What Is Philophobia: फरवरी का महीना चल रहा है. आशिकों को इस महीने का पूरे साल बेसब्री से इंतजार रहता है. हर आशिक Valentine Week में अपने क्रश से प्यार का इजहार कर उसे मनाने की कोशिश करता है. प्यार एक खूबसूरत एहसास होता है, जिसे सिर्फ प्रेम करने वाले ही बेहतर तरीके से महसूस कर सकते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है, जिन्हें प्यार का नाम सुनते ही अजीब सी बैचेनी हो जाती है और प्यार से नफरत होती है.


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अधिकतर मामलों में यह व्यक्ति के अतीत से जुड़ा हो सकता है, लेकिन कुछ मामलों में यह फोबिया का कारण भी हो सकता है. प्यार से डर लगना भी एक प्रकार का फोबिया है जिसे फिलोफोबिया कहा जाता है. आइए जानते हैं क्या होता है फिलोफोबिया और कैसे ये आपको परेशान कर सकता है....


प्यार के नाम से छूटने लगता है पसीना...
जिन लोगों को प्यार का नाम सुनते ही अजीब सी बैचेनी होने लगती है, वो लोग फिलोफोबिया बीमारी से ग्रस्त हो सकते हैं. यह लोग प्यार से दूरी बनाने लगते हैं. बता दें यह व्यक्ति के अतीत से जुड़ा हो सकता है, लेकिन कुछ मामलों में यह फोबिया का कारण भी हो सकता है. इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति खुद को प्रेम की भावनाओं से दूर रहने की कोशिश करता है. इस फोबिया में व्यक्ति अन्य लोगों से दूरी बनता है और खुद के करीब किसी को आने से परहेज करने लगता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक फिलोफोबिया (Philophobia) से ग्रस्त व्यक्ति को प्यार की बात करने से भी डर लगता है. 


क्या हैं फिलोफोबिया के लक्षण?
हर व्यक्ति में फिलोफोबिया में अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. फिलोफोबिया की पहचान कुछ यूं कर सकते हैं. अगर किसी व्यक्ति को प्यार का नाम सुनकर घबराहट होती है या फिर अजीब से बैचेनी होती है, तो यह भी फिलोफोबिया का लक्षण हो सकता है. इसके अलावा खुद के ओर किसी व्यक्ति को आते देख अचानक दिल की धड़कन बढ़ जाना या सांस लेने में परेशानी होना भी इस फोबिया का लक्षण हो सकता है. वहीं अगर आपको लोगों से मिलने-जुलने से डरना लगता हो या फिर लोगों से दूरी बनाकर रहने में आराम मिलता हो, तो यह भी फिलोफोबिया का लक्षण हो सकता है.


कैसे करें फिलोफोबिया से बचाव
जो व्यक्ति फिलोफोबिया से ग्रस्त होता है. उस व्यक्ति को एंग्जायटी, डिप्रेशन होने लगता है. कभी-कभी यह बीमारी इतना बड़ा रूप ले लेती है कि इंसान आत्महत्या करने की भी सोचने लगता है. ऐसे में इस बीमारी से समय रहते बाहर आना बेहद ही ज़रूरी है.  रिपोर्ट्स के मुताबिक इस बीमारी से बाहर आने के लिए व्यक्ति को अपने किसी करीबी से खुलकर बात करनी चाहिए. दिल में जो बाते आप बार -बार सोच रहे हैं, वो सभी बाते किसी दूसरे व्यक्ति से सांझा करें. बावजूद इसके भी अगर आपको राहत नहीं मिल रही है और खुद को नुकसान पहुंचाने के ख्याल दिमाग में बार बार आ रहे है, तो तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क कर परामर्श लेना चाहिए.


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