नई दिल्लीः सोमवार का दिन आराधना के लिए भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन सच्चे मन से महादेव का स्मरण करने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है. ईश पूजा के लिए यह जरूरी नहीं कि आप उनके मंत्र-आरती, श्लोक आदि का ही जाप करते हैं, बल्कि ईश्वर की कथा की चर्चा करना भी ईश्वर भक्ति है. महादेव इसलिए भी महादेव हैं कि क्योंकि वे सरल तरीके से बस श्रद्धा सहित नाम लेने पर ही प्रसन्न हो जाते हैं. उनकी कथाओं का कोई अंत नहीं, ऐसी ही एक कथा प्रसंग उनके विवाह से निकलता है, जिसे आपने शायद ही सुना होगा.


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सप्तऋषियों ने तय किया शिव-पार्वती विवाह का मुहूर्त


यह प्रसंग तब का है, जब महादेव और पार्वती के विवाह की बातचीत चल ही रही थी. माता पार्वती के महादेव शिव के प्रति प्रेम और अगाध निष्ठा देखकर सप्तऋषि प्रसन्न थे. उधर देवताओं की प्रसन्नता का कारण था कि अब जल्द ही महादेव के पुत्र से तारकासुर का अंत होगा. इधर सप्तऋषि पर्वतराज हिमालय के पास पहुंचे और राजा की इच्छा जानकर उमा-महेश की कुंडली देखी और इस आधार पर शुभ तिथि और लग्न देखकर विवाह का मुहूर्त निश्चित कर दिया. अब बाकी रह गया था कि महादेव को इस बारे में सूचना दी जाए और उन्हें विवाह के लिए प्रस्ताव देकर बारात लाने के लिए आमंत्रित किया जाए.


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कैलाश पहुंचे पुरोहित और नाई


इस कार्य के लिए पर्वतराज ने अपने विशेष पुरोहित को लग्न और निमंत्रण पत्रिका लेकर कैलाश के लिए भेजा. उन्होंने साथ में नाई को भी भेजा. इसी नाई को पार्वती की मां और नानी ने बेटी के ससुराल की उचित जानकारी लेने के लिए भी अलग से कह रखा था. कहते हैं कि शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे पुरोहित तो शिव महिमा को जानते थे. उन्हें अपनी  भक्ति के कारण महादेव के साक्षात दर्शन हुए, लेकिन नाई सांसारिक था.  महादेव दोनों की ही मनः स्थिति समझ रहे थे इसलिए मुस्कुरा दिए.


नाई को पसंद नहीं आया शिव-पार्वती का विवाह


पुरोहित के द्वारा विवाह का प्रस्ताव सुनने और शुभ मुहूर्त आदि जानकर शिव ने अपनी निर्धनता का बखान किया, इस पर पुरोहित महाराज तो विनम्रता से इन सारी बातों को नकारते रहे, लेकिन नाई संकोचवश न तो हां कर सका और न ही न कह सका. नाई के सामने शिव ने अपनी निर्धनता और साधुता का वर्णन करते हुए कहा कि इस विवाह के औचित्य पर पुन: विचार करना चाहिए. लेकिन पुरोहित के बार-बार अनुनय विनय करने पर शिव मान गए.


जब दोनों ही कैलाश से चलने लगे तो शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति दी. नाई ने वह भभूत रास्ते में ही फेंक दी और पुरोहित को उलाहना देते हुए कहा कि बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह पक्का कर आए हो तुम, तुम्हें कुछ तो सोचना था. नाई इस संबंध से संतुष्ट नहीं था. ऐसे में उसने जाकर राजा हिमालय से भी सब सीधा-सीधा कह दिया. यह सब सुनकर हिमालय भी माया के फेर में पड़ गए.


महादेव ने नाई को दिया वरदान


उधर पुरोहित ने भभूत को घर में सम्मान से रखा था तो उसका घर धन-धान्य से भर गया. नाई ने अपमान किया था तो वह खाली हाथ रहा. जब नाई को पुरोहित से यह सब पता चला तो उसने इसका कारण पूछा. पुरोहित ने कहा, जिन्हें तू साधारण बैल पर बैठने वाला समझ रहा है, वही आदि शिव हैं. वह हैं भी और नहीं भी हैं. वह अनंत है.


नाई को इस तरह ज्ञान प्राप्त हुआ तो वह पश्चाताप करने लगा. उसने महादेव से शरण में ले लेने का अनुरोध किया, तब महादेव द्रवित हो गए. उन्होंने प्रकट होकर नाई को आशीर्वाद दिया. उधर विवाह से पहले उन्होंने हिमराज का भ्रम भी दूर किया. इसी कथा के आधार पर भारतीय विवाह में नाई का महत्व बढ़ जाता है.  कुछ पौराणिक आख्यानों  के साथ मेल करते हुए यह कथा लोक में काफी प्रचलित है. यह बताती है कि सनातन परंपरा के हर संस्कार और उनके विधान कितने पवित्र और किस तरह सामाजिक महत्व का मेल लिए हुए हैं.


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