इसलिए हुई कर्ण की मृत्यु, जानिए किन गलतियों और श्राप के कारण हुआ छल से वध
कर्ण एक महान योद्धा था, लेकिन नियति उसे अधर्म की ओर ले गई. जीवन भर दान धर्म करने वाला कर्ण अपने साथ कई श्राप भी जी रहा था. इसलिए उसकी मृत्यु युद्ध में छल से हुई
नई दिल्लीः कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन जारी है. ऐसे में टीवी पर तीन दशक पुरानी महाभारत को देखकर लोग रोमांचित हो रहे हैं. बीआर चोपड़ा ने इस अद्भुत टीवी सीरियल का निर्माण किया था. कहानी अब कर्ण के साथ अर्जुन के युद्ध तक आ पहुंची है. कर्ण एक महान योद्धा होने के साथ-साथ महादानी भी था, लेकिन नियति उसे अधर्म की ओर ले गई. जीवन भर दान धर्म करने वाला कर्ण अपने साथ कई श्राप भी जी रहा था. इसलिए उसकी मृत्यु युद्ध में छल से हुई. कर्ण के जीवन पर डालते हैं एक नजर-
परशुराम को बनाया गुरु
जब आचार्य द्रोण ने कर्ण को धनुर्विद्या का ज्ञान देने से मना कर दिया तो कर्ण अपमानित होकर हस्तिनापुर से चला गया. उसने परशुराम की खोज की जो कि ब्राह्मण होने के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र की विद्या में निपुण थे. उन्होंने त्रेतायुग में क्षत्रियों की तरह ही युद्ध किया था और अत्याचारी शासकों का वध किया था.
कर्ण ने परशुराम का शिष्यत्व लिया और धनुर्विद्या सीखने लगा, लेकिन कर्ण ने यहां एक असत्य बोला. दरअसल परशुराम केवल ब्राह्मणों को ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा का प्रण ले चुके थे, इसलिए कर्ण ने अपना परिचय ब्राह्मण कुमार के तौर पर दिया.
परशुराम ने दिया श्राप
कर्ण ने बहुत ही लगन से गुरु सेवा करते हुए उनसे विद्या सीखी. एक दिन दोपहर के समय गुरु परशुराम विश्राम कर रहे थे. उन्होंने कर्ण की गोद में अपना सिर रखा हुआ था. इतने में एक कीड़ा कहीं से आकर कर्ण की जांघ पर काटने लगा और इससे खून बहने लगा. लेकिन गुरु की नींद में खलल न पड़े इसलिए कर्ण टस से मस नहीं हुआ.
गर्म खून की धार जब गुरु परशुराम को छूने लगी तो वह चौंककर उठे और खून से लथपथ कर्ण को देखा. वह समझ गए कर्ण ब्राह्मण नहीं है. इसिलए उन्होंने श्राप दिया कि तुमने छल से विद्या सीखी है, इसलिए जब तुम्हें इस विद्या की आवश्यकता होगी तुम इसे भूल जाओगे.
एक वनवासी ब्राह्मण का श्राप
एक बार किसी ग्राम में एक मायावी दैत्य आ गया था. कर्ण ने उसका पीछा किया तो वह उसे वन की ओर ले गया. दैत्य कर्ण से माया युद्ध कर रहा था तो बार-बार गायब हो जाता था. इसलिए कर्ण ने शब्दभेदी बाण चढ़ा लिया. इतनें में दैत्य ने एक बछड़े का रूप बनाकर तालाब में डुबकी लगाई, कर्ण ने उसकी एक झलक देखी और तीर चला दिया. उसी समय एक वनवासी ब्राह्मण की गाय और बछड़ा भी तालाब में आ गए थे. मायावी दैत्य गायब हो गया और कर्ण का तीर बछड़े को जा लगा.
दलदली भूमि में फंसने के कारण निकल नहीं पाया. इससे गाय शोक करने लगी. तब ब्राह्मण ने श्राप दिया कि जिस तरह इस गाय का बछड़ा भूमि में धंस गया है, एक दिन युद्ध में तुम्हारी मृत्यु भी इसी स्थिति में होगी. भूमि तुम्हें और तुम्हारे रथ के पहिए को निगल लेगी. कुरुक्षेत्र में कर्ण के रथ का पहिया धंस गया था.
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द्रौपदी को वैश्या कहना
द्यूत सभा में दुर्योधन और दुःशासन द्रौपदी का मानहनन और चीरहरण कर रहे थे. द्रौपदी अपने सतीत्व की लाज बचाने के लिए उन सबसे गुहार कर रही थी. वह कभी खुद को कुरुवंश की कुलवधु बताती तो कभी इंद्रप्रस्थ की पटरानी तो कभी पांचाल की राजकन्या. वह एक नारी के सम्मान की रक्षा के लिए भी गुहार कर रही थी.
इसी बात पर कर्ण भी कह बैठा कि जो पांच-पांच पतियों की पत्नी हो वह कैसे सती हो सकती है. वह वैश्या होती है और वैश्या का मान क्या-सम्मान क्या. कर्ण से अनादर की अपेक्षा किसी को नहीं थी. इसलिए अर्जुन ने उसकी मृत्यु का प्रण लिया था.
अभिमन्यु को घेर कर मारना
चक्रव्यूह का भेदन करते हुए अभिमन्यु जब बिल्कुल मध्य में प्रवेश कर गया तो वहां आचार्य द्रोण, आचार्य कृप, अश्वत्थामा, शकुनि, दुःशासन, दुर्योधन और कर्ण ने एक साथ प्रहार कर उस निहत्थे बालक की हत्या कर दी. कर्ण हमेशा धर्मयुद्ध की बात करता था, लेकिन अभिमन्यु के वध के समय उसे जरा भी धर्म का भान नही रहा.
वह चाहता तो अन्य सभी को प्रहार करने से रोक सकता था, लेकिन वह और लोगों के साथ मिल गया. इसलिए कृष्ण के आदेश पर अर्जुन ने उसे निहत्था होने पर मार दिया.
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