नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण के रोकथाम को लेकर कोई आधिकारिक या यूं कहें कि टेस्टेड वैक्सिन और दवाई नहीं बनी. अब तक तो नहीं. लेकिन इस संक्रमण के दौर में मेडिकल फील्ड में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन की अहमियत काफी बढ़ गई है. लेकिन जरूरी बात यह है कि इस बीच भारत जो तकरीबन 70 फीसदी से भी अधिक हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन दवाई का उत्पादन करता है, वह विश्व का सबसे बड़ा सॉफ्ट पॉवर देश बनने वाला है.


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दरअसल, कोरोना संक्रमण को लेकर अचानक से कई रिपोर्टें आईं जिसमें यह मालूम हुआ कि HCQ (Hydroxy Chloro quine)और जी पैक जैसी दवाएं कोरोना वायरस से जूझने में एक लड़ाकू का काम कर सकती हैं. वह ऐेसे कि यह किसी भी व्यक्ति के इम्यून सिस्टम को सपोर्ट करता है या यूं कहें कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है.


भारत में HCQ उत्पादन 70 फीसदी से भी अधिक


हालांकि, यह सिर्फ कुछ रिपोर्टों में ही तय हुआ है कि नोवल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए यह दवाई कारगर साबित हो सकता है. दिलचस्प बात यह है कि भारत विश्व में अकेले तीन चौथाई का उत्पादन करता है. इसलिए क्योंकि भारत में इसे मलेरिया को ठीक करने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन अब यह कोरोना के लिए कई देशों में एक प्रिवेंटिव मीजर के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है. और यहीं भारत की उपयोगिता बढ़ जाती है. 


हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन डिप्लोमैसी के बाद भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक संकटमोचक की हो गई है. लगातार कई देशों ने भारत सरकार के इस कदम के प्रति आभार व्यक्त किया है. ब्राजील, इजरायल, अमेरिका और भारत के पड़ोसी देशों ने तो पीएम मोदी की जमकर तारीफ की है.


वैश्विक नेता बनते जा रहे हैं मोदी


यही नहीं ब्राजीली राष्ट्रपति जैर बोलसेनारो ने तो प्रधानमंत्री मोदी की तुलना हिंदु धर्म के सबसे बड़े महाकाव्य रामायण के हनुमान से तक कर दी. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी संजीवनी (HCQ)ला कर इस ग्लोबल क्राइसिस से निपटने में हमारी मदद कर रहे हैं. 


इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि आप न सिर्फ हमारी मदद नहीं कर रहे, आप पूरे मानव सभ्यता की मदद कर रहे हैं. इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्यहू ने भी ट्वीट कर पीएम मोदी को दोस्त बताते हुए उनका और भारत का शुक्रिया अदा किया.


भारत की मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी सबसे अधिक


भारत के पास HCQ का मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी सबसे अधिक है. अब कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात सामने आई कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत एक गेम चेंजर की भूमिका निभाते हुए नजर आ सकता है और उसके पीछे यहीं दवाई है. कूटनीति के हिसाब से यह बहूत जरूरी है.


दो आधारों पर भारत कर रहा है HCQ का एक्सपोर्ट


भारत विश्व को यह दवाई मुहैया करा रहा है. इसके लिए भारत सरकार ने दो आधार बनाए हैं. पहला भारत ह्यूमैनिटेरियन आधार पर वैसे देशों को यह दवाई दे रहा है जो हमारे पड़ोसी हैं या हमसे आर्थिक रूप से कमजोर हैं. वैसे देशों को मानवता के आधार पर यह दवाई दे रहे हैं. मसलन सार्क के सभी देशों को और उसके अलावा मालदीव, नेपाल, भूटान और कई अफ्रीकी देशों को फ्री में दे रहे हैं.


वहीं दूसरा आधार है कॉमर्शियल जिसमें वैसे देश जो आर्थिक रूप से सशक्त हैं, उन्हें एक रीजनेबल दामों में हम यह दवाई उपलब्ध करा रहे हैं. तकरीबन 13 ऐसे देश हैं जहां भारत ने HCQ का पहला कंसाइमेंट भेज भी दिया है और बदले में एक मोटी रकम भी मिली है जिसे भारत सरकार कोविड-19 से लड़ने में इस्तेमाल कर रही है.


पहली कंसाइमेंट में 13 देशों को किया गया एक्सपोर्ट


पहली सूची में जिन 13 देशों को यह दवाई भेजी गई है, उसमें अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, बहरीन, नेपाल, ब्राजील, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश, सिसलीज, मौरीशस और चेक गणराज्य है. इसके अलावा कई और ऐसे देश हैं जहां इसका एक्सपोर्ट किया जा रहा है.


हालांकि इसके बाद से ही भारत में विपक्ष और कई लोगों ने यह सवाल उठाया कि क्या इतनी बड़ी मात्रा में सप्लाई के बाद 


हमारे पास इसकी कमी नहीं होगी? तो इसका जवाब खुद IDMA के निदेशक अशोक कुमार मदन ने दे दिया. उन्होंने कहा कि भारत को हर साल तकरीबन 24 मिलियन यानी 2 करोड़ 40 लाख टैबलेट्स की जरूरत पड़ती है मलेरिया और ल्यूपस जैसी बीमारियों के इलाज के लिए और हमारी हर महीने की उत्पादने कैपेसिटी 40 लाख प्रति महीने की है. 


सप्लाई के लिए तेज कर दिया है उत्पादन


हाल के दिनों में कोविड-19 और इसकी बढ़ती मांगों के बीच हमने इसका उत्पादन और तेज कर दिया है. अब हम 20 करोड़ टैबलेट्स हर महीने बना सकते हैं. 


इसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह भारत के लिए एक जीत से कम नहीं. जहां एक ओर हमारी फार्मा इंडस्ट्री को बड़ा फायदा हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर हमारे कूटनीतिक प्रयोग सफल होते नजर आ रहे हैं.