नई दिल्ली: मोबाइल और इंटरनेट टेक्नोलॉजी ने हमें कई सहूलियतें दी, जीवन को आसान बनाया, खासतौर पर कोविड काल में इसी के सहारे बच्चों की पढ़ाई चल रही है. लेकिन इसी टेक्नोलॉजी का एक दूसरा पहलू भी है जो बेहद गंभीर, खतरनाक और जानलेवा है.


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अगर समय रहते हम और आप नहीं जागे तो हम अपने बच्चों को खो सकते हैं. आखिर मोबाइल कैसे बन गया बच्चों की जान का दुश्मन? कैसे बनाता है ये मासूमों को अपना शिकार ? घर घर के घुस आए इस नए काल को भगाने का क्या है उपाय? आइए जानने की कोशिश करते हैं.


ऑनलाइन गेम छीन रहा है मासूमों की जिंदगी


मध्यप्रदेश के छतरपुर से आई खबर ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, ऑनलाइन गेम की लत ने एक 13 साल के बच्चे की जिंदगी छीन ली. छठी में पढ़नेवाले छात्र ने ऑनलाइन गेम में 40 हजार रुपये गंवाने के बाद फांसी लगाकर जान दे दी. उसने सुसाइड नोट में इसके लिए अपने माता-पिता से माफी मांगी.


इससे पहले सागर में 12 साल के बच्चे ने सुसाइड कर लिया था, बच्चे को फायर गेम की लत थी. पिता ने मोबाइल छीना तो गुस्से में बच्चे ने जान दे दी. ऐसे कई केस है जहां मोबाइल और ऑनलाइन गेम की लत ने मासूमों की जान ली है.


पबजी के बाद फ्री फायर गेम बना बच्चों का नया काल


छतरपुर की घटना के बाद फ्री फायर गेम बनाने वाली कंपनी पर FIR दर्ज हो गई है, एमपी के गृहमंत्री ने ऐसी कंपनियों को कानून के दायरे में लाकर प्रतिबंधित करने का निर्देश दे दिया है. इससे पहले केंद्र सरकार पबजी को बैन कर चुकी है खुद पीएम मोदी ने भी इस तरह के ऑनलाइन गेम्स को लेकर चिंता जाहिर की थी.


लेकिन पबजी मोबाइल पर बैन के बाद हाल ही में दो समान गेम, फ्री फायर (गेरेना फ्री फायर - रैम्पेज) और पबजी इंडिया (बैटल ग्राउंड्स मोबाइल इंडिया) भी पिछले पबजी की तरह बच्चों पर प्रभाव डाल रहे हैं. एक जज ने पीएम से इन गेम्स को बैन करने की मांग की है. एडीजे नरेश कुमार लाका ने पीएम मोदी को खत लिखकर फ्री फायर और पबजी इंडिया गेम को बैन करने की गुजारिश की है.


WHO के मुताबिक मानसिक विकार है ऑनलाइन गेमिंग


वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक स्वास्थ्य विकार घोषित किया था. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 'गेमिंग डिसऑर्डर' गेमिंग को लेकर बिगड़ा नियंत्रण है, जिसका दूसरी दैनिक गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ता है. डब्ल्यूएचओ ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिजीज के ताजा अपडेट में यह भी कहा कि गेमिंग कोकीन और जुए जैसे पदार्थों की लत जैसी हो सकती है.


वीडियो गेम्स पर चीन को लगाना पड़ा कर्फ्यू


चीन दुनिया के सबसे बड़े गेम बाज़ारों में से एक है, लेकिन 2019 में खुद चीन की सरकार को वीडियो गेम की लत पर काबू करने के लिए नाबालिग बच्चों के ऑनलाइन गेम खेलने के समय पर कर्फ्यू लगाने की घोषणा करनी पड़ी. 
इसके तहत 18 साल से कम आयु के बच्चों के रात 10 से सुबह 8 बजे के बीच ऑनलाइन गेम खेलने पर प्रतिबंध लगाया गया. बच्चों को सप्ताह के दिनों में सिर्फ 90 मिनट और सप्ताह के अंत और छुट्टियों में 3 घंटे तक ही गेम खेलने की अनुमति दी गई.


कैसे बच्चों को आकर्षित करते हैं ये गेम्स?


गरेना फ्री फायर, पोकेमॉन, बैटलग्राउंड मोबाइल इंडिया, ग्रैंड थेफ्ट ऑटो वी, माइनक्राफ्ट, फोर्टनाइट जैसे कई ऑनलाइन गेम्स हैं. जो अपने रोमांचक एक्शन, ग्राफिक्स और इंटरैक्टिव नेचर के साथ बच्चों और युवाओं को खूब लुभाते हैं.


इसकी जद में खास कर छोटे बच्चे आते हैं जो इस तरह के कमांड ओरिएंटेड और ग्राफिक्स फीचर्स से सबसे ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं और दिन-रात बिना रुके खेलते रहते हैं. मां बाप को यही लगता है कि बच्चा मोबाइल पर पढ़ाई कर रहा है जबकि वो किसी दूसरी दुनिया में खोए होते हैं.


कोरोना काल में बच्चों में और ज्यादा बढ़ गई लत


कोरोना काल मे स्कूल बंद होने की वजह से पिछले डेढ़ साल से ऑनलाइन क्लासेज चल रहे हैं, जिसकी वजह से सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल, लैपटॉप आ गए हैं. लेकिन अब इसका साइड इफेक्ट भी दिख रहा है. बच्चे मोबाइल पर पढ़ाई करने के साथ-साथ गेम खेल रहे हैं.


