2022 में इस रफ्तार से आगे बढ़ रही इंडियन GDP, जानें क्या हैं इससे जुड़े आंकड़े
बढ़ती महंगाई और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (2022-23) में 6.5 से 7.1 प्रतिशत के बीच रहेगी. डेलॉयट इंडिया ने एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ माह से ऊंची मुद्रास्फीति नीति-निर्माताओं के लिए चुनौती बनी हुई है.
नई दिल्ली: दुनिया की टॉप 5 इकोनॉमी बनने की ओर बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की GDP से जुड़ा एक आंकड़ा जारी किया गया है. इस रिपोर्ट में ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में इंडिया की GDP 6.5-7.1 फीसदी के बीच रहेगी.
इस साल इतनी रहेगी इंडिया की GDP ग्रोथ
बढ़ती महंगाई और वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष (2022-23) में 6.5 से 7.1 प्रतिशत के बीच रहेगी. डेलॉयट इंडिया ने एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ माह से ऊंची मुद्रास्फीति नीति-निर्माताओं के लिए चुनौती बनी हुई है. भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल, 2022 से मुद्रास्फीति पर अंकुश के लिए प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 1.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है.
इस वजह से बढ़ रही है महंगाई
रिपोर्ट कहती है कि इसके अलावा डॉलर के चढ़ने से आयात बिल बढ़ रहा है जिससे महंगाई भी बढ़ रही है. इसमें कहा गया है कि कुछ विकसित देशों में 2022 के अंत या अगले साल की शुरुआत में मंदी से स्थिति और खराब हो सकती है. डेलॉयट ने कहा, "वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के लगातार जारी रहने से भारत के वृद्धि के कारकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना शुरू होगा."
पिछले साल कितनी थी GDP ग्रोथ रेट
डेलॉयट का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारत की वृद्धि दर 6.5 से 7.1 प्रतिशत के बीच रहेगी. जबकि अगले साल यह 5.5 से 6.1 प्रतिशत के बीच रहेगी. भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2021-22 में 8.7 प्रतिशत रही थी.
क्या कहा अर्थशास्त्रियों ने
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि, हमारा अनुमान है कि आगामी त्योहारी सीजन से उपभोक्ता क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा. यह क्षेत्र अभी सतत पुनरुद्धार नहीं दिखा पाया है. उद्योग और सेवा क्षेत्र में ऋण उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है, जिससे पता चलता है कि निजी क्षेत्र की निवेश संभावनाएं बेहतर हैं. निवेश को बढ़ाने के लिए सतत मांग वृद्धि जरूरी है। घटती वैश्विक मांग और सीमित संसाधनों की वजह से निर्यात और सरकारी खर्च से वृद्धि को संभवत: समर्थन नहीं मिलेगा.
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