आदि शक्ति होने से महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महाकाली के रूप में त्रिदेवों की त्रिशक्ति के रूप में उनके साथ विराजित हैं.
वैष्णों देवी मंदिर (जम्मू) में देवी के इस त्रिविध रूप के दर्शन होते ही हैं, लेकिन इसके अलावा ऐसे कई मंदिर हैं, जहां माता अम्बा को उनकी महाशक्तियों के रूप में पूजा जाता है.
देवी महालक्ष्मी का है स्वरूप
इन्हीं में सबसे प्रमुख देवी मंदिर है, माता मुंबा का मंदिर, जो महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में स्थित है. समुद्र किनारे स्थित देवी के परमधाम में भक्तों की बड़ी आस्था है. माना जाता है कि मुंबा देवी समुद्र से नगरी की रक्षा करती हैं. वह समुद्र सुता के रूप में पूजित हैं. समुद्र पुत्री देवी लक्ष्मी हैं, इसलिए माता का मुंबा स्वरूप देवी लक्ष्मी के तौर पर पूजा जाता है.
ऐसे बना है मुंबई नाम
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में कई ऐतिहासिक व दर्शनीय पर्यटन स्थल हैं, जिनमें से एक मुंबा देवी मंदिर का प्रमुख स्थान है. मुंबा देवी और मंदिर की महिमा अपरंपार बताई गई है. मुंबई नाम ही मराठी के शब्द- 'मुंबा' 'आई' यानी मुंबा माता के नाम से निकला है.
मुंबा देवी को समर्पित मंदिर चौपाटी की रेतीले तटों के निकट बाबुलनाथ में स्थित है. मुंबा देवी मंदिर का गौरवशाली इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है.
मछुआरे करते थे पूजा
पूरे महाराष्ट्र में इस मंदिर की बहुत मान्यता है. इतिहास से हमें जानकारी मिलती है कि मुंबई आरंभ में मछुआरों की बस्ती थी. इन लोगों को यहां कोली कहा जाता था. कोली लोगों ने बोरीबंदर में तब मुंबा देवी के मंदिर की स्थापना की. कहा जाता है कि इन देवी की कृपा से मछुआरों को कभी समुद्र ने नुकसान नहीं पहुंचाया.
हर दिन बदलता है वाहन
मंदिर में मुंबादेवी का वाहन प्रतिदिन बदला जाता है. हर दिन देवी का वाहन अलग होता है. सोमवार को नंदी, मंगलवार को हाथी, बुधवार को मुर्गा, गुरूवार को गरुड़, शुक्रवार को हंस, शनिवार को हाथी, रविवार को सिंह वाहनों पर मां की प्रतिभा सुशोभित होती है.
ये सभी वाहन चांदी के बने हैं. मुंबा देवी मंदिर में रोज़ 6 बार आरती की जाती है. यहां मंगलवार को खासतौर पर भक्तों की भीड़ होती है. यहां मन्नत मांगने के लिए लकड़ी पर सिक्कों को कीलों से ठोका जाता है.
इन्होंने दान की थी जमीन
यह मंदिर अपने मूल रूप में उस जगह बना था, जहां आज विक्टोरिया टर्मिनस बिल्डिंग है. इसका निर्माण साल 1737 में हुआ था. बाद में अंग्रेजों के शासन के दौरान मंदिर को मैरीन लाइन्स-पूर्व क्षेत्र में बाजार के बीच में स्थापित किया. उस मंदिर के तीन ओर एक बड़ा तालाब था, जो अब पाट कर बराबर कर दिया गया है. इस मंदिर की भूमि पांडु सेठ ने दान की थी. शुरू में मंदिर की देखरेख भी उन्हीं का परिवार करता था.
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