नोम पेन्ह. Dynasty Politics : भारत में परिवारवाद, परिवारवादी राजनीति, परिवारवादी नेताओं को लेकर आलोचनात्मक लहजे में काफी चर्चा होती है. पर कंबोडिया परिवारवादी राजनीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. कंबोडिया की संसद ने पीएम हुन सेन के बेटे को देश में शीर्ष पदों पर पीढ़ीगत बदलाव के तहत भावी प्रधानमंत्री के रूप में मंगलवार को मंजूरी दे दी. बता दें कि पीएम हुन सेन खुद लंबे समय से प्रधानमंत्री पद पर आसीन हैं. वहीं नई कैबिनेट में भी नेताओं के बेटे ही भरे पड़े होंगे. 


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सेना प्रमुख रह चुके हैं भावी पीएम
हुन मानेत (45) कंबोडिया के सेना प्रमुख के रूप में सेवा दे चुके हैं. इसके बाद जुलाई में हुए चुनाव में पहली बार संसदीय सीट पर जीत हासिल की. हुन मानेत ने वेस्ट प्वाइंट स्थित ‘यूएस मिलिट्री अकेडमी’ से ग्रेजुएशन, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन और ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है. 


चुनाव से पहले हो गया था ऐलान कौन बनेगा पीएम
हुन सेन 38 वर्ष से देश की कमान संभाल रहे हैं. उन्होंने चुनाव से पहले ही घोषणा की थी कि वे इस बार बड़े बेटे हुन मानेत को कमान सौंप देंगे. 


शपथग्रहण 
मानेत को पीएम पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने को देश की संसद के सांसदों ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी और वह मंगलवार को आधिकारिक रूप से शपथ ग्रहण करेंगे. 


पूरी कैबिनेट में परिवारवाद
नए पीएम मानेत जिस कैबिनेट का नेतृत्व करेंगे, उनमें तीन चौथाई सदस्य नए चेहरे हैं, लेकिन इनमें अधिकतर सदस्य उन राजनेताओं की संतानें या उन नेताओं के रिश्तेदार हैं, जिनके स्थान पर उन्हें कैबिनेट में जगह दी गई है. 


बदलाव की उम्मीद नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम के बेटे मानेत के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है. स्वीडन के लुंड विश्वविद्यालय में कंबोडिया संबंधी मामलों की विशेषज्ञ एस्ट्रिड नोरेन-निल्सन ने कहा, ‘‘राजनीतिक रूप से इन पीढ़ियों में कोई बड़ा अंतर नहीं है. राजनीतिक-सह-व्यावसायिक अभिजात वर्ग की शक्ति को बरकरार रखने के लिए पीढ़ीगत बदलाव किया गया है. 


हुन सेन की पार्टी ने एकतरफा चुनाव में जीत हासिल की थी. कंबोडिया के निर्वाचन आयोग ने 23 जुलाई को हुए आम चुनाव के परिणामों की घोषणा में सत्तारूढ़ पार्टी को भारी बहुमत के साथ विजयी घोषित किया गया. इन चुनावों की पश्चिमी देशों की सरकारों ने कड़ी निंदा की है. उनका कहना है कि ये चुनाव न निष्पक्ष थे और न स्वतंत्र, क्योंकि अहम विश्वसनीय विपक्षी दलों को इसमें भाग नहीं लेने दिया गया.

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