नई दिल्लीः सामवेद के हिंदी और उर्दू अनुवाद के लॉन्चिंग के मौके पर इकबाल दुर्रानी ने महिलाओं को लेकर खराब मिसाल दी. उन्होंने ये बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के समक्ष कहीं. यह कार्यक्रम 17 मार्च को दिल्ली के लाल किला परिसर में हुआ था. 


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इकबाल दुर्रानी ने किया है उर्दू अनुवाद
दरअसल, सामवेद का उर्दू अनुवाद फिल्म डायरेक्टर इकबाल दुर्रानी ने किया. उन्होंने इस दौरान कहा कि सामवेद को मदरसों में पढ़ाया जाना चाहिए. अपनी बात रखने के दौरान उन्होंने एक बेहूदा मिसाल भी दी. 


औरतों को लेकर दुर्रानी ने कही ये बात
उन्होंने कहा, 'सामवेद एक मूल पुस्तक है. बनावटी नहीं है. मूल क्या होता है? दुनियाभर की औरतों के बदन के रंग अलग-अलग हैं, लेकिन अगर उनके स्तन को निचोड़ें, सबके दूध का रंग एक ही होता है. यही सनातन है. यही शाश्वत सत्य है. बड़े रंगबाज, बड़े रंगसाज हैं आप. तो जरा दूध के रंग को तो बदल दो. नहीं बदल सकते. साड़ियों का रंग अलग है, लाल साड़ी, काली साड़ी. लेकिन जब मरते हैं तो अफ्रीका से, अमेरिका से लेकर हिंदुस्तान तक सारे लोगों के कफन का रंग एक ही होता है.'


 



सिनेमा से भी है दुर्रानी का नाता
उनके इस बयान पर सोशल मीडिया पर लोग सवाल भी उठा रहे हैं. इकबाल दुर्रानी का नाता सिनेमा से है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इकबाल दुर्रानी का जन्म बिहार के बांका जिले के बलुआतरी गांव में हुआ था. उनके पिता सरकारी अध्यापक थे. उनका परिवार झारखंड के गोड्डा चला गया था. यहां उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई. इसके बाद झारखंड के चाईबासा स्थित टाटा कॉलेज से बैचलर डिग्री ली थी. 


मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इकबाल दुर्रानी टाटा कॉलेज में छात्रसंघ के चुनाव में सेक्रेटरी भी चुने गए थे. वह यह मुकाम पाने वाले वहां के पहले मुस्लिम छात्र थे. इकबाल दुर्रानी ने कई फिल्में लिखी हैं और कुछ फिल्में डायरेक्ट भी की हैं.


दुर्रानी ने बनाई हैं कई फिल्में
इकबाल दुर्रानी ने फरेब, बेताज बादशाह, मेहंदी, खुद्दार, फूल और कांटे, सौगंध, कातिल और मजबूर जैसी फिल्में बनाई हैं. यही नहीं इकबाल दुर्रानी ने राजनीति में भी कदम रखा था. वह 2009 में गोड्डा विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे. वह चुनाव नहीं जीत पाए थे.


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