China का जिनपिंग वास्तव में जोकर है
चीन में जिनपिंग ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता को 18 वर्षों के कारावास का दंड दिया है जिसका कसूर बस इतना है कि उसने जिनपिंग को जोकर कह कर पुकारा था..
नई दिल्ली. गौर करने वाली बात ये है कि जिनपिंग को आखिर क्यों बुरा लगता है जब कोई उसे जोकर कहता है? वजह यही है कि उसे अपनी मूल पहचान सख्त नापसंद है क्योंकि उसे खुद पता है कि वह एक जोकर ही है और जोकर से किञ्चिदपि अधिक नहीं है. ये एक सत्य तथ्य है कि जिनपिंग की जो हरकतें हैं वो उसे जोकर बनाती हैं इसलिए ही दुनिया भी उसे जोकर कह कर बुलाती है.
अमेरिका से दुश्मनी मोल ले ली
जिनपिंग को अच्छी तरह से पता था कि अमेरिका चीन के लिए कितना बड़ा बाज़ार है और चीन के वैश्विक व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका पर आश्रित है. इसके बाद भी उसने अमेरिका में चीन का व्यापार बढ़ाया और चीन में अमेरिका के व्यापार को हतोत्साहित किया, इस हरकत ने अमेरिका को हैरान भी किया और परेशान भी. चीन ने अमेरिकी कंपनियों को अपना उत्पाद चीन में चीन की कंपनियों के साथ मिलकर एक साझा उत्पाद के तौर पर बेचने को मजबूर किया जिससे अमेरिका को हर साल 250 से 500 अरब डॉलर तक का नुकसान पहुंचाया है.
अमेरिका के साथ लगातार ठगी की
ऐसा नहीं है कि चीन ने सिर्फ भारत को ठगा है, चीन ने अमेरिका को भी भरपूर ठगा है. जहां एक तरफ अमेरिका चीन के साथ व्यापार में उसकी नुकसानदेह शर्तों को भी मान रहा था, चीन अमेरिका को बेवकूफ बनाने में लगा था. चीन अमेरिका में अपने उत्पाद बेचते समय अमेरिका से सब्सिडी ले रहा था और इसका फायदा उठा कर वह अपना उत्पाद अमेरिका में सस्ते में बेचता रहा जिससे हालत ये पैदा हो गई है कि भारत की तरह अमेरिका की अपने ही देश में अपनी कंपनियों की सेल कम हो गई और चीन का सस्ता सामान जम कर खरीदा जाने लगा. अमेरिकी कंपनियों को अरबों का घाटा झेलना पड़ा है और अमेरिकी लोगों की नौकरियां भी कम होती चली गईं. यह चीन का व्यापारिक विस्तारवाद है जिसको आजमाकर भारत और अमेरिका जैसे फायदे के बाजार वाले देशों से पंगा लेने का काम एक जोकर ही कर सकता है.
भारत को भी जमकर ठगा
चीन ने व्यापारिक विस्तारवाद को भी बेईमानी से बढ़ाते हुए कई देशों की आर्थिक विवशताओं का फायदा उठाया है चाहे वह महाशक्ति अमेरिका हो या महाबाज़ार भारत. भारत के बाज़ार में भी चीन ने अपनी कंपनियों की अमेरिका की तरह ही घुसपैठ कराई और सब्सिडी का फायदा लेकर सस्ते में अपना सामान बेचा. फल ये हुआ कि भारतीय कंपनियां हतोत्साहित हुई और उनमें भारतीयों की नौकरियां भी कम होती चली गईं. ऐसे भारतीय बाज़ार को भी भौगोलिक विस्तारवाद के प्रयास से चीन ने नाराज़ किया और आज भारत के दरवाजे चीन और चीनी उत्पादों के लिए लगभग बंद होते जा रहे हैं. ऐसी बेवकूफी का काम कोई समझदार आदमी कैसे कर सकता है सिवाए चीनी जोकर जिनपिंग के.
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