नई दिल्ली: आपने काबुली वाले की कहानी जरूर सुनी होगी या कईयों का बचपन में किसी काबुली वाले से साक्षात्कार भी हुआ होगा. पठानी सूट, आंखों में सुरमा और झोली में अखरोट, काजू, किशमिश, बादाम, जो बच्चों की मुठ्ठी ड्राई फ्रूट से भर देता था लेकिन आज तालिबान के काबुली वाले के पास देने को कुछ है तो बस दहशत और खून खराबा. 


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आइए थोड़ा पीछे चलते हैं और भारत और काबुल के बीच की कुछ यादों को ताजा करते हैं कल और आज के काबुल के फर्क को समझते हैं. 


तालिबान ने छीना मासूम मिनी का 'काबुलीवाला'  
गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की आजादी से काफी पहले 1892 में लिखी कहानी काबुली वाला हर किसी ने पढ़ी होगी, कहानी के किरदार रहमत और मिनी भी सबको याद होंगे. कैसे काबुल अपने मुल्क से दूर एक पठान कोलकाता की गलियों में ड्राई फ्रूट बेचकर गुजारा करता है कैसे मासूम मिनी से उसका खास लगाव हो जाता है. जिसमें उस रहमत को अपनी बच्ची दिखती है लेकिन ये दौर और था जहां काबुल और अफगानिस्तान का चेहरा रहमत जैसा पाक साफ था.


जिसके दिल में प्यार और अपनापन था लेकिन आज काबुल सुनते ही एकमात्र चेहरा सामने आता है वो है दहशत और क्रूरता से भरा तालिबान का, जिसका रहम दिल रहमत से दूर-दूर तक वास्ता नहीं. जिस काबुली वाले रहमत को मिनी में अपनी बच्ची नजर आती थी आज उस तालिबान के काबुल में बच्चियों का सौदा किया जा रहा है. उन्हें सेक्स गुलाम बनाया जा रहा है. काबुल के रहमदिल रहमत की जगह जालिम मुल्ला बरादर ने ले ली है.


महंगा हो गया अफगान का अखरोट, पिस्ता और बादाम
तलिबान का कब्जा अफगानिस्तान में हुआ है लेकिन उसका साइड इफेक्ट हिंदुस्तान पर भी दिखने लगा है. अफगानिस्तान से ड्राई फ्रूट का कारोबार दशकों से चला आ रहा है लेकिन आज जिस तरह के हालात अफगानिस्तान में बने हुए हैं उसे देखते हुए ड्राई फ्रूट्स का कारोबार करने वाले कई कारोबारियों ने दाम बढ़ाने शुरू भी कर दिए हैं. एशिया की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट्स और मसालों के बाजार दिल्ली के खारी बावली में अफगान से आने वाले तमाम ड्राई फ्रूट्स के दाम आसमान छू रहे हैं.


बाजार में अभी से 15 से 20 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है. आने वाले दिनों में अगर काबुल के यही हालात रही तो ड्राई फ्रूट्स के दामों में 50% तक की बढ़ोतरी हो सकती है यानी आने वाले दिनों में लोगों के लिए ड्राई फ्रूट्स खरीदना पहुंच से दूर हो सकता है . ऐसे ही दाम बढ़ते रहे तो लोग त्योहारों के मौसम में भी ड्राई फ्रूट खरीदने से बचेंगे और अगर माल नहीं बिका तो बड़े स्तर पर व्यापारियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.



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खाली हो गई काबुल की झोली  
तालिबान ने अफगानिस्तान पर हथियारों के दम पर कब्जा तो कर लिया लेकिन देश चलाने के लिए आज उसकी झोली खाली है. इस बात की तस्दीक खुद अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक के गवर्नर अजमल अहमदी ने की है जिनके मुताबिक देश की करीब 9 अरब डॉलर की राशि में से 7 अरब डॉलर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बॉन्ड संपत्तियों और सोने के रूप में जमा है. फिलहाल अफगानिस्तान के पास अमेरिकी मुद्रा का भंडार ‘शून्य’ है.


तालिबान के कब्जे के बीच देश को नकदी का भंडार नहीं मिल पाया है. अहमदी का कहना है कि अमेरिकी डॉलर की कमी से अफगानिस्तान की मुद्रा का मूल्य गिरेगा और महंगाई बढ़ेगी.  जिसका सीधा असर गरीब जनता पर पड़ेगा. अमेरिका की सरकार ने तालिबान पर प्रतिबंध लगा रखा है. जिस वजह से विदेशों में जमा भंडार को लाना मुश्किल होगा. काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही अफगानिस्तान में अफरातफरी का माहौल है. इससे देश की करेंसी में रिकॉर्ड गिरावट आई है.


