बंगाल से टूटा रिद्धिमान साहा का 15 साल पुराना रिश्ता, जानें क्या है पूरा मामला
भारतीय टीम से बाहर किये गये रिद्धिमान साहा को शनिवार को बंगाल क्रिकेट संघ (कैब) ने एनओसी (अनापत्ति पत्र) दे दी है. इसके साथ ही साहा का बंगाल क्रिकेट संघ से 15 साल का रिश्ता कड़वाहट भरी परिस्थितियों में समाप्त हो गया है.
नई दिल्ली: भारतीय टीम से बाहर किये गये रिद्धिमान साहा को शनिवार को बंगाल क्रिकेट संघ (कैब) ने एनओसी (अनापत्ति पत्र) दे दी है. इसके साथ ही साहा का बंगाल क्रिकेट संघ से 15 साल का रिश्ता कड़वाहट भरी परिस्थितियों में समाप्त हो गया है. भारतीय क्रिकेट टीम के लिये अब तक 40 टेस्ट मैच खेल चुके साहा को भारतीय टीम मैनजेमेंट ने साफ कह दिया था कि उन्हें दूसरे विकेटकीपर के रूप में उम्रदराज खिलाड़ी की जरूरत नहीं है.
तब से साहा बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली की आलोचना कर रहे थे और शुरू में उन्होंने मुख्य कोच राहुल द्रविड़ के बारे में कुछ ऐसा ही कहा था. कैब ने कहा, ‘‘रिद्धिमान साहा कैब कार्यालय आये और अध्यक्ष अविषेक डालमिया को एक आवेदन से संघ से एनओसी मांगी. कैब ने साहा के अनुरोध पर उन्हें दूसरे राज्य के लिये खेलने के लिये एनओसी प्रदान की. कैब ने उन्हें भविष्य के लिये शुभकामनायें भी दीं. ’’
कैब के सचिव ने साहा पर लगाये थे आरोप
गौरतलब है कि कैब के संयुक्त सचिव देबब्रत ‘देबू’ दास ने आरोप लगाया था कि अनुभवी विकेटकीपर राज्य के लिये घरेलू मैच में नहीं खेलने के लिये बहाना बनाता था. इस पर नाराज साहा ने दास से बिना शर्त माफी मांगने को कहा था जो उन्होंने नहीं किया और जब कैब अधिकारी को भारतीय टीम के प्रशासनिक प्रबंधक के तौर पर इंग्लैंड भेजा गया तो साहा को जवाब मिल गया और उन्होंने यह फैसला किया.
एनओसी मिलने पर साहा ने तोड़ी चुप्पी
एनओसी मिलने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए साहा ने कहा कि उनसे अपने फैसले पर फिर से विचार करने को कहा गया. साहा ने साथ ही कहा कि उन्हें कभी भी बंगाल से कोई शिकायत नहीं होगी और भविष्य में जरूरत पड़ने पर फिर से सेवा के लिये तैयार रहेंगे. साहा को एनओसी मिल जाने के बाद अब वो किसी दूसरे राज्य से घरेलू क्रिकेट में खेलते हुए नजर आ सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझसे पहले भी पूछा गया था. आज भी बार बार अनुरोध किया गया. लेकिन मैंने फैसला पहले ही कर लिया था. इसलिये मैंने आज एनओसी ले ली. मुझे बंगाल क्रिकेट संघ से कोई अहंकार संबंधित कोई मुद्दा नहीं था. बस किसी से (संयुक्त सचिव देबू) से असहमति थी इसलिये मुझे यह फैसला करना पड़ा.
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