नई दिल्लीः पूरी दुनिया की नज़र अफगानिस्तान की हलचल पर है, जब से अमेरिकी सेना की पूर्ण वापसी की समय सीमा नज़दीक आ रही है अफगान के पड़ोसियों के माथे पर शिकन बढ़ती जा रही है. वजह है कट्टर तालिबान का अफगानिस्तान में फिर बढ़ता दायरा. अब सवाल है कि तालिबान के मजबूत होने से किसे अपना फायदा दिख रहा है और किसे चिंता हो रही है. हिदुस्तान और अफगानिस्तान का रिश्ता दशकों पुराना है लेकिन उस मुल्क में कट्टर तालिबान के पैर पसारना क्या हमारे हक में होगा? ऐसे कई सवाल लोगों के जेहन में हैं. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर तालिबान आज क्यों मजबूत हुआ और इससे दुनिया क्यों चिंतित है.


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अमेरिकी सेना की वापसी से तालिबान के हौसले बुलंद  
करीब 20 साल तक अफगानिस्तान में रहकर तालिबान और अलकायदा के खिलाफ लड़ने वाली अमेरिकी सेना अब अपने पैर वापस खीच रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पहले ही कह चुके हैं कि 31 अगस्त तक अमेरिकी सेना की पूरी तरह से वापसी हो जाएगी. इस फैसले से तालिबान के हौसले फिर से बुलंद हैं. अफगान सेना और तालिबनियों के बीच लगातार युद्ध चल रहा है. दरअसल 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने न सिर्फ तालिबान को अफगानिस्तान के सत्ता से बेदखल किया बल्कि अलकायदा से भी अपना बदला पूरा कर लिया लेकिन इस दौरान अमेरिका को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी. उसके 2300 से ज्यादा सैनिकों की जान चली गई 20000 से ज्यादा सैनिक घायल हो गए . अंतर्राष्ट्रीय मंचों के अलावा अमेरिका के चुनाव में भी कई बार ये मुद्दा बना . अब सवाल है कि अमेरिकी फौज के जाने के बाद  अब अफगानिस्तान का क्या होगा .


तालिबान की अफगानिस्तान पर कितनी पकड़ मजबूत हुई  
तालिबानी लड़ाकों और अफगान सेना के बीच लगातार जंग चल रही है तालिबान का दावा है कि उसने अफगानिस्तान के 85 फीसदी हिस्से पर अपना कंट्रोल कर लिया है लेकिन अफगान सेना का कहना है कि वो तालिबानियों को उनके नापाक मंसूबों में कामयाब नहीं होने देगी . तालिबान के खिलाफ अफगान वायुसेना भी भीषण हमले करके आतंकियों के ठिकाने को तबाह कर रही है. अफगानिस्‍तान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि उसने एक दिन के भीतर  ही 267 तालिबानी आतंकी मार गिराए हैं जिनमें तालिबान कई टॉप कमांडर भी है. दरअसल तालिबान गुरिल्ला युद्ध की रणनीति पर चल रहा है यानी मारो और भागो . पहले उन्होंने गांव और दूर दराज के इलाके पर कंट्रोल किया . फिर प्रांतीय राजधानियों को घेरना शुरु किया . कंधार और देश के बड़े शहरों के बाहरी इलाके में भारी गोलाबारी जारी है. तालिबानी लड़ाके धीरे-धीरे राजधानी काबुल की तरफ बढ़ रहे हैं. हालाकि अफगान सेना ने फिर से 10 जिलों पर कब्जा जमा लिया .


 तालिबान की मजबूती से भारत पर कितना असर
पाकिस्तान के बाद अपने पड़ोस में एक और हुकुमत हिंदुस्तान के लिए बड़ी चुनौती है. पड़ोस में अफगानिस्तान की मजबूती भारत के हक में है इसके जरिए भारत पाकिस्तान तो घेर ही सकता है,साथ ही आतंकवादी गतिविधियों पर नकेल कसने में मददगार हो सकता है. लेकिन तालिबान का चीन की तरफ झुकाव भारत के लिए किसी लिहाज से फायदेमंद नहीं है इससे व्यापारिक और कूटनीतिक दोनो तरह का नुकसान हो सकता है .