हिंदी फिल्मों के दीवाने रहे हैं अफगानी
अफगानिस्तान और हिंदुस्तान का रिश्ता पुराना है हिंदुस्तान को वहां के अखरोट और बादाम पसंद हैं तो अफगानिस्तान हिंदी फिल्मों का दीवाना है. अफगानिस्तान के खूबसूरत लोकेशन्स भारतीय फिल्मकारों को हमेशा आकर्षित करते रहे हैं. धर्मात्मा, खुदा गवाह, काबुल एक्सप्रेस जैसी कई फिल्मों की शूटिंग अफगानिस्तान में हुई है. वहीं अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, श्रीदेवी के बाद शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान जैसे सितारे अफगानिस्तान की जनता के बीच काफी मशहूर हैं. 


कहते हैं अफगानिस्तान में ज्यादातर लोगों ने बॉलीवुड फिल्में देखकर ही हिंदी सीखी है. फिल्म 'खुदा गवाह' की शूटिंग के दौरान अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्ला अहमदजई ने अमिताभ की खातिरदारी अपने निजी मेहमान की तरह की थी. जब श्रीदेवी फिल्म की शूटिंग कर रही थीं तो उस दौरान वो अफगानिस्तान में शांति का प्रतीक बन गई थीं. कहा जाता है कि उस दौर में यहां के आतंकी भी श्रीदेवी के इस कदर दीवाने थे कि उनका नाम सुनते ही वो गोलीबारी करना बंद कर देते थे.


अफगानिस्तान के पास दुनिया का दुर्लभ खजाना 
दशकों से युद्ध , हिंसा झेलता रहा अफगानिस्तान अपनी गरीबी और इस हालात से निकलने के लिए बेचैन रहा है लेकिन आपको जान कर हैरानी होगी कि अफगानिस्तान दक्षिण एशिया का सबसे अमीर देश है. इसके पास इतना खजाना है कि वो कई देशों को संपन्‍नता में पीछे छोड़ सकता है. अफगानिस्‍तान में 3 ट्रिलियन डॉलर की कीमत का खजाना खनिज संसाधन के रूप में मौजूद है. 2010 में अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे में इसकी पुष्टी हुई थी. 


साल 2020 में अफगानिस्‍तान की एकेडमी ऑफ साइंसेज के मेंबर और अमेरिका में अफगानिस्‍तान के पूर्व राजनयिक कतवाजाई ने भी अफगानिस्तान में मौजूद खनिज की कुल कीमत 3 ट्रिलियन डॉलर से भी ज्‍यादा बताई है. अफगानिस्तान में लोहे, तांबे, कोबाल्ट, सोने और लीथियम के बड़े भंडार मौजूद हैं. 


अमेरिका के रक्षा विभाग के हेडक्‍वार्टर पेंटागन की तरफ से कहा गया था कि अगर अफगानिस्‍तान के खनिज भंडारों का प्रयोग किया जाए तो यह सऊदी अरब की बराबरी कर सकता है. दुनिया में सबसे ज्‍यादा दुर्लभ खनिज अफगानिस्तान में ही है. अमेरिका के मुताबिक गजनी प्रांत के बोलीविया में दुनिया का सबसे बड़ा लिथियम भंडार है. इन्हीं खजानों की वजह से दुनिया की महाशक्तियां इस क्षेत्र में प्रभाव जमाना चाहती रही हैं.


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काबुल क्यों नहीं लौटना चाहते अफगानी छात्र?
अफगानिस्तान के कई सारे छात्र पढ़ाई के लिए हिंदुस्तान आते रहे हैं लेकिन आज की तारीख में अफगानिस्तान के जो हालात हैं. ये छात्र इतने डरे हैं कि वो अपने काबुल नहीं लौटना चाहते. जेएनयू में पढ़ने वाले कई छात्र जिनका वीजा कुछ महीनों मे खत्म होने वाला है वो वीजा की अवधि बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं.


ज्यादातर छात्रों के लिए वीजा की समय-सीमा इस साल दिसंबर के महीने तक खत्म हो रही है. जेएनयू के ऐसे छात्रों का कहना है कि अगर वो वापस जाएंगे तो तालिबानी उन्हें पकड़ लेंगे. छात्र कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में अधिकांश लोग बड़े पैमाने पर बेरोजगार हैं और अब मौत या कैद से बचने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी सूरत में वहां वापस लौटना मौत को दावत देना है उन्हें अफगानिस्तान में रह रहे अपने परिवार की चिंता भी सता रही है.
 
हिंदुस्तान ने अफगानिस्तान के बुरे वक्त में वहां के आवाम की हमेशा मदद की है और आगे भी करेगा. इसे वक्त का क्रूर सितम ही कहा जाएगा कि 'काबुलीवाले' की छवि आज के तालिबान राज में दुनिया के लिए बदल चुकी है.


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