नई दिल्ली/वाशिंगटन/इस्लामाबाद. वैश्विक रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान एक अभूतपूर्व कूटनीतिक और आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और अब इस्लामी जगत में उसके मित्रों को भी लगता है कि उसे ‘अपना घर दुरुस्त करना होगा.’साथ ही उसे कट्टरपंथी इस्लामी समूहों को उसकी सरजमीं का इस्तेमाल करने से रोकना होगा.


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विशेषज्ञों में इस बात को लेकर भी आम राय है कि पाकिस्तान को पर्दे के पीछे से चला रही ताकतें अब कमजोर पड़ गयी हैं और उसे नहीं मालूम कि उस‘भस्मासुर’ से कैसे निपटा जाए जो उसने आतंकवादी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के रूप में पैदा किया था. पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है और देश में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुताबिक, 275 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर दर्ज किया गया, महंगाई 27 प्रतिशत से अधिक तक बढ़ गयी और विदेशी मुद्रा का भंडार 1998 के बाद से सबसे निचले स्तर पर है.


आईएमएफ से नहीं बात
पेशावर में 30 जनवरी को एक बर्बर आत्मघाती धमाके समेत कई आतंकवादी हमलों से समस्या और बढ़ गयी है. पाकिस्तान सरकार द्वारा 1.1 अरब डॉलर की निधि हासिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से बातचीत का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है जिससे हालात और बिगड़ गए हैं. अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और हडसन इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो हुसैन हक्कानी ने कहा कि आतंकवाद ने पाकिस्तान में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रोक दिया और चीन पर उसकी अवास्तविक निर्भरता ने उसे कर्ज के बोझ तले दबा दिया है.


राजस्व सृजन के रास्ते तलाशने होंगे
विशेषज्ञों ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की मदद पर आश्रित रहने की स्थिति का भी जिक्र किया और कहा कि देश को राजस्व सृजन के रास्ते तलाशने चाहिए. हक्कानी ने कहा, ‘पड़ोसी देशों-अफगानिस्तान तथा भारत- से खराब संबंधों ने व्यापार के आयाम सीमित कर दिए हैं. पाकिस्तान को समृद्ध बनाने के लिए टकराव की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ने की आवश्यकता है और अभी के लिए यह दूर की कौड़ी लगती है.’


क्या बोले एक्सपर्ट
भारतीय थलसेना के पूर्व मुख्य जनरल (सेवानिवृत्त) जे जे सिंह ने कहा कि ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने ‘खुद को बर्बाद करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.’ सिंह ने कहा, ‘स्थिति अब धीरे-धीरे नियंत्रण से बाहर जा रही है और हमें नहीं मालूम कि पाकिस्तान को अभी वास्तव में कौन चला रहा है. पाकिस्तान को पर्दे के पीछे से चला रही ताकतें भी अब कमजोर पड़ गयी हैं और उन्हें नहीं मालूम कि उस ‘भस्मासुर’ से कैसे निपटा जाए जो उन्होंने टीटीपी के रूप में बनाया था.’


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