नई दिल्ली: दुनिया के 127 देश अपने यहां का ये डाटा WHO से साझा करते हैं कि उनके देश में Anti microbial resistance यानी एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने की स्पीड क्या है. इसी डाटा के आधार पर इस रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया है कि फिलहाल क्या हालात हैं. रिपोर्ट का नाम है Global antimicrobial resistance and use surveillance system (‎GLASS)‎ report: 2022 यानी 'GLASS REPORT' नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं.


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खून तक भी पहुंच रहा है इंफेक्शन
पहली बार रिपोर्ट में पाया गया है कि अस्पतालों में भर्ती गंभीर मरीजों में से 50 %को Klebsiella pneumonia (क्लैबसेला निमोनिया) और Acinetobacter (एसिनेटोबेक्टर) spp नाम के दो बैक्टीरिया अपना शिकार बना रहे हैं. और इंफेक्शन खून तक भी पहुंच रहा है.


रिपोर्ट में ये भी सामने आया कि 8% मरीजों पर (Carbapenem) कार्बापेनम ग्रुप की दवाएं यानी लेटेस्ट एंटीबायोटिक्स भी काम नहीं कर रही हैं और मरीज की मौत हो जाती है. कार्बापेनम एंटीबायोटिक दवाएं Broad Spectrum दवाएं होती हैं. ये वो लेटेस्ट जेनरेशन एंटीबायोटिक दवाएं हैं, जो मोटे तौर पर कई सारे बैक्टीरियल इंफेक्शन्स पर एक साथ काम करती हैं.


कार्बापेनम ग्रुप में imipenem, meropenem, ertapenem, and doripenem जैसी स्ट्रांग और लेटेस्ट एंटीबायोटिक दवाएं शामिल हैं. Neisseria gonorrhea के 60% इंफेक्शन दवाओं से बेअसर हो चुके हैं. ये एक STD यानी sexually transmitted disease है.


काम नहीं कर रही एंटीबायोटिक दवाएं
E.coli बैक्टीरिया के 20%मामलों में बहुत सी एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही. E coli (ई कोलाई) बैक्टीरिया Urinary Tract infections में सबसे ज्यादा पाया जाता है. इस इंफेक्शन के इलाज में 1st और 2nd जेनरेशन की एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही.  


रिपोर्ट में ये आंकलन किया गया कि 2017 से अब तक यानी 2022 तक कितने बदलाव हुए हैं. पहले के मुकाबले इंफेक्शन के खून में पहुंचने तक के मामलों में 15% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.


गरीब और मिडिल इनकम देशों में ज्यादा दर
दो बैक्टीरिया के मामले में दवाओं के बेअसर होने का औसत 42% (E. Coli) और 35% (MRSA) से ज्यादा है, लेकिन रिसर्चरों का मानना है कि गरीब देशों और मिडिल इनकम देशों में ये दर ज्यादा है. दरअसल इस मामले में हर अस्पताल से डाटा शेयर करने के मामले में विकसित देशों का मामला बेहतर है.


उनके पूरे डाटा का आंकलन करने के बाद समझ में आया कि अमीर देशों में इन्हीं बैक्टीरिया के बेअसर होने की दर 11% और 6.8% पाई गई. गरीब देशों के बहुत से अस्पताल डाटा शेयर नहीं करते. इसलिए मौजूद डाटा के आधार पर ये पता चला है कि विकासशील देशों में एंटीबायोटिक्स के बेअसर होने की दर बढ़ रही है.


दुनिया पर मंडरा रहे 10 बड़े खतरों में से एक
एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने को दुनिया पर मंडरा रहे 10 बड़े खतरों में माना गया है. लैंसेट के मुताबिक 2019 में दुनियाभर में 12 लाख 70 हज़ार लोगों की जान एंटीबायोटक दवाओं के काम ना करने की वजह से हो गई.


यानी ये वो दौर है जिसमें मरीज अस्पताल में भर्ती होगा, तो उसे अस्पताल से बैक्टीरिया वाले इंफेक्शन के संक्रमण का खतरा होगा. मरीज को दवाएं तो लिखी जाएंगी लेकिन दवाएं काम नहीं करेंगी और मरीज बेमौत मरने को मजबूर हो जाएगा.


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