संयुक्त राष्ट्र: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के उस मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ सोमवार को मतदान किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन को वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से जोड़ने की बात की गई है.
भारत ने तर्क दिया कि यह कदम ग्लासगो में कड़ी मेहनत से किए गए सर्वसम्मत समझौतों को कमजोर करने का प्रयास है.


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'जिम्मेदारी से बचने की कोशिश हो रही'
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति ने कहा, 'जब जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम उठाने और जलवायु न्याय की बात आती है, तो भारत सबसे आगे रहता है, लेकिन सुरक्षा परिषद में इनमें से किसी भी मामले पर चर्चा करने का स्थान नहीं है. बल्कि, ऐसा करने की कोशिश उचित मंच पर जिम्मेदारी से बचने और कदम उठाने की अनिच्छा से दुनिया का ध्यान भटकाने की इच्छा से प्रेरित प्रतीत होती है.'


कलह के बीज बोएगा ये प्रस्ताव
उन्होंने भारत के फैसले का कारण बताते हुए कहा, 'आज का यूएनएससी प्रस्ताव ग्लासगो में बनी आम सहमति को कमजोर करने का प्रयास है. यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र की वृहद सदस्यता के बीच केवल कलह के बीज बोएगा.'


तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत के पास प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था.


'भारत की प्रतिबद्धता पर नहीं होना चाहिए कोई संशय'
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की भारत की प्रतिबद्धता को लेकर कोई संशय नहीं होना चाहिए और वह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वास्तविक कार्रवाई तथा गंभीर जलवायु न्याय का हमेशा समर्थन करेगा.


रूस ने जलवायु परिवर्तन को अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरा बताने वाले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अपनी तरह के इस पहले प्रस्ताव के खिलाफ वीटो का इस्तेमाल किया.


आयरलैंड-नाइजर के नेतृत्व में आया था पेश
आयरलैंड और नाइजर के नेतृत्व में पेश किए गए प्रस्ताव ने जलवायु परिवर्तन के सुरक्षा प्रभावों संबंधी जानकारी शामिल करने का आह्वान किया था, ताकि परिषद संघर्ष या जोखिम बढ़ाने वाले कारकों के मूल कारणों पर पर्याप्त ध्यान दे सके.


इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र महासचिव से जलवायु संबंधी सुरक्षा जोखिमों को संघर्ष निवारण रणनीतियों का एक केंद्रीय घटक बनाने के लिए भी कहा गया है.


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