नई दिल्ली: भारत के लगभग हर स्कूल में स्कूल यूनिफॉर्म की पॉलिसी है. बिना इसके छात्रों को स्कूल में प्रवेश लेने की अनुमति नहीं होती है. हाल ही में हुई एक रिसर्च में सामने आया है कि स्कूल यूनिफॉर्म छात्रों को फिजिकल एक्टिविटी में हिस्सा लेने से रोक सकती है. खासतौर पर इसका असर प्राथमिक स्कूल की लड़कियों में ज्यादा देखने को मिल रहा है. 


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यूनिफॉर्म के कारण नहीं कर पाते फिजिकल एक्टिविटी 
'कैंब्रिज यूनिवर्सिटी' में हुई इस रिसर्च में दुनियाभर के 5-15 साल के 10 लाख से ज्यादा बच्चों की शारीरिक गतिविधियों का डाटा लिया गया. रिसर्च में पता चला कि जिन स्कूलों में यूनिफॉर्म अनिवार्य है वहां WHO द्वारा अनुशंसित 60 मिनट की डेली एक्सरसाइज में काफी कमी देखी गई है. रिसर्चर्स के मुताबिक बड़े छात्रों की तुलना में छोटे छात्र फिजिकल एक्टिविटी ज्यादा करते हैं, जैसे लंच के समय खेलना, कूदना, दौड़ना या चढ़ना वहीं लड़कियां अपनी स्कर्ट के चलते इन एक्टिविटीज में हिस्सा लेने में कतराती हैं .  


क्या कहती है शोध 
शोध के नतीजे पूरी तरह से इस बात को साबित नहीं करती है कि स्कूल ड्रेस के कारण ही बच्चे फिजिकल एक्टिविटी में पार्टिसेप नहीं कर पाते हैं, हालांकि इससे पहले किए गए अध्ययन इस बात पर जोर देते हैं कि स्कूल यूनिफॉर्म शारीरिक गतिविधी में बाधा डाल सकती है. इस रिसर्च के दावे का आकलन करने के लिए बड़े पैमाने पर स्टैटिक्स प्रमाण की जांच कर रहा है. 


क्या कहती हैं शोधकर्ता
रिसर्च को लेकर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ एजुकेशन और MRC एपिडेमियोलॉजी यूनिट की रिसर्चर डॉ. माइरीड रेयान ने कहा कि स्कूल कई कारणों से अपने यहां यूनिफॉर्म कंपल्सिरी करना पसंद करते हैं. हम इस पर पूरी तरह से बैन लगाने का सुझाव देने की बात तो नहीं कर रहे हैं बल्कि इस तरह के निर्णय लेने में उनके लिए नए सबूत पेश कर रहे हैं. स्कूल वाले अपनी यूनिफॉर्म की डिजाइन पर विचार कर सकते हैं कि यह फिजिकल एक्टिविटी के अवसरों को बढ़ावा दे सकती है या नहीं. 


WHO की सलाह
WHO की सलाह है कि युवाओं को हर दिन कम से कम 60 मिनट की फिजिकल एक्सरसाइज करनी चाहिए. वहीं रिसर्च मानती है कि ज्यादातर बच्चे इस काम को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, खासकर कि लड़कियां. कई देशों में 60 मिनट की इस शारीरिक गतिविधी को करने वाले लड़के और लड़कियों के प्रतिशत में औसतन 7.6 प्रतिशत अंक का अंतर था.  


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