जानिए क्यों दुम दबाकर भागा चीन, क्या फिर करेगा वापसी?
चीन ने भारत के सामने सरेंडर कर दिया और वापस लौटने की सभी शर्तें मान लीं. लेकिन कायर दुश्मन अभी भी साजिश रचने से बाज नहीं आएगा. फिलहाल तो वो इसलिए भाग खड़ा हुआ क्योंकि झगड़ा बढ़ने से उसका 8 अरब डॉलर डूबना तय था.
नई दिल्ली: गलवान घाटी की झड़प में अपने 43 सिपाही गंवाने के बाद चीन का दुम दबाकर भाग खड़ा होना चीन की मजबूरी थी. ड्रैगन ने भारतीय सीमा पर बढ़-चढ़कर जितनी भी फौजें तैनात की थीं, वह मुंह लटकाए उल्टे पांव लौट रही है. चीन की विशाल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सामने यह शर्मनाक स्थिति इसलिए आई. क्योंकि उसके नीति नियंताओं ने झगड़ा बढ़ाने से पहले इसके फायदे-नुकसान का आकलन नहीं किया.
चीन के 8 अरब डॉलर थे दांव पर
गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत चीन का तनाव बढ़ गया था. भारतीयों ने खुलेआम चीनी सामानों का बायकॉट करना शुरु कर दिया था. लेकिन चीन का माथा तब ठनका जब सरकार ने 59 चीनी ऐप बैन कर दिए. इससे चीन को डर लगने लगा कि अगर भारत-चीन युद्ध की स्थिति में जाते हैं तो उसकी कंपनियों के भारत में निवेश की हुई लगभग 8 अरब डॉलर की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी. साल 2014 से लेकर 2018 तक चीनी कंपनियों ने भारत में 8 अरब डॉलर का निवेश किया था.
लेकिन जब सरकार ने चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाया तो इन कंपनियों के रोंगटे खड़े हो गए कि कहीं शत्रु संपत्ति घोषित करते हुए भारत में चीनी संपत्तियां जब्त ना कर ली जाएं. चीन ने साल 2018 में इस तरह की आशंका जताई थी.
भारत का शत्रु संपत्ति अधिनियम देता है इसकी इजाजत
भारत सरकार का शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 इस बात की इजाजत देता है कि किसी तरह के विवाद की स्थिति में भारत सरकार अपने देश में स्थित किसी भी शत्रु देश की संपत्ति को जब्त करके उसे बेच दे.
साल 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान इस कानून के तहत शत्रु देश और उसके नागरिकों की संपत्ति जब्त की गई थी. शत्रु संपत्ति कानून में साल 2018 में बदलाव किया गया था. जिसके बाद भारत से पाकिस्तान गए लोगों की 9400 शत्रु सम्पत्तियों को जब्त किया गया था.
सीमा पर तनाव से डर गई थीं चीनी कंपनियां
साल 2019 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने नीतिगत दस्तावेज में ऐलान किया था कि चीन की कंपनियां राष्ट्रपति शी जिनपिंग के राजनैतिक दर्शन के प्रसार की अग्रदूत होंगी. इसी बीच ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट के एक शोध में बताया गया था कि चीन की 70 फीसदी निजी कंपनियों की अहम भागीदारी चीन की राजनीति में हो चुकी थी.
यानी कि ये कहा जा सकता है कि चीन की नीतियां वहां की निजी कंपनियां चला रही थीं. जिनका कारोबार भारत में इतना ज्यादा फैला हुआ है कि वह सीमा पर किसी तरह का तनाव मोल नहीं लेना चाहती थीं.
बेहद विशाल है भारत में चीनी कंपनियों का साम्राज्य
- दुनिया की छठी सबसे बड़ी भारी उपकरण निर्माता कंपनी चंगाशा की सैन्यी ने पुणे के चाकण में अपना दूसरा सबसे बड़ा संयंत्र लगाया है. इसका भारत के 50 फीसदी बाजार पर कब्जा है.
- गुआंग्शी की विराट कंपनी लिउगांग ने मध्य प्रदेश के पीतमपुर में 300 करोड़ रुपए का उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है.
- हरियाणा में चाइना रोलिंग स्टॉक कॉरपोरेशन का संयंत्र भारतीय रेल के इंजनों की मरम्मत और नागपुर मेट्रो को आपूर्ति करता है. - चाइना रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन 3,000 किमी एक्सप्रेसवे पर काम कर रही है.
- चीनी सेना की पूर्व कंपनी शिनशिंग समूह ने कर्नाटक में 8,735 करोड़ रु. का स्टील संयंत्र स्थापित किया.
- चीन की शंघाई इलेक्ट्रिक और डांगफैंग के उपकरण भारत की तीन चौथाई बिजली कंपनियों को बेचे जाते हैं.
- चीन की सैन्यी, लांगी सोलर और सीईटीसी भारत में सौर व पवन ऊर्जा में 2 अरब डॉलर का निवेश कर रही हैं.
- जियोमी, हुआवे, ओप्पो इलेक्ट्रॉनिक्स के मोबाइल हर दूसरे भारतीय के हाथ में हैं.
- चीन की कंपनी बीवाइडी भारत में इलेक्ट्रोनिक वाहन बनाने का संयंत्र लगा रही है.
- वांडा और चाइना फॉर्च्यून लैंड जैसी रियल एस्टेट कंपनियां हरियाणा से लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र तक सक्रिय हैं.
- झेजियांग, गुआंगदोंग और जिआंग्सू जैसे चीनी राज्यों की सरकारें भारत में सीधा निवेश कर रही हैं.
चीन का भारत में प्रत्यक्ष तौर पर 8 अरब डॉलर का भारी भरकम निवेश है. सीमा के मामूली तनाव से भारत में चीन का यह आर्थिक साम्राज्य ध्वस्त हो जाता. इसलिए ड्रैगन ने पीछे हटने का रास्ता चुना. लेकिन चीन जैसे दुश्मन से बेहद सतर्क रहने की जरुरत है. क्योंकि वह पीठ पीछे से वार करने में माहिर है.