नई दिल्ली: Rwandan Genocide: रवांडा नरसंहार के करीब 30 साल पूरे हो गए हैं. अफ्रीकी देश रवांडा में 1994 में 100 दिन में करीब 8 लाख लोगों को मार दिया गया था. 30 साल बाद UN के कोर्ट ने भी रवांडा नरसंहार की जांच को खत्म कर दिया है. इतने बड़े नरसंहार की जांच बेहद साधारण ढ़ंग से खत्म हो गई. न किसी की गिरफ्तारी हुई और न ही किसी को तलाश करने का कोई आदेश जारी हुआ. 


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मर गए आखिरी दो दोषी
दरअसल, रवांडा नरसंहार मामले में आखिरी दो भगोड़े बचे थे, जिनकी कुछ साल पहले मौत हो गई. ये अब मध्य अफ्रीका की किसी कब्र में दफन हैं. इनका नाम रयानडिकायो और चार्ल्स सिकुबवाबो था. दोनों की मौत के बाद अब कोई और फरार दोषी नहीं बचा, लिहाजा UN के कोर्ट IRMCT (International Residual Mechanism for Criminal Tribunals) ने इस मामले को बंद करने का फैसला किया है. 


क्या था रवांडा नरसंहार
रवांडा नरसंहार एक खूनी जातीय संघर्ष था. अप्रैल 1994 में अफ्रीकी देश रवांडा में 100 दिन के भीतर हूतू समुदाय के लोगों ने तुत्सी समुदाय के लोगों को मारा था. हुतू समुदाय की बड़ी आबादी इतनी उग्र हो गई थी कि पड़ोसियों, रिश्तेदारों और तुत्सी समुदाय से आने वाली अपनी पत्नियों को भी मार दिया था. तुत्सी समुदाय से संबंध रखने वाली महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाकर भी रखा गया. 


ऐसे हुई शुरुआत
नरसंहार की शुरुआत 6 अप्रैल, 2024 को किगली में हवाई जहाज पर बोर्डिंग के दौरान रवांडा के राष्ट्रपति हेबिअरिमाना और बुरुन्डियान के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या के साथ हुई. 100 दिन में करीब 8 से 10 लोग मारे गए. रवांडा की करीब 20% आबादी को मौत के घाट उतार दिया गया था.


सरकार से लेकर सेना तक शामिल
नरसंहार में रवांडा की सरकार समेत सेना के अधिकारी, पुलिस विभाग, उग्रवादी संगठन और हुतु समुदाय की बड़ी आबादी शामिल थी. जुलाई के मध्य तक इस संहार पर किसी तरह काबू पाया गया. लेकिन रवांडा के लोगों के जख्म आज भी 30 साल पुरानी कहानी बयां करते हैं.


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