नई दिल्ली: अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, ब्राजील, भारत और इजरायल समेत कई देशों में कोरोना वायरस की वैक्सीन पर काम चल रहा है. वैज्ञानिक और डॉक्टर तरह तरह की रिसर्च करके कोरोना का इलाज खोज रहे हैं. जैसे जैसे रिसर्च हो रही है हर रोज नए नए तथ्य और जानकारियां वैज्ञानिकों को पता चल रही हैं. कोरोना के इस महासंकट के दौर में संक्रमण से बचने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करने वालों की संख्या में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है.


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एंटीबायोटिक दवाएं इन  मनुष्यों के लिए हानिकारक


WHO का कहना है कि एंटीबायोटिक खाने के दुष्परिणाम महामारी के दौरान ही नहीं और महामारी खत्म होने के बाद तक दिखाई देंगे. यानी कोरोना काल में एंटीबायोटिक खाना जानलेवा हो सकता है. WHO के महानिदेशक ट्रेडोस अधनोम घेब्रेयसस ने कहा कि बैक्टीरिया के संक्रमण का इलाज करने के लिए जो दवाएं पहले इस्तेमाल की जाती थीं, वो दवाएं अब काम नहीं कर रही हैं.



बढ़ सकती है मरने वालों की संख्या


विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक सेवन पर चिंता जताते हुए कहा है कि कोविड-19 महामारी की वजह से एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ गया है, जिससे बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाएगी और बीमारी जल्दी ठीक नहीं होगी और इससे मौत के आंकड़े बढ़ेंगे.


कोरोना के सभी रोगियों को इसकी जरूरत नहीं


WHO ने बताया कि कोरोना वायरस के सभी रोगियों को संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत नहीं होती. WHO ने एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर नए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. इसके अनुसार, संगठन ने COVID-19 रोगियों पर एंटीबायोटिक थेरेपी या प्रोफिलैक्सिस का उपयोग नहीं करने के सुझाव दिए हैं.


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गरीब देशों में हो रहा ज्यादा प्रयोग


विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कहा गया है कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का खतरा हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. यह स्पष्ट है कि दुनिया गंभीर रूप से अहम एंटीमाइक्रोबियल दवाओं का इस्तेमाल करने की क्षमता खो रही है, जबकि कई गरीब देशों में इन दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल हो रहा है.