60 लाख यहूदियों के हत्यारे हिटलर की नन्ही यहूदी दोस्त!
कुछ साल पहले 1933 एक ऐसी तस्वीर सबके सामने आई. जिसे देखकर सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई. लेकिन जैसे ही उस तस्वीर की सच्चाई सबको पता चली सबके होश उड़ गये.
नई दिल्ली: कहते हैं तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं और जर्मनी में यहूदियों के कत्ल की तस्वीरों ने ही हिटलर को दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह बनाया था. लेकिन 2018 में जर्मनी से हिटलर के समय की एक और तस्वीर सामने आई है. ये तस्वीर हिटलर के अलग ही रूप को दुनिया के सामने ला रही है.
इस तस्वीर में हिटलर एक नन्ही मासूम यहूदी बच्ची रोज़ा को गले लगाए और उसके साथ खेलता नज़र आ रहा है. और तस्वीरें झूठ नहीं बोलती इसलिए हमने भी इस तस्वीर का सच खोजा और वो लेकर आपके सामने हाजिर हुए. पूरी खबर पढ़ने के बाद आपकी राय कुछ भी हो लेकिन दुनिया को हिटलर के बारे में सोचने के लिए एक और नज़रिया जरूर मिल गया.
खूनी हिटलर का नाजुक प्यार
कुछ साल पहले 1933 एक ऐसी तस्वीर सबके सामने आई. जिसको देखकर सबका मन खुश हो गया. जिसे देखकर सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई. लेकिन जैसे ही उस तस्वीर की सच्चाई सबको पता चली सबके होश उड़ गये.लोगों के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था कि 60 लाख यहूदियों की मौत का जिम्मेदार एडोल्फ हिटलर की दोस्त एक यहूदी बच्ची कैसे हो सकती थी.
हिटलर के करीब थी वो यहूदी बच्ची
जर्मन तानाशाह हिटलर का नाम ज़ेहन में आते ही, यहूदियों के नरसंहार की याद आती है. दूसरे विश्वयुद्ध की याद आती है. किस तरह एक इंसान की सनक की वजह से पांच करोड़ से ज़्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
सबसे क्रूर तानाशाह के नाम से मशहूर एडोल्फ हिटलर की छोटी सी यहूदी लड़की के साथ साल 1933 में एक तस्वीर ली गई थी जो कुछ साल पहले सामने आई. लेकिन 1933 में ली गई इस तस्वीर के पीछे की कहानी थोड़ी पेचीदा है. तस्वीर में दिख रहे लोग हैं, जर्मन नेता और 60 लाख यहूदियों के कातिल एडॉल्फ हिटलर और यहूदी मूल की एक लड़की रोज़ा बर्नाइल निनाओ. बताया जाता है इस यहूदी बच्ची के साथ हिटलर की बहुत अच्छी दोस्ती थी.
बेहद महंगी बिकी तस्वीर
साल 1933 में इस तस्वीर को फोटोग्राफर हैनरिक हॉफमैन के कैमरे ने कैद किया. इस बात की जानकारी अमेरिका के मैरीलैंड में स्थित 'अलेक्जेंडर हिस्टोरिकल ऑक्शन' ने दी. साल 2018 में अमरीका में ये तस्वीर 11,520 डॉलर यानी क़रीब 8.2 लाख रुपये में नीलामी हुई. इस तस्वीर पर हिटलर के हस्ताक्षर साफ देखे जा सकते हैं.
नीलामी करने वाले बिल पैनागोपुलस ने ब्रिटिश समाचार पत्र डेली मेल से कहा, इस तस्वीर में बच्ची और हिटलर के बीच का रिश्ता वास्तविक लग रहा है. बिल कहते हैं, ''हिटलर अक्सर बच्चों के साथ प्रचार के मक़सद से ही फोटो खिंचवाते थे.''
खास दिन हुई थी इनकी मुलाकात
20 अप्रैल,हिटलर का जन्मदिन. हिटलर के घर 'बर्गोफ' के बाहर काफी भीड़ खड़ी थी.उसी भीड़ में शामिल थी एक छोटी सी बच्ची रोज़ा और उसकी मां करोलिन. संयोग ये था उसी दिन रोज़ा का भी जन्मदिन था.
ऐसा माना जाता है कि जब हिटलर को पता चला कि उस दिन रोज़ा का भी जन्मदिन है तो हिटलर ने रोज़ा और उनकी मां कैरोलिन को अपने घर आमंत्रित किया, जहां ये तस्वीरें दर्ज की गईं.पहली मुलाकात में ही हिटलर और रोज़ा एक दूसरे के बहुत करीब हो गये.
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हिटलर का प्यार थी रोजा
हिटलर और रोज़ा की दोस्ती गहरी होती गई, लेकिन कुछ समय बाद पता चला की रोज़ा की मां कैरोलिन यहूदी है. इस बारे में पता चलने के बाद हिटलर की दोस्ती रोजा के साथ बनी रही. उनकी दोस्ती में किसी भी तरह का फर्क नहीं पड़ा. बल्कि हिटलर ने ही अपनी और रोजा की तस्वीर अपने साइन के साथ रोजा को भेजी थी. जिसमें उन्होंने लिखा था: " डियर रोजा निनाओ, एडोल्फ हिटलर, म्यूनिख, 16 जून, 1933. "
हिटलर को दिया गया आदेश
ऐसा कहा जाता है की 1935 और 1938 के बीच रोज़ा ने हिटलर और उनके क़रीबी विलहेम ब्रक्नर को कम से कम 17 बार ख़त लिखे. लेकिन फिर हिटलर के निजी सचिव मार्टिन बॉर्मन ने रोज़ा और उनकी मां से कहा कि वे हिटलर से कोई संपर्क न रखें. फोटोग्राफर हॉफ़मैन का कहना है कि इस आदेश से हिटलर ख़ुश नहीं थे. अपनी किताब 'हिटलर माय फ़्रेंड' में फोटोग्राफर हॉफमैन ने लिखा है कि हिटलर ने उनसे कहा था, "ऐसे भी लोग हैं जिनके अंदर मेरी हर खुशी को तबाह करने का हुनर है"
फोटोग्राफर हॉफ़मैन की 1955 में छपी उस किताब में दोनों की एक और तस्वीर शामिल की है, जिसका कैप्शन है: 'Hitler's Sweetheart'. किताब में हॉफ़मैन ने लिखा की हिटलर रोज़ा को बर्गोफ (हिटलर का आवास) में देखना पसंद करता था लेकिन फिर किसी को पता लग गया कि वो आर्य वंश से नहीं है.
जिसके बाद हिटलर के कुछ निजी सचिव की ओर से दोनों का मिलना बंद करवाया गया. जिस साल दोनों का मिलना बंद हुआ उसी के अगले साल द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया. युद्ध खत्म होने में 6 साल लग गये और इस युद्ध के साथ यहूदियों का नरसंहार यानी होलोकास्ट चलता रहा जिसमें 60 लाख यहूदी मारे जा चुके थे. रोज़ा भी युद्ध की विभीषिका झेल ना सकी और उसकी मौत हो गई. हिटलर से पहली मुलाक़ात के एक दशक बाद, 1943 में म्यूनिख के एक अस्पताल में 17 साल की उम्र में पोलियो ने रोज़ा की जान ले ली.
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