हाथ कटा तो करने जा रहे थे आत्महत्या, कोच की इस सीख ने पैरालंपिक में दिलाया पदक
25 साल के सुंदर सिंह गुर्जर की जिंदगी उस समय बदल गई, जब एक मित्र के घर की टिन की छत उनके ऊपर गिर गई और उनका बायां हाथ काटना पड़ा.
नई दिल्लीः पैरालंपिक (Paralympics) में पदार्पण करते हुए कांस्य पदक जीतने वाले भाला फेंक के खिलाड़ी सुंदर सिंह गुर्जर (Sundar Singh Gurjar) कुछ समय पहले अपना अंग गंवाने और आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे थे, लेकिन अब वह उन लोगों विशेषकर अपने कोच महावीर सैनी का आभार जताना चाहते हैं, जिन्होंने उन्हें मुश्किल हालात से बाहर निकाला. वर्ष 2015 तक सुंदर शारीरिक रूप से पूर्णत: सक्षम खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा करते थे. वह जूनियर राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा भी थे, जिसमें तोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) भी हिस्सा ले रहे थे.
मुझे लगा- सब कुछ खत्म हो गया
25 साल के इस खिलाड़ी की जिंदगी उस समय बदल गई, जब एक मित्र के घर की टिन की छत उनके ऊपर गिर गई और उनका बायां हाथ काटना पड़ा. हालांकि, सुंदर ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपने कोच की मदद से पैरा खिलाड़ी वर्ग में वापसी की. उन्होंने एक साल के भीतर 2016 रियो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन एक बार फिर उनका मुसीबतों से सामना हुआ.
सुंदर ने एक साक्षात्कार में कहा, 'मैंने वापसी की और 2016 पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन डिस्क्वालीफाई हो गया. उस समय यह सोचकर मैं टूट गया था कि सब कुछ खत्म हो गया है. मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा.
'कोच ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा'
सुंदर ने कहा, 'मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन उस समय मेरे कोच (महावीर सैनी) ने महसूस किया कि मेरे दिमाग में कुछ गलत चल रहा है. कुछ महीनों तक उन्होंने चौबीस घंटे मुझे अपने साथ रखा, मुझे अकेला नहीं छोड़ा. समय बीतने के साथ मेरे विचार बदल गए. मैं सोचने लगा कि मैं दोबारा खेलना शुरू कर सकता हूं और दुनिया को वापस जवाब दे सकता हूं.' सुंदर रियो पैरालंपिक की स्पर्धा के लिए 52 सेकेंड देर से पहुंचे थे, जिसके कारण उन्हें डिस्क्वालीफाई कर दिया गया था.
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52 सेकेंड की देरी पर कर दिया था डिस्क्वालीफाई
तोक्यो पैरालंपिक की एफ46 भाला फेंक स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता ने कहा, '2016 पैरालंपिक के दौरान मैं अपनी स्पर्धा में शीर्ष पर चल रहा था, लेकिन कॉल रूम में 52 सेकेंड देर से पहुंचा और मुझे डिस्क्वालीफाई कर दिया गया. इसके बाद मेरा दिल टूट गया.' सुंदर ने अपने जीवन और करियर को बदलने का श्रेय अपने कोच महावीर को दिया. उन्होंने कहा, 'मैं 2009 से खेलों से जुड़ा था. शुरुआत में मैं गोला फेंक का हिस्सा था. मैंने राष्ट्रीय गोला फेंक स्पर्धा में पदक भी जीता. मैंने डेढ़ साल तक गोला फेंक में हिस्सा लिया और इसके बाद मेरे कोच महावीर सैनी ने मुझे कहा कि अगर तुम्हें अपने करियर में अच्छा करना है तो गोला फेंक छोड़कर भाला फेंक से जुड़ना होगा.'
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नीरज चोपड़ा के साथ सफर को किया याद
सुंदर ने कहा, 'उन्होंने मेरे अंदर कुछ प्रतिभा देखी होगी और उन्होंने मुझे ट्रेनिंग देनी शुरू की. इसके बाद से अब तक कोच ने मेरा काफी समर्थन किया.' उन्होंने शिविर में नीरज के साथ ट्रेनिंग के समय को भी याद किया. उन्होंने कहा, 'वह मेरा दो साल जूनियर था. मैं अंडर-20 में हिस्सा लेता था और वह अंडर-18 में. हम युवा स्तर पर कुछ प्रतियोगिताओं में एक साथ खेले. जूनियर भारतीय शिविर में मैं और नीरज 2013-14 में साई सोनीपत शिविर में एक साथ थे. इसके बाद 2015 में मेरे साथ दुर्घटना हुई और मुझे पैरा स्पर्धा में हिस्सा लेना पड़ा.' बता दें कि सुंदर पिछले साल नवंबर से राजस्थान सरकार के वन विभाग में अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पहली बार वेतन पैरालंपिक पदक जीतने के बाद मिला.
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