दरअसल, बहुत से अभिभावकों को इस बात का पता ही नहीं चल रहा कि उनके बच्चे ऑनलाइन क्लास अटेंड कर रहे हैं या मोबाइल पर कुछ और देख रहे हैं. जिसका असर उनके व्यवहार पर पड़ रहा है. मनोवैज्ञानिकों के पास इसकी प्रतिदिन 5 से 7 शिकायतें आ रही हैं कि बच्चे घंटों मोबाइल पर लगे रहते हैं.


हमेशा मोबाइल से चिपके रहना 'बिहेवियर कंडक्ट डिसऑर्डर'


दिन भर मोबाइल की लत से बच्चों के व्यवहार पर सबसे बुरा असर पड़ रहा है बच्चे हिंसक व्यवहार करने लगे हैं, मनोवैज्ञानिक इसे मोबाइल के अधिक प्रयोग होने से होने वाला बिहेवियर कंडक्ट डिसऑर्डर बताते हैं. जिसमें बच्चे बात न मानने पर हिंसक हो जाते हैं.


मोबाइल के साथ साथ घर की चीजों को तोड़ने-फोड़ने लगते हैं. वो देर रात भी चुपके चुपके मोबाइल पर नजरें गड़ाए गेम खेल रहे होते हैं, जिससे आंखों पर बुरा असर तो पड़ता है ही नींद ना आने की बीमारी भी लग जाती है, जिससे वो चिड़चिड़े रहने लगते हैं और बहुत जल्द डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.


छोटी-छोटी बातों का रखना होगा ख्याल


आज की तारीख में ये घर घर की समस्या बन चुकी है पैरेंट्स कहते हैं कि हम तंग आ चुके हैं. बच्चा मोबाइल छोड़ने को तैयार ही नहीं होता, करें तो क्या करें, आखिर इसका हल क्या है? ऐसा भी नहीं कि समाधान नहीं है बिल्कुल है अगर हम आप कुछ छोटी छोटी बातों का ख्याल रखें.


1. बच्चों के ऑनलाइन क्लासेज की टाइमिंग आपको पता होनी चाहिए, क्लासेज के बाद भी बच्चा लगातार मोबाइल पर लगा है तो उसे मोबाइल से दूर करने के लिए किसी बहाने दूसरे काम में उलझाएं, बच्चा जब मोबाइल से दूर हो या सो रहा हो मोबाइल की हिस्ट्री चेक करें कि कहीं वो गेम्स तो नहीं खेल रहा.


2. डिजिटल डिटॉक्स के जरिए जाने क्या वाकई ये मोबाइल एडिक्शन है, जरूरी नहीं कि बच्चे को मोबाइल पर गेम का ही चस्का हो वो दिन भर कार्टून या फिल्में भी देखता हो इसलिए जरूरी है कि बच्चे को दिन में 4 से 5 घंटे बिना मोबाइल के रखें अगर वो रह जाता है तो उसे एडिक्शन नहीं है. अगर नहीं रह पाता मतलब उसे लत लग चुकी है आप उसके प्रति सजग हो जाएं.


3. बच्चे के साथ डांट डपट या मारपीट ना करे ऐसा करने से वो और जिद्दी और हिंसक हो जाएगा, यहां आपको कूल रहकर उसके साथ पेश आना होगा. क्योंकि मोबाइल और उसके गेम्स की लत ऐसी होती है कि बच्चे की पूरी दुनिया ही मोबाइल हो जाती है, जो उसमें रोक टोक करता है बच्चा उसे अपना दुश्मन समझने लगता है. इसलिए यहां मां बाप को प्यार से बच्चों से डील करना होता है उसे प्यार से मोबाइल गेम्स से होनेवाले नुकसान के बारे में बताएं.


4. मां बाप भी घर पर मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल ना करें, बच्चा भी वही सीखता है जो आप करते हैं ज्यादातर मां बाप भी घर पर फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर या व्हाट्सएप पर व्यस्त रहते हैं ऐसे में बच्चों को मोबाइल देखने से टोकने पर वो तपाक से कहते हैं कि आप भी तो दिन भर मोबाइल में लगे रहते हो, इसलिए मां बाप को भी चाहिए कि फैमिली टाइम में मोबाइल की दखलंदाजी ना हो.


5. बच्चों से दोस्त बन कर उनसे अपनी कुछ यादें पुराने किस्से शेयर करें, संयुक्त परिवार में फिर भी बच्चे के साथ समय देने के लिए कई लोग मिल जाते हैं. लेकिन न्यूक्लियर फैमिली के लिए ये एक बड़ी चुनौती होती है. लेकिन इसका भी हल है. मां बाप जब घर पर हों तो ज्यादा से ज्यादा समय बच्चे के साथ बिताएं उससे उसकी पढ़ाई के अलावा उसके दोस्तों के बारे में उसकी रूचि के बारे में जाने, उससे दोस्त बनकर बात करें, उससे अपने बचपन की कुछ किस्सों और खेल की बातें साझा करें.


एक बात हमेशा याद रखें लत कोई भी हो तुरंत नहीं जाती , धीरे धीरे ही जाती है बस इनसे निपटने का एक ही तरीका है प्यार, धैर्य और समझदारी..


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