नई दिल्ली.   आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान की वाट लगी पड़ी है. ऐसे में जो सीपीईसी का सिरदर्द पाल लिया है पाकिस्तान ने उसके लिए उसके पास कोई दवाई नहीं है क्योंकि इस राह में चलने पर लगेंगे अरबों रुपये और  वित्तीय संकट से घिरा पाकिस्तान खुद को बेच कर भी इतने पैसे नहीं ला सकता. ऐसे में एक ही सदाबहार समाधान है उसके पास. झाड़ पांच के निकालो कटोरा भीख का और फैला दो चीन के आगे.


मांगे पौने तीन अरब डॉलर का कर्जा 


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वित्तीय संकट में बदहाल पाकिस्तान के पास विकल्पहीनता की स्थिति है. पैसा लगाना है और पैसा लगाने के लिए पैसा लाना है. पैसा कहाँ से आएगा - इसका जवाब बस एक ही है पाकिस्तानी सरकार के पास और वो ये है कि चीन से मांग लो. बाप बनाया है तो बाप का फर्ज होता है कि कर्ज दे.  पाकिस्तान ने चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के मेनलाइन-1 प्रोजेक्ट के पैकेज-1 के निर्माण के लिए चीन से 2.7 अरब डॉलर का कर्ज मांगने का निर्णय ले लिया है.


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पाकिस्तान दिवालिया हो सकता है कभी भी 


पाकिस्तान इतने गंभीर अर्थ-संकट से जूझ रहा है कि यह देश किसी भी दिन दीवालिया हो सकता है. ऊपर से ऊपरवाले ने कोरोना की महामारी भेज दी जिसने पाकिस्तान की बदहाली की बाकी बची-खुची कसर भी पूरी कर दी है. पाकिस्तान को चीन से ये महा-कर्ज ऐसे वक्त पर मांगना पड़ रहा है जब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर है और महामारी ने हालात और भी गंभीर बना दिए हैं. 


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मेनलाइन-1 परियोजना विलाप कर रही है 


ये जानकारी पाकिस्तानी मीडिया से ही बाहर निकल कर आई है. पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने सरकारी अधिकारियों का उल्लेख करते हुए कहा है कि मेनलाइन-1 परियोजना का वित्तपोषण देश के लिए भारी सिरदर्द बन गया है. इस वित्तपोषण समिति की छठी बैठक में सरकार को यह फैसला करना पड़ा है कि चीन से शुरुआती तौर पर पाकिस्तान 6.1 अरब डॉलर की चीनी फंडिंग में से सिर्फ 2.73 अरब डॉलर के कर्ज को स्वीकृति देने का अनुरोध करेगा. कर्जा मिलने की उम्मीद तो है क्योंकि चीन का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चीन रोकना नहीं चाहेगा, किन्तु यदि चीन कर्जा देने से इंकार करता है तो पाकिस्तान ने जो पैसा अब तक इसमें लगा दिया है, वो भी पूरा डूब जाएगा.


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