आधार ने बदल दी लापता दिव्यांग की जिंदगी, 6 साल बाद मिलवाया बिछड़े परिवार से
एक परिवार के खोए हुए सदस्य को परिवार से वापस मिलाने में आधार ने एक बार फिर अहम भूमिका निभाई है. इस बार, एक 21 वर्षीय दिव्यांग युवक, छह साल तक लापता रहने के बाद अपने परिवार से वापस मिला है.
नई दिल्ली: मौजूदा वक्त में आधार कार्ड सबसे जरूरी दस्तावेजों में से एक है. हमें किसी भी तरह की सरकारी सुविधा का फायदा उठाने, बैंक में खाता खुलवाने, कहीं पर अपनी पहचान बताने, आदि कामों के लिए आधार की जरूरत पड़ती ही है. लेकिन अब इन कामों के अलावा आधार बिछड़े लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम भी कर रहा है.
आधार के जरिए अपने बिछड़े परिवार से मिला दिव्यांग युवक
एक परिवार के खोए हुए सदस्य को परिवार से वापस मिलाने में आधार ने एक बार फिर अहम भूमिका निभाई है. इस बार, एक 21 वर्षीय दिव्यांग युवक, छह साल तक लापता रहने के बाद अपने परिवार से वापस मिला है.
बिहार के खगड़िया जिले से नवंबर 2016 में लापता हुए युवक को आधार के जरिए उसके परिवार से मिलावाया जा सका है. लापता हुआ व्यक्ति बोलने/ सुनने में असक्षम था और महाराष्ट्र के नागपुर में मिला था.
आधार के जरिए ऐसे हुई पहचान
दरअसल 15 वर्ष की आयु का एक लापता बच्चा 28 नवंबर, 2016 को नागपुर रेलवे स्टेशन पर पाया गया था.चूंकि बच्चा विशेष रूप से दिव्यांग था तथा उसे बोलने और सुनने की अक्षमता थी, इसलिए रेलवे अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया के बाद उसे नागपुर में वरिष्ठ लड़कों के सरकारी अनाथालय को सौंप दिया.
अनाथालय के अधीक्षक और परामर्शदाता विनोद डाबेराव ने जुलाई 2022 में इस लड़के के आधार पंजीकरण के लिए नागपुर में आधार सेवा केंद्र (एएसके) का दौरा किया. लेकिन इस नामांकन के लिए आधार नहीं बनाया जा सका, क्योंकि बॉयोमीट्रिक्स एक और आधार नंबर से मेल खा रहे थे.
इसके बाद एएसके, नागपुर ने यूआईडीएआई के क्षेत्रीय कार्यालय, मुंबई से संपर्क किया. सत्यापन करने पर यह बात सामने आयी कि संबंधित युवक के पास 2016 से बिहार के खगड़िया जिले के एक इलाके का आधार है और इसमें युवक का नाम सोचन कुमार है.
आगे की जांच और सत्यापन के बाद, और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए, अधिकारियों ने अनाथालय के अधीक्षक को युवक की पहचान के बारे में जानकारी दी और खगड़िया (बिहार) में स्थानीय पुलिस के सहयोग से परिवार को सूचना दी गई.
इससे पहले भी आया था ऐसा ही मामला
बता दें कि इससे पहले अगस्त में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जब महाराष्ट्र में 14 लापाता लोगों को आधार सत्यापन के जरिए उनके परिवार से मिलवाया गया था.
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