भारत ने अपने पुराने पड़ोसी अफगानिस्तान में करीब 3 अरब  डॉलर का भारी भरकम निवेश कर रखा है कई प्रोजेक्ट पूरे हुए तो कई पर काम चल रहा है जो अफगानिस्तान के विकास में बेहद मददगार साबित हुए हैं चाहे सड़क और पुल का निर्माण हो , बिजली के पावर प्रोजेक्ट हों या स्कूल अस्पताल . भारत की सबसे बड़ी चिंता फिलहाल उन  प्रोजेक्ट को सुरक्षित रखने की है जिसे लगाने में उसने न सिर्फ अरबों डालर लगाए हैं बल्कि जिनके साथ उसके रणनीतिक हित भी जुड़े हुए हैं . इनमें सबसे अहम परियोजना ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना है . 218 किलोमीटर लंबी ये सड़क आने वाले दिनों में अफगानिस्तान को सीधे चाबहार बंदरगाह से जोड़ेगी.


अफगानिस्तान में तालिबान का फिर से उभार चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि इसके करीब 20 से ज्यादा आतंकी संगठनों से तार जुड़े हैं . यह सभी आंतकी संगठन रूस से लेकर भारत तक में ऑपरेट होती हैं .
अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को देखते हुए भारत सरकार ने कंधार से अपने दूतावास में तैनात कर्मचारियों को हिंदुस्तान वापस बुला लिया है.हालाकि  विदेश मंत्रालय का कहना है कि इसका ये मतलब नहीं है कि हमने अफगानिस्तान में अपना दूतावास बंद कर दिया है.


तालिबान के आने से ड्रैगन की बांछे क्यों खिल गई
 चालबाज़ चीन अमेरिकी फौज के जाने से खुश है चीन चाहता है  कि पाकिस्‍तान आर्थिक कॉरिडोर को अफगानिस्‍तान तक बढ़ाकर वो अमेरिका की जगह ले ले . चीन को अफगानिस्तान में अपना बड़ा व्यापार नजर आता है ड्रैगन की मंशा अफगानिस्‍तान को भी चाइना-पाकिस्‍तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) का हिस्‍सा बनाने की है. जब तक अफगानिस्तान में भारत अमेरिका साथ खड़े थे चीन अपने मंसूबों में कामयाब नही हो पा रहा था अमेरिकी फौज के जाने से उसकी बांछे खिल गई हैं. दरअसल चीन ने अफगानिस्तान में अपने निवेश को बढ़ाया है चीन वन बेल्ट वन रोड के लिए 1 बिलियन डॉलर खर्च का ऐलान किया है चीन CPEC प्रोजेक्ट के जरिए दायरा अफगानिस्तान तक बढ़ाना चाहता है जिससे पेशावर और काबुल को एक राजमार्ग से जोड़ना शामिल है .


चीन इसलिए भी खुश है कि तालिबान ने कह दिया है कि वो चीन को अपना दोस्त मानता है उसने चीन के निवेश को सुरक्षा देने का वादा भी किया है चीन की एक बड़ी टेंशन भी खत्म हो गई है क्योकि तालिबान ने कह दिया है शिनजियांग प्रात में उइगर इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा. हालाकि पर्दे के पीछे इसे पाकिस्तान का हाथ माना जा रहा है दरअसल चीन के शिंजियांग की सीमा अफगानिस्तान से लगती है उसे चिंता थी कि तालिबान के मजबूती से शिंजियांग में आईएस और बाकी आतंकी संगठन का प्रभाव पड़ सकता है जिससे उईगर मुसलमानों के मसले पर उसे दिक्कत आ सकती है


 तालिबान की मजबूती से रूस की क्या है चिंता
रूस ने तालिबान के साथ अच्छे संबंध बना रखे हैं. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद उसकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस्लामी कट्टरवाद अफ़ग़ानिस्तान से चलकर उसके दरवाजे तक न पहुंच जाए. शायद यही वजह है कि वो तालिबान से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखना चाहता है .रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ते संघर्ष को देखते हुए तालिबान से साफ कहा था कि वो इसे देश के बाहर फैलने ना दे. इस पर तालिबान प्रतिनिधिमंडल ने रूस को भरोसा दिलाया कि तालिबान मध्य एशियाई देशों की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करेगा और अफ़ग़ानिस्तान में विदेशी देशों के राजनयिक और कांसुलर मिशनों की सुरक्षा की गारंटी देगा.


तालिबान के उभार से पाकिस्तान खुश भी है घबराया भी  
अमेरिकी फौज के जाने और अफगानिस्तान में तालिबान  के पांव जमाने से पाकिस्तान खुश है पाकिस्तान और उसके आका चीन दोनो को लगता है कि अब दोनो की जोड़ी बेरोकटोक अपने मंसूबों को परवान चढ़ा पाएंगे . पाकिस्तान शुरू से तालिबान का मददगार रहा है. कुछ रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है. पाकिस्तान के आतंकी तालिबानी लड़ाकों के साथ मिल कर अफगान सेना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं इतना ही नहीं पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियां तालिबान के साथ अफगानिस्तान में सक्रिय भी हैं और पाकिस्तान के अंदर उसे ट्रेनिंग भी दे रही हैं.


तालिबान  की वापसी देख इमरान खान भी जोश खा रहे हैं. फिर से भारत के खिलाफ जहरीले बयान उगलने शुरू कर दिए. अमेरिकी फौज के जाने से खुश इमरान खान ने भारत को सबसे बड़ा लूजर कह दिया इतना ही इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए ये तक कह दिया कि अफगानिस्‍तान में जिस तरह के बदलाव होने जा रहे हैं, उससे खुद अमेरिका को भी बहुत नुकसान होगा. दरअसल  भारत के अफगानिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते शुरू से पाकिस्तान को चुभते रहे हैं उस पर से भारत का वहां भारी पैमाने पर निवेश भी उसे खटकता रहा है जब तक अमेरिकी फौज वहां थी वो खुलकर तालिबान के साथ खड़ा नहीं हो सकता था लेकिन अब उसे लगता है कि अमेरिकी फौज के जाने और तालिबान के मजबूत होने से भारत के खिलाफ साजिशों में उसे और चीन को कोई रोकने वाला नहीं होगा .  


लेकिन इसके साथ ही पाकिस्तान को एक चिंता भी है उसकी वजह है तहरीके तालिबान पाकिस्तान . क्योंकि 2 दशकों में हालात थोड़े बदले भी हैं जब तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में पावर में था तब टीटीपी का वजूद नहीं था. जिस पाकिस्तान ने 90 के दशक में तालिबान को सिर उठाने में मदद की थी वो , अब तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान टीटीपी के अस्तित्व को लेकर​घबराया भी हुआ है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान के उभार के बाद टीटीपी भी खुद के लिए मौके तलाश सकता है और पाकिस्तान में चीन के प्रोजेक्ट्स को टारगेट कर इस्लामाबाद को परेशान कर सकता है सवाल है कि अफ़ग़ान तालिबान पाकिस्तान तालिबान को रोकने की कोशिश करेगा ऐसा लगता नहीं क्योंकि दोनों की विचारधारा एक ही और उनमें समानता भी है तो टीटीपी को लेकर पाकिस्तान की चिंता लाज़िमी है.


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क्योंकि तालिबान ने ये कह कर पाकिस्तान को झटका दिया है कि पाकिस्तान उसकी जंग में उसे मदद दे सकता है लेकिन अपने विचार उस पर नहीं थोप सकता . दरअसल पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान अफगानिस्तान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन से उन  रिपोर्ट्स के बारे में पूछा गया था जिनके मुताबिक तालिबान पाकिस्तान की नहीं सुनना चाहता. इस पर शाहीन ने कहा, ‘हम भाईचारे का रिश्ता चाहते हैं. वे शांति प्रक्रिया में हमारी मदद कर सकते हैं लेकिन हम पर तानाशाही नहीं चला सकते  .


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भारत को TPC की शैतानी तिकड़ी से रहना होगा सावधान
तहरीक ए तालिबान का पाकिस्तान को ये कहना कि वो उस पर अपनी तानाशाही थोप नहीं सकता इस बयान से ये मतलब कतई नहीं निकाला जा सकता कि उसकी और पाकिस्तान की राहें अलग अलग हो गई हैं हमें याद रखना होगा 1999 का कंधार विमान अपहरण कांड उस वक्त पाकिस्‍तान के इशारे पर तालिबान ने भारत सरकार को ब्‍लैकमेल किया था
भारत को  चिंता इस तालिबान-पाकिस्तान -चीन की शैतानी तिकड़ी से है क्योंकि अगर अफगानिस्‍तान में तालिबान का प्रभुत्‍व बढ़ता है तो इसका सीधा असर कश्‍मीर में आतंकी गतिविधियो पर पड़ सकता है अमन के रास्ते पर आए कश्‍मीर में हालात प्रभावित हो सकते हैं . भारत ये साफ कर चुका है कि उसे किसी भी सूरत में इस्लामिक अमीरात मंज़ूर नहीं , वो अफगानिस्तान में शांति का पक्षधर रहा है और वहां जो भी सत्ता में आए लोकतांत्रिक तरीके से आए .


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